________________
दुष्प्रधर्षण
प्राचीन चरित्रकोश
दुष्यंत
दुष्प्रधर्षण-----धृतराष्ट्र का पुत्र । द्रौपदी के स्वयंवर में लाक्षी नामान्तर से इसे लक्षणा नामक दूसरी भार्या यह उपस्थित था (म. आ. १७७.१)।
तथा उसे जनमेजय नामक पुत्र था। यह जानकारी दुष्प्रहर्ष--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने | महाभारत की कुंभकोणम् आवृत्ति में प्राप्त है (म. इसका वध किया (म. श. २६.१८-१९)।
आ. ९०.९०१५; ८९.८७७*)। इसकी राजधानी गजदुष्यंत--(सो. पूरु.) का सुविख्यात राजा एवं 'चक्रवर्ति' | साह्वय ( हस्तिनापुर) थी (म. आ. ६८.१२)। सम्राट् भरत का पिता। वैशाली देश का तुर्वसु राजा | तुर्वसु कुलोत्पन्न करंधम के पुत्र मरुन्त राजा ने एवं करंधम का पुत्र 'चक्रवर्ति' मरुत्त आविक्षित ने 'पौरव' | अपना पुत्र मान कर, इसे अपना सारा राज्य दिया वंश में जन्मे हुए दुष्यंत को गोद में लिया। कुरुवंशोंयों | (भा. ९.२३.१६-१७; विष्णु. ४.१६)। यह राज्यका राज्य मांधात के समय से हैहय राजाओं ने कबजे में | लोलुप था। इसलिये इसने राज्य स्वीकार किया। राज्य लिया था । वह इसने पुनः प्राप्त किया, एवं गंगा तथा | मिलने के बाद, यह पुनरपि पौरववंशी बन गया ( भा. ९. सरस्वती नदीयों के बीच में स्थित प्रदेश में अपना राज्य २३.१८)। ययाति के शाप के कारण, मरुत्त राजा का यह पुनः स्थापित किया । इसलिये इसे 'वंशकर' वंश पुरुवंश में शामिल हो गया (मत्स्य. ४८.१-४)। कहा जाता है (म. आ. ६२.३; भागवत. ९.२३.१७
ययाति के शाप से, इसका तुर्वसु वंश से संबंध आया १८)।
(वायु. ९९.१-४)।. .. दुष्मंत, दुःषन्त आदि इसीके ही नामांतर थे। इसके ।
ब्रह्मपुराण में तुर्वसुवंशीय करंधमपुत्र मरुत्त ने, अपनी पुत्र भरत को 'दौष्यन्ति' 'दौःषन्ति' आदि नाम इसके |
संयता नामक कन्या संवर्त को देने के बाद, उन्हें दुष्यंत इन नामों से प्राप्त हुए थे (ऐ. बा. ८.२३; श. ब्रा. १३.
पौरव नामक पुत्र हुआ, ऐसा उल्लेख है (१३) ।
हरिवंश में यही हकीकत अलग ढंग से दी गयी है। यज्ञ ५.४.११-१४)। शतपथ ब्राह्मण के उपरोक्त उद्धरण में,
करने के बाद, मरुत्त को सम्मता नामक कन्या हुई. वह भरत का पैतृक नाम 'सौद्युम्नि' दिया गया है । वह |
कन्या उसने यज्ञ दक्षिणा के रूप में, संवर्त नामक ऋत्विज वस्तुतः 'दौष्यन्ति' चाहिये । मत्स्य पुराण में दुष्यंत को ही भरत दौष्यंति कहा है (मत्स्य. ४९.१२)।
को दी। पश्चात् संवर्त ने वह कन्या सुघोर को दी। उससे .
सुघोर दुष्यंत नामक पुत्र हुआ। दुष्यंत अपनी कन्या का ___ इसके जन्मदातृ पिता एवं माता के नाम के बारे में एक- पुत्र होने के कारण, मरुत्त ने उसे अपनी गोद में ले लिया। वाक्यता नहीं है । भागवत में इसे रेभ्य राजा का पुत्र | इसी कारण तुर्वसु वंश पौरवों में शामिल हआ (१.३२) । कहा गया है (भा. ९.२०.७)। भविष्यमत में, इसके पिता और कासीमा गाया गया का नाम तसु था। हारवश म, तसु के दुष्यत आदि किया. तथा पुरु वंश की पुनः स्थापना की। यह स्थिति प्राप्त चार पुत्र दिये गये है (ह. वं. १.३२.८)। किंतु होने के पहले ही, इसका दत्तविधान हुआ होगा। इसका विष्णुपुराण में दुष्यंत को तंसुपुत्र अनिल का पुत्र कहा
| राज्य हैहयों ने नष्ट कर दिया था। इसीलिये इस राज्यच्युत गया है (विष्णु ४.१९)। महाभारत 'कुंभकोणम्' आवृत्ति
राजपुत्र को गोद लिया गया होगा। परंतु पौरवों की सत्ता में इसके पिता का नाम ईलिन दिया है (म. आ. ८९. को पुनर्जीवित करने के हेतु से यह अपने को पौरववंशीय १४; मत्स्य. ४९.१०)। ईलिन को दुष्यंत आदि
कहने लगा। पौरव सत्ता का पुनरुज्जीवन, दुष्यंत ने हैहय पाँच पुत्र थे, ऐसा भी उल्लेख मिलता हैं । ब्रह्मांड में | सत्ता सगर द्वारा नष्ट की जाने पर, तथा सगर के राज्य के इसे ईलिन का नाती कहा गया है । वायु पुराण में इसके | नाश के बाद ही किया होगा। अगर ऐसा होगा, तो यह पिता का नाम मलिन दिया है। इसके पिता के नाम के | मरुत्त से एक दो पीढियाँ तथा सगर से दो पीढियाँ आगे संबंध में जैसी गड़बड़ी दिखती है, उसी तरह इसकी माता | होगा। के नाम के बारे में भी दिखाई पड़ती है। इसकी माता के | एक बार यह मृगया के हेतु से, कण्व काश्यप ऋषि उपलब्ध नाम है उपदानवी (वायु. ६९.२४), रथंतरी | के आश्रम में गया । वहाँ इसने काण्व आश्रम में (म. आ. ९०.२९)।
शकुन्तला को देखा । कण्व काश्यप बाहर गया हुआ पौरव वंश के इतिहास में, तंसु से ध्यंत के बीच के | था । इसलिये परस्पर संमति से दुष्यन्त एवं शकुंतला का राजाओं के बारे में, पुराणों में एकवाक्यता नहीं है। गांधर्व विवाह हो गया। बाद में शकुन्तला को इससे गर्भ
२८८