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________________ दशशिम प्राचीन चरित्रकोश दानिन दशशिप्र - एक ऋत्विज । इसके घर सोम पी कर इंद्र तक, समृद्ध जीवन व्यतित कर रहे थे (श. बा. २.४.४. । प्रसन्न हुआ था (ऋ. ८.५२.२.) । ६ दक्ष देखिये) । दशारि - ( सो. फो. ) भविष्यमत में निरावृत्ति का पुत्र | अन्यत्र इसे दशार्ह कहा गया है। दशार्णाधारराज सुबल की कन्या, तथा धृतराष्ट्र की पत्नी । दशाई- - ( सो. क्रोष्टु. ) भागवत, विष्णु तथा व मत में निर्वृति का पुत्र । मत्स्यमत में यह निर्वृति का पौत्र एवं विदूरथ का पुत्र था । दशावर-- वरुणलोक का एक असुर । दशाश्व (इ.) इक्ष्वाकु के शतपुत्रों में से एक (म. अनु २.६ कुं.) । यह महिष्मती नगरी का राजा था। इसे मदराव नामक पुत्र था । दशोणि— ऋग्वेदकालीन एक राजा । पणियों से इसका बुद्धल रहा था, तब इंद्र ने इसकी सहायता कर, पणियों को भगाया (ऋ.६.२०.४) । योतमान से हुए युद्ध में, दशोणि पर इंद्र ने कृपा की (ऋ. ६.२०.८ ) । अन्य स्थानों पर आये 'दशोणि ' शब्द का अर्थ 'दस ऊंगलियाँ' । यह व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है (. १०.९६.१२) दशोण्य- एक ऋत्विज । इस पर इंद्र की निरतिशय कृपा थी. (ऋ ८.५२.२)। दशशिप्र के साथ इसका . निर्देश प्राप्त है । । अथर्ववेद एवं यजुर्वेद संहिताओं में, शतानीक सात्रजित ऋषि को दाक्षायणों ने स्वर्ण प्रदान करने का निर्देश प्राप्त है (अ. वे. १.३५.१-२९ वा. सं. २४.५१५२; खिल. ४.७.७.८ ) । कई जगह, दाक्षायण ' व्यक्तिवाचक न होकर, 'स्वर्ण' अर्थ से भी प्रयुक्त किया है (ए. आ. २.४० ) । महामाध्य में, पाणिनि को दाक्षायण कहा गया है । दाक्षायणी --सती का नामांतर | दाक्षि-- अंगिरस कुल का गोत्रकार । २. अत्रिकुल का गोत्रकार । दाक्षीपुत्र - पाणिनि देखिये । दांडिक्य- एक भोजवंशीय नृप। एक ब्राह्मणकन्या का इसने अपहरण किया । उससे इसका नाश हुआ । दंड राजा एवं यह दोनो एक ही होंगे (कौटिल्य ४ २८ ) । पृ. दातृमुख देवों में एक । दात्रेय - अराल शौनक का पैतृक नाम (इन्डि. स्टूडि. ४.३७३) । ' दार्तेय ' ( दृति का वंशज) इसीका ही पाठभेद रहा होगा। दाधीच व्यथन का पैतृक नाम ' दाधीच का शब्दशः अर्थ 'दध्यञ्च का वंशज, ' ऐसा होता है (पं. बा. १४.६ च्यवन देखिये) । दानपारावत देवों में से एक। २. सुख देवों में से एक । दानकाय -- वसिष्ठ गोत्र का ऋषिगण । दानपति अक्रूर का नामांतर ( भा. १०.४९ ) । संतति 'दानव' कहलाती थी। दानव एक मानव जाति कश्यप तथा दन की दस्यवे वृक—एक राजा । इसके औदार्य का वर्णन प्राप्त है (ऋ. ८. ५५.१ ५६ . २ ) । यह दस्युओं का विजेता, " एवं स्तावकों का उदार प्रतिपालक था । वालखिल्यों में, कृश तथा पृथन के सूक में, इसका वर्णन आया है। इससे प्रतीत होता है कि, वे इसके आश्रयदाता थे। इसका ऋषि के रूप में भी निर्देश प्राप्त उल्लेख है (८५१.२) । ग्वेद के छप्पनचे मुक्त से तर्क चलता है कि इसका पिता पूतक्रतु तथा माता पूतक्रता थी (ऋ. ८.५६.४ ) । दुख-अश्विनीकुमारों में से एक सहदेव इसीके अंश से उत्पन्न हुआ था ( भा. ९.२२ ) । दहन -- एकादश रुद्रों में से एक । दाकव्य एवं दाकायनपसिकुल का गोपकार शंचर, हिरण्यकशिपु । करण | दाक्षपाय कश्यपकुल का गोत्रकार । " दाक्षायण एक राजवंश 'दक्ष राजा के वंशज - । संभवतः इस नाम से प्रसिद्ध हुए थे। इस वंश के राजा संस्कारविशेष के कारण, ‘शतपथ ब्राह्मण' के समय २६९ देव एवं असुरों के संग्राम में, देवों के विरुद्ध पक्ष में दानव, असुर, राक्षस, पिशाच, आदि शामिल थे। दानवों में निम्नलिखित लोग प्रमुख माने जाते थे-केशिन्, तारक, नमुचि, नरक, बाण, विप्रचित्ति, वृषपर्वन्, दानवों का निवासस्थान प्रायः हिमालय के पश्चिम भाग का पर्वतप्रदेश रहा होगा । २. कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार (कश्यप तथा दनु देखिये) । दानिन् मुख देवों में से एक। -
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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