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________________ दीर्घतमस् प्राचीन चरित्रकोश दीर्घप्रज्ञ लगा। आश्रम के अन्य ऋषियों को यह पसंद नहीं ऋषि को शांत कर, तथा पत्नी को समझा कर, बलि ने फिर आया । वे इसे आश्रम से भगा देने को उद्युक्त | एक बार सुदेष्णा को दीर्घतमस् के पास भेज दिया। इससे हो गये। उसे पाँच पुत्र उत्पन्न करवाये। उनके नाम अंग, वंग, ___ इसकी पत्नी प्रद्वेषी को पुत्रप्राप्ति हो गयी थी, एवं| पुंड, सुझ तथा कलिंग थे। इन्हे बालेय क्षत्र तथा वालेय अंधा पति उसे अच्छा भी न लगता था। वह इसे भगाने | ब्राह्मण कहते है (ह. वं. १.३१; विष्णु. ४.१८; भा. ९. के लिये अन्य आश्रमवासियों को सहाय करने लगी।। २०, २३; ब्रह्म. १.३)। वह कहने लगी, 'दीर्घतमस से तलाक ले कर मैं दूसरा। बाद में काक्षीवानादि पुत्रों को ले कर, यह गिरिव्रज पति कर लुंगी'। (मस्त्य. ४८), वा गिरिप्रज (वायु. ९९) गया। ___घर छोड़ने के लिये उद्यक्त हुए अपने पत्नी को काबू कक्षीवान को इसने उर्दक ऋषि के पास शिक्षाप्राप्ति के में रखने के लिये, इसने धर्मशास्त्रकार नाते से पत्नीधर्म | लिये भेजा (स्कन्द ३.१.१७-१८)। के नये नियम प्रस्थापित किये। वे नियम इस प्रकार | महाभारत में, दीर्घतमस् ऋषि का निर्देश अनेक बार थे:- 'जन्मभर स्त्री को एक ही पति रहेगा, वही उसका आया है। यह इन्द्रसभा में इन्द्र के मनोरंजन का काम ईश्वर होगा। पति जीवित रहें या मृत, दूसरा पति स्त्री करता था (म. स. ७.१०)। यह पश्चिम दिशा के नही कर सकेगी। अगर स्त्री ने दूसरा पति किया, तो वह आश्रय में रहता था (म. अनु. १६५.६२)। इसे पतित हो जावेगी। पति के बिना रहनेवाली स्त्रियाँ भी | आशिज, औशिज, तथा असित कहा गया है (वायु. ९९ पतित रहेंगी। उनके पास धन होने पर भी, उन पतिशून्य ४४; मस्त्य. ४८.८३)। उशिज इसका पितामह होने के स्त्रियों का परपुरुषसंभोग तथा तज्जन्य संतति व्यर्थ, कारण, इसका पैतृक नाम 'औशिज' होना संभवनीय अकीर्तिकर तथा निंदास्पद ही होंगी'। बाद में प्रद्वेषी के कहने पर, इसके पुत्रों ने एक तख्ते | इसका पुत्र कक्षीवत् एवं उसके भाईओं का 'गौतम' पर इसे बांध कर, वह तख्ता गंगा में छोड़ दिया (म. आ. | यह पैतृक नामांतर कई जगह प्राप्त है (मल्य. ४८.५३: ९८.१८)। मत्स्य के अनुसार दीर्घतमस् अपने चचेरे ८४) । गोतम, दीर्घतमस् का ही अन्य नाम था । इसके भाई शरद्वत् के आश्रम में रहता था। दीर्घतमस् अपने पशुतुल्य आचरण के कारण, इसे यह नाम मिला (वायु. स्नुषा से विषयवासनायुक्त भाषाण बोलने लगा। यह | ९९; ब्रह्मांड. ३.७४.३)। कई जगह, इसे गौतम भी स्वैराचारी वर्तन शरद्वत् को अच्छा न लग कर, उसने इसे कहा है (म. शां. ३२८.५०; म. स. १९.५-७)। - 'आश्रम के बाहर निकाल दिया (मत्स्य. ४८)। लो. तिलकजी ने ऋग्वेद के 'दीर्घतमस्' शब्द का अर्थ, नदी में छोड़ा गया दीर्घतमस् ऋषि, बहते-बहते आनव 'दीर्घ दिन के बाद अस्तंगत होनेवाला सूर्य,' किया है . देश के सीमा के समीप आया। उस देश का राजा बलि (आर्यों का मूलस्थान पृ. १४६ )। सहजभाव से घूमते घूमते वहाँ आया था। उसने इस | ___ कई ग्रंथों में, सुदेष्णा रानी की शूद्रा दासी का नाम ऋषि को बडे सम्मान तथा आनंद से अपने अंतःपुर में 'उशिज्' बताया है। इसीलिये, उस शूद्रा से उत्पन्न, रख लिया। तदनंतर बलि राजा ने सुदेष्णा नामक अपनी इसके कक्षीवत् एवं दीर्घश्रवस् ये पुत्र, 'औशिज' यह रानी को, संतति हेतु मन में रख कर, इस ऋषि की सेवा मातृक नाम से प्रसिद्ध हुएँ (दीर्घश्रवस् औशिज देखिये) करने के लिये कहा। परंतु इसे अंध जान कर सुदेष्णा ने | २. (सो. काश्य.) यह भागवत, विष्णु तथा वायु के आप के बयाज, अपने "औशीनरी" नामक शूद्रवर्णीय मत में काशिराज राष्ट्र का पुत्र। इसे धन्वन्तरि नामक दासी को इसके पास भेजा। उससे इस ऋषि को कक्षीवत्. | पुत्र था। | पुत्र था। वायु में दीर्घतपस् पाठभेद है । दीर्घश्रवस् आदि ग्यारह पुत्र हुएँ (म. स. १९.५)। । दीर्घनीथएक वैदिक ऋषि । इंद्र ने इस को संपत्ति वायुपुराण में इन पुत्रों में से 'कक्षीवत्' का नाम | दी थी (ऋ. ८.५०.१०)। "काक्षीवत्" दिया है। दीर्घनेत्र-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र । भीम ने बाद में बलि एवं दीर्घतमस् इन दोनों में, नवजातपुत्र | इसका वध किया (म. द्रो. १०२.४२)। किस का है, इस बारे में वाद शुरू हुआ। दीर्घतमस् ने दीर्घप्रज्ञ-दुर्योधनपक्षीय एक राजा (म. आ. ६१. राजा को सुदेष्णा द्वारा की गयी चालबाजी बतायी। तब । १५)। २७५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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