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________________ दिडि. प्राचीन चरित्रकोश दिलीप (भवि. ब्राह्म.७६.१९) । ब्रह्माजी का शिरच्छेद इसके हाथ भागवत एवं विष्णुमत में विश्वसह का, ब्रह्मांड एवं से हुआ था। सूर्य के सन्निध रहने से, उस पातक | वायुमत में विश्वमहत् का, तथा मत्स्यमत में यह रघु का से यह मुक्त हुआ (सांब. १६)। इसे दिडिन् भी कहा है। पुत्र था। कई ग्रंथों में, इसे दुलिदुह का पुत्र भी कहा गया यह महातपस्वी गणाधिपति था। पहले की गयी है (ब्रह्म. ८.८४; है. वं. १.१५)। मत्स्य, पन, एवं अग्नि ब्रह्महत्या के निरसनार्थ. इसने सूर्याराधना की। सूर्य की पुराणों में दी गयीं इसकी वंशावलि में एकवाक्यता नहीं कृपा से, यह ब्रह्महत्या से मुक्त हुआ। पश्चात् सूर्य से है। इसने क्रियायोग श्रवण किया ( भवि. ब्राह्म. ६३)। पितृ की कन्या यशोदा इसकी माता थी। इसकी पत्नी यह शंकर का अवतार था (भवि. ब्राह्म. ९१)। यह | का नाम सुदक्षिणा था। इसका पुरोहित शांडिल्य था। सूर्य के पूर्व में स्थित है। निरंतर भ्रमणशील होने के दिलीप खट्वांग के प्रशंसा पर एक पुरातन श्लोक भी उपलब्ध है (ब्रह्मांड. ३.१०.९०-९२; ह. वं. १.१८; कारण, इसके लिये रुद्र नाम प्रयुक्त है (भवि. ब्राह्म. १२४)। वायु. ७३.८४ )। दिति-प्राचेतस - दक्ष प्रजापति तथा असिनी की कन्या, एवं कश्यप की भार्या (कश्यप देखिये )। ऋग्वेद | ___ काफी दिनों तक दिलीप राजा को पुत्र नहीं हुआ। में इसका तीन स्थानों पर उल्लेख है। उनमें से दो स्थानों पुत्रप्राप्ति के हेतु से, यह वसिष्ठ के आश्रम में गया । राजा के द्वारा विनंति की जाने पर, वसिष्ठ ने इसे पर, अदिति के साथ इसका उल्लेख आयां है (ऋ. ५. पुत्र न होने का कारण बताया। वसिष्ठ बोले, " एक बार ६२.८, ४. २. ११)। तीसरे स्थान, इसका उल्लेख अदिति के साथ न हो कर, अग्नि, सवितृ एवं भग के तुम इन्द्र के पास गये थे। उसी समय तुम्हारी पत्नी साथ आया है (ऋ: ७. १५. १२)। कई वैदिक ग्रंथों त्रस्तुस्नात होने का वृत्त तुम्हें ज्ञात हुआ । तुम तुरंत घर लौटे । मार्ग में कल्पवृक्ष के नीचे कामधेनु खडी थी। उसे में इसे 'देवी' कहा गया है ( वा. सं. १८. २२; अ. वे. १५. १८. ४; १६.६. ७)। अर्थववेद में इसके | नमस्कार किये बिना ही तुम निकल आये। उस लापरवाही पुत्रों का निर्देश आया है वे दैत्य एवं देवों के शत्र मालूम | के कारण उसने तुम्हें शाप दिया, 'मेरे संतति की सेवा किये बिना तुम्हें संतति नहीं होगी। उस शाप से छुटकारा होते हैं (भा. ७.७.१)। इससे पता चलता है कि, दिति एवं अदिति एक पक्ष में न हो कर, विरोधी पक्ष में थी। | पाने के लिये मेरे आश्रम में स्थित कामधेनुकन्या नंदिनी की तुम सेवा करो। तुम्हें पुत्र होगा।" इसी समय वहाँ . दिलीप (प्रथम)-(सू. इ.) अयोध्या के अंशुमत् नंदिनी आई। उसे दिखा कर वसिष्ठ ने कहा, 'तुम्हारी राजा का पुत्र । अपने 'भगीरथ' प्रयत्नों से, गंगा गदी कार्यसिद्धि शीघ्र ही होगी। .पृथ्वी पर लानेवाले परमप्रतापी भगीरथ राजा का यह इसने धेनु को चराने के लिये, अरण्य में ले जाने पिता था (भा. ९.९; मत्स्य. १२.४४; पद्म भू. १०; उ. • का क्रम शुरू किया। एक दिन मायावी सिंह निर्माण कर, २१; ब्रह्म. ८.७५, लिंग. २.५.६; म. व. १०६.३७ नंदिनी ने इसकी परीक्षा ली। उस समय स्वदेहार्पण ४०)। रामायण में, भगीरथ का पिता दिलीप (प्रथम), कर, धेनुरक्षण करने की सिद्धता इसने दिखायी। तब एवं रघु का पितामह दिलीप खट्वांग, ये दोनो एक ही माने धेनु प्रसन्न हो कर, इसे रघु नामक विख्यात पुत्र हुआ गये है (वा. रा. बा. ४२)। किंतु वे दोनों अलग थे। (पद्म. उ. २०२-२०३)। यह कथा कालिदास के रघुवंश अपने पितामह सगर का उद्धार करने के लिये इसने में पूर्णतः दी गयी है। गगा पृथ्वी पर लाने को चाहा । उसके लिये इसने तीस यह पृथ्वी पर का कुबेर था। इसने सैकडों यज्ञ किये हजार वर्षों तक तपस्या की। किंतु गंगा लाने से पहले ही थे। प्रत्येक यज्ञ में लाखों ब्राह्मण रहते थे। इसने सब पृथ्वी इसकी मृत्यु हो गयीं। ब्राह्मणों को दान दी थी। इसीके यज्ञों के कारण, यशदिलीप खदवांग-(सू. इ.) अयोध्या के सुविख्यात | प्रक्रिया निश्चित हुई। इसके यज्ञ में सोने का यूप था। रघु राजा का पितामह । महाभारत में, खट्वांग नाम से इसका रथ पानी में डूबता नहीं था। दिलीप के घर पर इसका निर्देश प्राप्त है । रामायण में, भगीरथ का पिता | 'वेदघोष,' 'धनुष की रस्सी की टॅकार', 'खाओ', 'दिलीप (प्रथम), एवं यह, ये दोनों एक ही माने गये है। | ‘पियो', एवं 'उपभोग लो', इन पांच शब्दों का उपयोग किंतु वे दोनों अलग थे। | निरंतर होता था (म. द्रो. परि. १. क्र. ८. पंक्ति. ५१० २७१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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