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दान्त
प्राचीन चरित्रकोश
दिडि
दान्त-राजा भीमक का पुत्र तथा दमयंती का भ्राता ६१.१७)। यह पैतृक नाम अन्यत्र भी कई बार आया (म. व. ५०.९)।
है (तै. सं. २.६.२.३; मै. सं. १.४.१२, ६.५, सां. ब्रा. २. विकुंठ देवों में से एक ।
७.४)। यह नाम केशिन् तथा रथप्रोत के लिये भी ३. सुधामन् देवों में से एक ।
प्रयुक्त है (मै. सं. २.१.३; दाल्भ्य देखिये)। ४. एक ऋषि । इसने भद्रतनु नामक ब्राह्मण को काम, दालकि-एक ऋषि । वायुमत में यह व्यास की क्रोध, लोभ आदि के लक्षण बताये, एवं उनका त्याग ऋशिष्यपरंपरा के शाकपूर्ण रथीतर का शिप्य था। करने को उसे कहा (पद्म. क्रि. १७)।
दाल्भि-बक का पैतृक नाम (का. सं. १०.६)। दान्ता-एक अप्सरा (म. अनु. ५०.४८ कुं.)। दाल्भ्य-- एक राजा 'दाल्भ्य' का शब्दाशः अर्थ दाम-सुख देवों में से एक।
| 'दल्भ का वंशज' हैं । यह दाभ्यं का पर्यायवाची शब्द दामग्रन्थिन्--अज्ञातवास में विराटगृह में रहनेवाले रहा होगा । यह केशिन् (पं. बा. १३.१७.८), चेकितान नकुल का नाम (म. वि. ३.२)। भांडारकरपाठ-ग्रंथिक । (छां. उ. १.८.१; जै. उ. ब्रा. २.३८.१) तथा बक (छो. दामघोषि--शिशुपाल का पैतृक नाम।
उ. १.२.१३, १२.१.३; का. सं. ३०.२; म. व. २७५ दामचंद्र-पांडवपक्षीय एक राजा (म. द्रो. १३३. २८२.१७) का पैतृक नाम है। दाभ्य एवं दाल्भ्य में ३७).।
गड़बड़ी जान पड़ती है (दाय॑ देखिये) । एक वैयाकरण दामोष्णीष-एक ऋषि (म. स. ४.११)। के नाते भी इसका उल्लेख प्राप्त है (शु. प्रा. ४.१६)।
दारुक--कृष्ण का सारथि (म. व. २३.२७; भा. २. द्युमत्सेन का मित्र । १०.५०; पद्मा. उ. २५२)। रथ सज्ज करने के बारे में, ३. उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक (पद्म.. कृष्ण से इसका संभाषण हुआ था । भारतीययुद्ध में, यह | सृ. ७)। पांडवों के पक्ष में शामिल था (म. द्रो.५६.१७-४१; मौ. दावसु अंगिरस--एक सामद्रष्टा (पं. बा. २५.५.
१२.१४)। २. एक शिवावतार। यह वाराहकल्प के वैवस्वत दाशर्म-आरुणि का समकालीन एक आचार्य (क. मन्वंतर के इक्कीसवीं चौखट में संपन्न हुआ। इस कारण, | सं. ७.६)। उस स्थान का नाम दारुवन हुआ। प्लक्ष, दार्भायणि, केतुमत् दाशाह-मथुरा का राजा व्योमन् का पैतृक नाम । तथा गौतम इसके पुत्र थे (शिव. शत. ५)। शिवमंत्र से यह पापमुक्त हुआ (स्कंद. ३.३.१)। ३. एक दैत्य ।
२. विदुरथ का मातृक नाम । दारुकि-दारुक का पुत्र तथा प्रद्युम्न का सारथि (म. दाशूर--तपस्वी शरलोम का पुत्र । यह मगध देश व. १९.३)।
के एक पर्वत पर रहता था। शरलोम की मृत्यु होने के दारुण-कश्यप एवं अरिष्टा का पुत्र ।
कारण, यह शोकमग्न हुआ। तब इसके सामने अग्नि २. गरुड का पुत्र (म. उ. ९९.९)।
प्रकट हुआ। उसने वृक्षाग्र पर बैठ कर स्थिर रहने का वर, दाढजयन्ति-वैपश्चित गुप्त लौहित्य तथा वैयश्चित् इसे प्रदान किया। इस प्रकार कदंब वृक्ष के अग्र पर दृढजयन्त लौहित्य का पैतृक नाम (जै. उ. ब्रा. ३.४२.१)। यह बैठ गया। उससमय सारी दिशाएँ इसे स्त्रियों के
दातेय--एक यज्ञवेत्ता । यज्ञ के संबंध में यथार्थ मत समान दिखने लगी । फिर भी मानसिक यज्ञ से इसे देनेवाला, ऐसा इसका उल्लेख मिलता है (क. सं. ३१. | आत्मबोध हुआ। २)। दृति एवं वातवत् ऋषियों का यह पैतृक नाम है। पश्चात् कदंब दाशूर ऋषि नाम से यह प्रसिद्ध हुआ उन्होंने खांडववन में सत्र किये थे। वह सत्र वातवत् ने इसे वनदेवता से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसे इसने अधूरा छोडा, परंतु दृति ने पूरा किया। इसलिये दार्तेयों का ज्ञानोपदेश दिया (यो. वा. ४. ४.८-५१)। उत्कर्ष हुआ (पं. ब्रा. २५.३.६; अराल देखिये)। दासवेश--वेश देखिये। दार्भायणि-दारुक नामक शिवावतार का शिष्य। दिक्पति-मत्य देवों में से एक ।
दाद्य--रथवीति का पैतृक नाम (बृहद्दे. ५.४९. दिडि-सूर्य के सामने रथ में बैठनेवाला एक सेवक । ७९)। ऋग्वेद की ऋचा में इसका उल्लेख है (ऋ. ५. यह सूर्य का प्रधान, एवं एकादश रुद्रो में से एक था
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