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________________ दुर्वासस्स् प्राचीन चरित्रकोश दुर्वासस् इसका स्वभाव बड़ा ही क्रोधी था। इसके क्रोध की | कठिनाई देख कर; उसने अपने वस्त्र का पल्ला फाड अनेक कथाएँ पुराणों में दी गयी है। यह स्वयं कठोर व्रत | कर पानी के प्रवाह में उसे बहा दिया । उस पल्ले से इसका का पालन करनेवाला तथा गूढ स्वभाव का था। इसके लजारक्षण हुआ। द्रौपदी की समयसूचकता से इसे अत्यंत मन में क्या है, इसका पता यह किसी को नहीं लगने | आनंद हुआ। इस उपकार का प्रतिसाद देने के लिये, देता था। इसने द्रौपदी वस्त्रहरण के प्रसंग में, द्रौपदी का लज्जास्वरूपवर्णन-इसका वर्ण कुछ पिंग हरा तथा | रक्षण किया (शिव. शत. १९)। दाढी बहुत ही लंबी थी । यह अत्यंत कृश तथा पृथ्वी के क्रोध कथा--(१) वायुंभुव मन्वन्तर में, एक विद्याधर अन्य किसी भी ऊँचे मनुष्य से अधिक ऊना था। यह द्वारा दी गई पुष्पमाला इसने इंद्र को दी। इंद्र का ध्यान हमेशा चिथड़े पहनता था । एक बिल्ववृक्ष की लंबी लकड़ी न रहने के कारण, वह माला ऐरावत के पैरों के नीचे. हाथ में पकड़ कर तीनों लोकों में स्वच्छन्दता से धुमने की कुचली गयी। माला के इस अपमान को देख कर, यह इसकी आदत थी (म. व. २८७.४-६, अनु. १५९. भड़क उठा । इसने इंद्र को शाप दिया. 'तुम्हारी संपत्ति १४-१५)। अपने क्रोधी स्वभाव से यह हमेशा लोगों नष्ट हो जायगी। इंद्र ने क्षमा माँगी । फिर भी को त्रस्त करता था। इसने उःशाप नहीं दिया । तव विष्णु की आज्ञा से इंद्र ने और्व ऋषि की कन्या कंदली इसकी पत्नी थी। एक समुद्रमंथन कर के संपत्ति पुनः प्राप्त की (विष्णु. १.९ बार इसने क्रोधित हो कर, शाप से उसको जला दिया पा. स. १-४)। समुद्रमंथन का यह समारोह चाक्षुष (ब्रह्मवै. ४.२३-२४)। मन्वन्तर में हुआ (भा. ९.४; पम. स. २३१-२३३; जाबालोपनिषद में इसका निर्देश है (जा. ६, नारद ब्रा. वै.२.३६: स्कंद. २.९.८-९)। तथा वपु देखिये)। जैमिनिगृह्यसूत्र के उपाकर्माग तर्पण | (२) एक बार अम्बरीष राजा को इसने बिना किसी में दुर्वासस् का निर्देश है । उस से ज्ञात होता है कि यह कारण ही अस्त किया। किंतु पश्चात् विष्णुचना से जीवित एक सामवेदी आचार्य था। इसके नाम पर; आया द्विशती, बचने के लिये, इसे अम्बरीप के ही पैर पकड़ने पडे देवीमहिम्नस्तोत्र, परशिवमहिमास्तोत्र, ललितास्तवरत्न | (अम्बरीष २. देखिये)।। आदि ग्रंथों का निर्देश है (C.C.)। (३) एकबार दुर्वासस् ने.एक हजार वर्षों का उपवास दुर्वासस् के क्रोध की एवं अनुग्रह की अनेक कथाएँ | किया । उस उपवास के बाद भोजन पाने के लिये, यह पुराणों में दी गयी है। उनमें से कुछ उल्लेखनीय कथाएँ दाशरथि राम के पास गया। उस समय राम, काल से नीचे दी गयी हैं। कुछ संभाषण कर रहा था। किसी को अन्दर छोड़ना ___ अनुग्रह-कथा-(१) श्वेतकि नामक राजा का यज्ञ | मना था। आज्ञाभंग का दंड मृत्यु था । इस कारण, इसने यथासांग पूर्ण करवाया (म. आ. परि. १.११८)। लक्ष्मण ने दुर्वासस् को भीतर जाना मना किया । (२) एक बार शिलोञ्छवृत्ति से रहनेवाले मुद्गल की | दवसिस ऋद्ध हो कर शाप देने को तैयार हो गया। यह सत्वपरीक्षा इसने ली । अनन्तर उस पर अनुग्रह कर के, | देख कर लक्ष्मण ने इसे भीतर जाने दिया। राम ने इसने उसे सदेह स्वर्ग जाने का वरदान दिया (म. व. | इच्छित भोजन दे कर इस को तृप्त किया । किंतु लक्ष्मण २४६)। को आज्ञा भंग के कारण, देह छोड़ना पडा (वा. रा. उ. (३) कुन्ती की परिचर्या से संतुष्ट हो कर, इसने | १०५, पद्म. उ. २७१)। कुन्ती को देवहूती नामक विद्या दी । उस विद्या के | (४) एक बार द्वारका में यह कृष्णगृह में गया । कृष्ण कारण, कुन्ती को इंद्रादि देवताओं से कर्णादि छः पुत्र | ने अनेक प्रकार से इसका स्वागत किया । इमो कृष्ण हुएँ। (भा. ९.२४.३२)। इसने कुंती को 'अथर्व शिरस् | का 'सत्त्वहरण' करने के लिये, काफी प्रयत्न किये। मंत्र' भी दिए थे (म. व. २८९.२०)। इसने अपनी जूठी खीर, कृष्ण तथा रुक्मिनी के शरीर को (४) एक बार स्नान करते समय, इसका वस्त्र बह | लगायी। उन्हें रथ में जोत कर, द्वारका नगरी में यह गया। नग्न स्थिति में पानी के बाहर आना, इसे | घूमने लगा। राह में रुक्मिणी थक कर धीरे-धीरे चलने लजास्पद एवं कष्टकर महसूस हुआ। इसी समय पानी के | लगी। तब इसने उसे कोड़े से मारा । फिर भी कृष्ण ने उपरी भाग में द्रौपदी स्नान कर रही थी। दुर्वासस् की सहनशीलता नहीं छोड़ी। तब प्रसन्न हो कर दुर्वासस् ने कृष्ण
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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