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दीर्घबाहु
दीर्घबाहु -- (सू. इ. ) खट्वांग (दिलीप द्वितीय) राजा का पुत्र । इसका पुत्र रघु ( भा. ९.१०.१ ) । मत्स्य तथा पद्मपुराण में यही अजपुत्र के नाते उल्लिखित है । यह विष्णुभक्त था । इसे गद्दी पर बिठा कर, खट्वांग आत्मस्वरूप में लीन हो गया । ब्रह्म, हरिवंश तथा शिवपुराण, ' दीर्घबाहु' को रघु का विशेषण मानते हैं । इसीलिये रघुवंश में ‘दीर्घबाहु' का उल्लेख नहीं है । गरुड पुराण में रघु का उल्लेख न हो कर केवल दीर्घबाहु का ही निर्देश है। २. (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने इसका वध किया (म. भी. ९२.२६ ) । दीर्घयज्ञ - - अयोध्या का राजा । राजसूय के समय, भीम ने इसे पराजित किया था ( म. स. ३१.२ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
दीर्घरोमन - (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का पुत्र । दीर्घलोचन - - (सो. कुरु. ) भीमद्वारा मारा गया धृतराष्ट्र का पुत्र ( म. भी. ९२.२६ ) ।
दीर्घश्रवस् औशिज—एक राजा । यह दीर्घतमस् एवं उशिज् का पुत्र था (दीर्घतमस् मामतेय देखिये) । यहाँ इसे वणिज कहा गया है । इस पर अश्वियों ने कृपा की थी (ऋ. १. ११२.११ ) । इस राजा को देश से निकाल दिया गया था । इसलिये यह भूख के कारण मर रहा था । एक साम गा कर इसने अन्न प्राप्त किया । (पं.ब्रा. १५.३.२५) । कक्षीवत् के साथ इसका निर्देश है ।
दीर्घायु -- एक क्षत्रिय । यह श्रुतायु का पुत्र था । भारतीय युद्ध में अर्जुन ने इसका वध किया ( म. द्रो. ६८.२९)।
दीर्घिका -- वीरशर्मन् की कन्या । यह बहुत ऊँची थी। शास्त्रों में लिखा है, 'ऊँची लड़की से ब्याह करने वाला, छै माह में मर जाता है ' । इस लिये इससे ब्याह करने को कोई तयार नहीं होता था ।
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अच्छा पति मिले, इसलिये इसने तपश्चर्या शुरू की । तप करते करते यह वृद्ध हो गयी । पश्चात् एक कुष्ठ रोग पीडित वृद्ध गृहस्थ, इसके पास आया । उसकी शर्तें स्वीकार कर, इसने उससे विवाह किया । कालोपरांत पति ने इसे यात्रा करने का अपना विचार बताया । यह उसे कंधे पर ले कर चली। जाते जाते शूलि पर चढाये गये मांडव्य को, इसका धक्का लग गया । क्रुद्ध हो कर मांडव्य ने इसे शाप दिया । परंतु पातित्रय प्रभाव से इस पर उस शाप का कुछ परिणाम नहीं हुआ (स्कंद. ६. १३५; मांडव्य देखिये) । शांडिली एवं यह एक ही रही होंगी ।
दुःशासन
दुःशल- (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का पुत्र |
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दुःशला -- धृतराष्ट्र की कन्या । यह सिंधुराज जयद्रथ विवाह में दी गयी थी ( म. आ. १०८.१८ ) ।
इसका पुत्र सुरथ ।
दुःशासन - (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र का द्वितीय पुत्र (म. आ. १०८.२ ) । यह दुर्योधनी व्यवहार करता था, इसलिये उसने इसे यौवराज्य प्रदान किया था । यह पौलस्त्य का अंशावतार था । इसने शस्त्रास्त्रविद्या तथा धनुर्विद्या की शिक्षा द्रोण से ली थी ।
द्रौपदी स्वयंवर के समय, उपस्थित राजाओं में यह भी शामिल था (म. आ. १७७.१ ) । बाद में द्रौपदीसहित] पांडव द्यूत में हार गये । कर्णद्वारा कानाफूसी मिलने पर, इसने भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्रहरण किया । कृष्ण की आराधना कर, द्रौपदी ने अपनी रक्षा की । इसी समय दुःशासन का वध कर उसके रक्त का प्राशन करने की घोर प्रतिज्ञा भीमसेन ने की (म. स. ६१.४६ ) ।
पांडव अज्ञातवास में थे। तब उन्हें ढूंढने के उद्देश से कौरवों ने, मत्स्य देश के विराट राजा की गोशालाओं का ध्वंस किया, तथा जबरदस्ती से उसकी गायों का हरण किया । इस हमले में दुःशासन शामिल था ( म. वि. ३३.३ ) । अर्जुन ने विराटपुत्र उत्तर को सारथि बना कर, गोहरण कर के भागनेवाले कौरवोंका, पीछा किया । तत्र दुःशासन, विकर्ण, दु:सह तथा विविंशति नामक चार योद्धाओं ने महाधनुर्धर अर्जुन पर एक साथ आक्रमण किया । दुःशासन ने उत्तर को घायल किया अर्जुन के वक्षभाग पर प्रहार कर उसे जख्मी किया। परंतु आखिर अर्जुन ने अपने बाणों से इसे घायल किया, एवं इसे भगा दिया ( म. वि. ५६.२१-२२ ) ।
भारतीययुद्ध के प्रथम दिन के संग्राम में, नकुल के साथ इसका द्वंद्वयुद्ध हुआ था ( म. भी. ४५.२२-२४) । पश्चात् भीष्मद्वारा इकट्ठी की गयी सेना को भेद कर, भीम ने दुःशासनादि योद्धाओं पर आक्रमण किया । तब दुःशासन ने उसे घेर लिया ( म. भी. ७३.१० ) । भीष्मार्जुन युद्ध के समय शिखंडिन् को सामने ले कर अर्जुन युद्ध करने लगा। यह देखते ही भीष्म के संरक्षण के लिये, दुःशासन ने अर्जुन पर आक्रमण किया। दोनों में युद्ध हो कर, दुःशासन घायल हुआ (म. भी. १०६. ४३) ।
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