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________________ दुर्योधन भारतीययुद्ध इस प्रकार युद्ध प्रारंभ हुआ। कौरव पक्ष का पहला सेनापति भीष्म था। उसके बाद, अश्वत्थामा तक अनेक सेनापति हुएँ परंतु उनके होते हुए भी दुर्योधन का अनेक बार पराजय ही हुआ। - प्राचीन चरित्रकोश " प्रमुख योद्धाओं का रण में पतन होने के बाद, दुर्योधन अत्यंत भयभीत हुआ (म. श. २८.२४ ) । अन्त में 'जलस्तंभन विद्या के योग से यह द्वैपायन सरोवर के जल में छिप कर बैठ गया ( म. श. २९.७ ) । यह वृत्त पांडवों को ज्ञात हुआ, तब वे वहाँ आये । उस समय दुर्योधन बाहर नहीं आता था, इसलिये युधिष्ठिर ने इसके साथ कठोर भाषण किया ( म. श. ३० ) । मृत्यु दुर्योधन बढ़ा मानी तथा जिद्दी था। युधिष्ठिर के कहने पर द्वैपायन हृद से यह बाहर आया । गदायुद्ध की तय्यारी होने लगी। युधिष्ठिर ने इसे उदार भाव से कहा, ' पांडवों में से किसी एक के साथ तुम युद्ध करो। उस युद्ध में तुम्हारा जय होने पर, तुम्हारा राज्य तुम्हे वापस देने का आश्वासन हम देते हैं'। नकुल एवं सहदेव से गदायुद्ध कर के, उनका पराजय करना इसके लिये आसान था। फिर भी इसने तुल्यबल भीम को ही युद्ध के लिये आवाहन किया। आखिर भीम ने गदाके नियम तोड़ कर इस पर गदाप्रहार किया एवं इसका वध किया (म. श. ३३ ) । युद्ध भीम ने गदा युद्ध के नियम तोड़ कर इसकी बायी जाँघ गदाप्रहार से भिन्न कर दी। गदायुद्ध का सर्व मान्य संकेत है कि, नाभि के नीचे कभी भी प्रहार नही किया जाता। फिर भी गदायुद्ध में दुर्योधन का पराजय अशक्य देख कर अंधा पर गदाप्रहार करने का इशारा कृष्ण ने भीम को किया । उस इशारे के अनुसार गदा प्रहार कर के भीम ने दुर्योधन की बायी घ तोड़ डाली। यह अधर्म देख कर बलराम भड़क उठा। यह घटना मार्गशीर्ष बदि अमावस्या के दिन दोपहर में हुई ( भारतसावित्री ) । दुर्योधन राज्य का उचित हिस्सा पांडवों द्वारा माँगने पर भी इसने नहीं दिया। यह अधम पुरुष न तो मित्र कहने के लायक है, न शत्रु । इस अवयवभन एवं काष्ठवत् मनुष्य के साथ बात करने में कुछ फायदा नहीं । चलो चलें | बडी अच्छी बात हुई, जो यह पापी पुरुष अपने बांधवों के साथ नष्ट हुआ । कृष्ण का यह निंदागर्भ वक्तव्य सुन कर, दुर्योधन, यद्यपि खून से लथपथ तथा शक्तिहीन था, घुटनों के बल धरती पर हाथ टेक कर, ऊपर उछल पड़ा । जैसा कोई पूँछहीन सॉप उछल कर सीधा खंडा हो जाय। अपनी द्वेषभरी नजर चारों ओर घुमा कर, वेदना की तीव्रता के बावजूद, यह ठोस एवं कड़े शब्दों में बोला, ' हे कंस के दास के पुत्र, तू बड़ा ही बेशरम भीम को घावात करने को प्रेरित कर, तू ने मेरा अधर्म से वध किया है । धर्मयुद्ध करने वाले कुरुकुल का तू ने ही कुटिलता से संहार किया है'। है " 'लज्जा एवं घृणा ये चीजें तेरे पास नहीं है। शिखंडी को आगे बढ़ा कर, पितामह भीष्म को तू ने मारा | अश्वत्थामावध की किंवदन्ती उड़ा कर तू ने ही द्रोण का वध करवाया। अर्जुनवध के लिये कर्ण ने रखी हुई 'अमोषशक्ति घटोत्कच पर खर्च करने के लिये को, तू ने ही विवश किया । हस्तविहीन भूरिश्रवा का बघ तू ने ही करवाया। कर्ण के सर्पचाण से, रथ को जमीन में दबा कर अर्जुन को तू ने ही बचाया। भूमि में फँसे हुए रथ चक्र को कर्ण बाहर निकाल ही रहा था, कि तू ने अधर्म से उस का वध करवाया। सीधे मार्ग से लड़ने पर जय मिलना पांडवों के लिये असंभव था। इस कारण, अधर्म से लड़ने पर तू ने पांडवों मो विवश किया ' । , दुर्योधन का मनोगत - मृत्यु के पहले, कृष्ण एवं दुर्योधन में जो संवाद हुआ, उससे दुर्योधन का व्यक्तित्त्व मनोगत एवं मनोव्यथाओं पर गहरा प्रकाश पडता है महाभारत के शल्यपर्व में दिया गया यह संवाद, दुर्योधनचरित्र की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। । मृत्युशय्या पर पडे हुए दुर्योधन की ओर इशारा कर के कृष्ण ने कहा, 'इस दुर्योधन ने लोभवश, भीष्म द्रोण आदि का आज्ञापालन नहीं किया। अपने पिता के २८४ दुर्योधन ने आगे कहा, 'आयु भर, मैं ने दानधर्म किया, अत्युत्तम राज्य चलाया, धर्म एवं नीति के साथ आचरण किया। आखिर तक मैं ने धर्मयुद्ध किया, एवं धर्मवुद्ध करते करते ही मैं जा रहा हूँ । देवदुर्लभ तथा मानवों को अप्राप्य ऐश्वर्य का उपभोग में ले चुका हूँ। आज वैसा ही मृत्यु मुझे मिल रहा है। मैं सत्रांधव स्वर्ग सिधारूँगा। । किंतु अधर्म पर चलनेवाले तुम, नरक में ही गमन करोंगे | दुर्योधन के इस प्रकार कहने पर उसपर आकाश से देवगंधर्वो द्वारा फुलों की बौछार हुई । स्वयं कृष्णार्जुन यह देख कर चकाचौंध हो गये, फिर साधारण जनता का क्या पूँछे पश्चात् सारे लोग युद्ध निवासस्थान पर वापस लौटे
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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