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दुर्वासस्
प्राचीन चरित्रकोश
दुष्प्रधर्ष
को वर दिया, 'तेरे शरीर के जितने भाग को जूठी खीर | पापी हेतु जान कर, दुर्वासस् ने उसे शाप दिया, 'तुम लगायीं है, उतने सारे भाग वज्रप्राय होंगे एवं किसी भी | गरुड पक्षिणी बनोगी' (मार्क. १)। शस्त्र का प्रभाव उनपर नहीं पडेगा' (म. अनु. २६४ कुं.)। दुर्विगाह--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । रथ खींचते समय, थक कर रुक्मिणी को प्यास लगी। तब
दुर्विनीत-पांड्य देश के इध्मवाहन का पुत्र । यह कृष्ण ने उसे पीने के लिये पानी दिया । तब अपनी
मात्रागमनी था। धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान करने से यह आज्ञा के बिना रुक्मिणी ने पानी पिया, यह देख कर
मुक्त हुआ (स्कंद. ३.१.३५)। दुर्वासस् ने उसे शाप दिया, 'तुम भोगावती नामक नदी
दुर्विमोचन-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम बनोगी, मद्यादि पदार्थों का भक्षण करोगी, तथा पतिविरही
ने इसका वध किया (म. श. २५.१३)। बनोगी' (स्कन्द. ७. ४. २-३)।
| दर्विरोचन-(सो. कुरु.) धृतराष्ट का पुत्र । भीमसेन (५) पांडव वनवास गये थे, तब दुर्वासस् ऋषि ने इसका वध किया (म. द्रो. १२०.६२)। दयोधन के पास गया । दुर्योधन ने उसकी उत्कृष्ट सेवा दर्विषह--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने की। तब प्रसन्न हो कर वासस् ने उसे वर माँगने के लिये
इसका वध किया (म. श. २५.१६)। कहा । दुर्योधन ने कहा, 'पांडव तथा द्रौपदी का भोजन
दुलिदुह-(सू. इ.) अनमित्र का पुत्र । यह महान् होने के बाद, आप उनके पास भोजन माँग ने जायें, तथा |
ज्ञाता था (ब्रह्म. ८.८४; ह. वं. १.१५.२४)। अन्य आपकी इच्छा पूर्ण न होने पर उन्हें शाप दें। दुर्योधन
| प्रसिद्ध पुराणों में इसका नाम नहीं है (म. आ. १.१७३)। का यह भाषण सुन कर यह पांडवों का सत्वहरण करने के
दुवस्यु--वान्दन देखिये। लिये, उनके पास गया । परंतु वहाँ भी इसकी कृष्ण के
दुष्कंत--एक राजा । रावण ने इसे जीता था। कारण, फजीहत हुई। यह कथा, केवल महाभारत के बंबई
दुष्कर्ण-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । शतानीक आवृत्ते में दी गयी है (म. व. परि. १ क्र. २५)। ।
ने इसका वध किया (म. भी. ७५.४८-४९)। ' (६) ब्रह्मदत्त के पुत्र हंस तथा भिक मृगया करते २. भारतीय युद्ध में भीम ने इसका वध किया (म. हाँ दुर्वासस् के आश्रम में गये। वहाँ उन्होंने आश्रम | द्रो. १३०.३४)। का विध्वंस कर दुवासस् को अत्यंत कष्ट दिये। उस समय दपरीत--संभवतः एक व्यक्ति का नाम (ऋ. २.२१. इसने अपना हमेशा का क्रोधी खभाव छोड़ सहनशीलता दीई । परंतु बाद में हंस डिभक अधिक ही त्रस्त करने
दुष्टरीतु पौस्यायन--संजय लोगों का राजा । इसके लंग, तब कृष्ण के पास इसने शिकायत की, एवं कृष्ण से |
वंश में, लगातार दस पीढीयों से चलते आये राज्य से, इसे उनका वध करवाया (ह. वं. ३.१११-१२९)।
च्युत किया गया। परंतु चाक स्थपति ने बाहिक प्रातिपीय . (७) तीर्थाटन करने के बाद, यह काशी में शिवाराधना के विरोध की एर्वाह न करते हुए, इससे सौत्रामणी यज्ञ करने लगा। काफी तपस्या करने के बाद भी शंकर
करवाया एवं इसे पुनः गद्दी पर बैठाया (श. बा. १२.९. प्रसन्न नहीं हुआ, तब यह शंकर को ही शाप देने लगा। ३.१-३; १३)। दुष्टरीतु शब्द ऋग्वेद में दो बार आया यह देख कर शंकर को इसके प्रति, वात्सल्ययुक्त प्रेम का है। किंतु वहाँ वह शब्द व्यक्तिवाचक है या नहीं, यह अनभव हआ। उसने प्रत्यक्ष दर्शन दे कर इसे संतुष्ट | कहना मुष्किल है (ऋ. २.२१.२; ६.१.१)। किया (स्कन्द ४.२.८५)।
दुप्पण्य--पशुमान का पुत्र । दूसरे के लड़कों को भगा (८) दुर्वासस् एक बार गोमती के तट पर, स्नान कर, यह पानी में डुबो देता था। राज्य की सीमा के करने गया था। उस समय, कई देय वहाँ आये तथा | बाहर निकाल देने पर भी, यह वही कार्य करता रहा । इसउन्होंने दुर्वासा को पीटा । राक्षसनाश के लिये दुर्वासस् ने लिये ऋषियों ने इसे पिशाच होने का शाप दिया। किंतु कृष्ण की आराधना की (स्कन्द ७.४.१८)।
सुतीक्ष्ण ने अग्मितीर्थ पर इसका क्रिया-कमीतर करने से यह (९) एक बार यह तप कर रहा था। इसके इस तप | मुक्त हो गया (स्कंद. ३.१.२२)। के कारण, सारे देव भयभीत हो गये। उन्होंने वपु नामक दुप्रधर्ष-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने अप्सरा को, इसका सत्वहरण करने के लिये भेजा । उसका | इसका वध किया (म. श. २५.१५)।
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