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________________ दुंदुभि प्राचीन चरित्रकोश दुर्जय दुंदुभि--मयासुर का पुत्र । मयासुर को हेमा नामक राक्षस का नाश हुआ। काशी के 'व्याधेश्वरमाहात्म्य' अप्सरा से दो पुत्र उत्पन्न हुएँ । उनमें से यह कनिष्ठ | में यह कथा दी गयी है (शिव. रुद्र. यु.५८)। था (वा. रा. उ. १२.१३)। दुरतिक्रम--शिवावतार सुहोत्र का शिष्य । दीर्घ तपस्या कर के इसने सहस्रावधि हाथियों का बल | दुराचार-एक दुराचारी ब्राह्मण । वैवाल आदि की प्राप्त किया तथा महिष का रूप धारण किया। पश्चात् | पीड़ा से यह ग्रस्त था । धनुष्कोटितीर्थ, जाबालतीर्थ, एवं इसने समुद्र को युद्ध का आह्वान दिया। समुद्र ने इसे | कटाचलतीर्थ पर जाने के कारण, यह मुक्त हुआ हिमालय के पास भेजा। हिमालय ने इसे वालिन् के | (कंद. २. १. २. ५, ३. १. ३६)। पास भेजा। वालिन् के साथ हुएँ युद्ध में, दुंदुभि का | दुराधन--(सो. कुरु.) वृतराष्ट्र का पुत्र । पराजय हुआ । यह एक गुफा में जा छिपा। वहाँ वालिन् दुराधर-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । ने इसका वध किया। दुरासद--भस्मासुर का पुत्र । इसने शिव से पंचाक्षरी मृत्यु के पश्चात इसका कलेवर वालिन ने दर फेंका। विद्या प्राप्त कर, उसका जाप किया। उस जाप से संतुष्ट वह मतंग ऋषि के आश्रम में जा गिरा । आश्रम की | हो कर, शंकर ने इसे इच्छित वर दिया । उस वर के सारी वस्तुएँ रक्तरंजित हो गयी । वृक्ष भी टूट गये। तब | प्रभाव से, प्रमत्त हो कर यह सब को कष्ट देने लगा। मतंग ने क्रुद्ध हो कर वालिन् को शाप दिया, 'मेरे आश्रम | शीघ्र ही शक्तिपुत्र हुँढि ने इसका वध किया। (गणेश. में आते ही तुम मृत हो जावोगे'। तब से वह आश्रम वालिन् | १. ३८-४२)। के लिये अगम्य हो कर, सुग्रीव का वासस्थान बन गया। दुरितक्षय--(सो. पूरु.) महावीर्य राजा का पुत्र । राम का सुग्रीव से दोस्ती का सुलूक हो गया । पश्चात् | विष्णु मत में उरुक्षय इसीका नामांतर है। त्रय्यारुणि, अपना सामर्थ्य दर्शाने के लिये, दुंदुभि के शरीर का कवि, एवं पुष्करारुणि नामक इसके तीन पुत्र थे (भा. ९. कंकाल, राम ने अपने अंगूठे से दस योजन तक दूर उड़ा २१.१९) । तपस्या के कारण, वे सब ब्राह्मण हो गएँ । . दिया (वा. रा. किं. ११.७-६५) । दुंदभि ने सोलह दुर्ग--हिरण्याक्ष के वंश के रुरु दैत्य का पुत्र । हजार स्त्रियों को कैद में रखा था। उन स्त्रियों की दुर्गम--एक दैत्य । दुर्गादेवी ने इसका वध किया मुक्ति राम ने की । एक लाख स्त्रियों से एकदम विवाह (स्कंद १. २. ६५.)। करने का इसका संकल्प था (आ. रा. राज्य. १.११)। २. रुरु दैत्य का पुत्र। इसने सब ब्राहाणों तथा २. एक गंधर्वी । ब्रह्मदेव की आज्ञानुसार अयोध्या ऋषियों के आधारस्तंभ, वेदों का नाश किया। इस में यह कैकेयी की मंथरा नामक दासी बनी (म. व. २५. कारण नित्य नैमित्तिक कर्म बंद हो गये । सर्वत्र हाहाकार मच गया । तब चतुर्भुजादेवी ने इसका वध किया ९.१०)। ३.(सो. यदु, कुकुर.) अनुपुत्र अंधक का पुत्र | ( ( (शिव. उ.५०)। इसका पुत्र अरिद्योत। ३. (सो. द्रुहयु.) विष्णु मत में धृत का पुत्र । दुर्दम, ४. कश्यप तथा दनु का पुत्र । दुर्मनस् एवं विदुष इसके नामांतर हैं । ५. सुतार नामक शिवावतार का शिष्य । ४. रेवती १. एवं विकाठा देखिये। दुर्गमभूत---(सो. वतु.) विष्णु मत में वसुदेव का दुंदुभिनिहाद-एक राक्षस । यह दिति का पुत्र, रोहिणी से उत्पन्न पुत्र। एवं प्रलाद का मामा था। देव-असुर युद्ध में, देवों का दुगह-- सायण के मत में पुरकुत्स का पिता । पुरुविजय एवं असुरों का पराभव होने लगा । देवों के इस कुत्स को दौर्गह यह पैतृक नाम प्रयुक्त है (क्र. ४.४२.८; विजय के लिये, ब्राह्मण ही उत्तरदायी है यह सोच कर, पुरुकुत्स देखिये)। इसने ब्राह्मणों का संहार प्रारंभ किया। इस कार्य के लिये, दुर्गा-विश्वव्यापक आदिमाया का एक नाम । इसे काशी जैसे क्षेत्रों पर अपना अधिकार भी जमाया। त्रिगुणात्मिका एवं देवी भी कहते है ( देवी देखिये)। पश्चात् काशीवासी ब्राह्मणों को शंकर ने अभय दिया, दुर्जय--दनुपुत्र दानवों में से एक । 'मेरा स्मरण कर, जो ब्राह्मण दुंदुभिनिहाद का विरोध २. ( सू. इ.) दशाश्व शाखा में से सुवीर का पुत्र । करेंगे, वे सदा अजेय रहेंगे । बाद में शिवशक्ति से इस ) इसे दुर्योधन नामक एक पुत्र था (म. अनु. २.१२) । २७८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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