________________
दशरथ
प्राचीन चरित्रकोश
दशवज
छाने लगी थी। कैकेयी से उत्पन्न पुत्र को, अयोध्या का होने के लिये कहा। विष्णु ने वह मान्य कर के 'चरु' सम्राट् बनाने का वचन दे कर, इसने कैकेयी के पिता को | (यज्ञ की आहुति के लिये पके चावल) में प्रवेश किया। कन्यादान के लिये राजी किया था (वा. रा. अयो. दशरथ ने उस चरु के चार भाग कर के अपनी चार स्त्रियों १०७. ३)। राम के यौवराज्याभिषेक के समय भी, | को दिये। बाद में कौसल्या, सुमित्रा, सुरुषा तथा सुवेषा कैकेयी युवा अवस्था में थी, एवं बुढा दशरथ उसकी मुट्ठी | को क्रमशः राम, लक्ष्मण, भरत, तथा शत्रुघ्न नामक पुत्र में था।
हुएँ । ब्रह्मदेव ने उनके जातकर्मादि संस्कार किये । (पन. ___ अपने बुढे पिता ने अपने माँ को विवाह के समय | पा. ११६)। दिये वचन के कारण, राम युवराज नहीं बनेगा, यह | पूर्वजन्म में यह धर्मदत्त नामक विष्णुभक्त ब्राह्मण कैकेयीपुत्र भरत को अच्छा नही लगा। इस कारण, वह था । इसने राक्षसयोनि प्राप्त हुएँ कलहा नामक स्त्री को अपने ननिहाल चला गया। यह अवसर देख कर, उसके | | अपना कार्तिकत्रत का आधा पुण्य दिया, एवं उसका
हाल में से किसी को न बताते हुएं, दशरथ ने | उद्धार किया। इस जन्म में कलहा कैकेयी नाम से इसकी राम को यौवराज्याभिषेक करने की तैय्यारी की। किंतु | पत्नी बनी (पद्म. उ. १०६-१०७)। एक संकट टालने के लिये इसने कोशिस की, तो उधर | गृहराज शनि के द्वारा, 'रोहिणीशकट' नक्षत्रमंडल कैकेयी ने दूसरा ही संकट खड़ा किया। परंतु उससे का भेद होने का संकट, एक बार, पृथ्वी पर आया। यह सूर्यवंश का यश मलिन न हो कर, अधिक उज्वल ग्रहयोग ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से बड़ा ही खतरनाक ही हुआ।
समझा जाता है। उससे बारह वर्षों तक पृथ्वी में अकाल __इसे शांता नामक एक कन्या थी। उसे इसने अंगदेश | पड़ता है। उसे टालने के लिये, यह स्वयं नक्षत्रमंडळ में का राजा, एवं इसका परममित्र रोमपाद को दत्तक दिया | गया। धनुष्य सज्ज कर, इसने भयंकर संहारास्त्र की योजना था। ऋश्यशृंग ऋषि को शांता विवाह में दे कर, उस | की। यह देख कर, शनि इससे प्रसन्न हुआ, एवं उसने ऋषि के सहाय से, इन दोनों मित्रों ने पुत्रकामेष्टियज्ञ का | इष्ट वर माँगने के लिये इसे कहा । तब इसने कहा, 'जब समारोह किया (भा. ९. २३.८)।
| तक पृथ्वी है, आकाश में चन्द्रसूर्य हैं, तब तक तुम पुत्रकामेष्टियज्ञ की प्रेरणा इसे कैसी मिली, इसकी | रोहिणीशकट का भेद मत. करो'। यह वर प्राप्त करते कथा पद्मपुराण में दी गयी है। इसने सौ अक्षौहिणी ही, दशरथ अपने नगर में वापस आया (पन. उ.३३)। सेना के साथ, सुमानसनगरी पर आक्रमण किया, अंत में श्रावण के शाप के अनुसार, पुत्रशोक से वहाँ के राजा साध्य से एक माह युद्ध कर के उसे बंदी | इसकी मृत्यु हुअी (श्रावण देखिये)। दशरथ की मृत्यु बनाया। तब उसका अल्पवयी पुत्र भूषण इसके साथ युद्ध | के बाद, भरत आने तक इसका शव अच्छा रहे, इस करने आया । परंतु उसका भी इसने पराभव किया। | हेतु से, उसे तेल में रखा गया था (आ. रा. सार.६)। युद्धसमाप्ति के बाद, एक माह तक, यह साध्य तथा | २. (सू. इ.) सूर्यवंश का राजा । यह मूलक का पुत्र भूषण के साथ रहा। उन दोनों का परस्परप्रेम देख कर | था । रामपिता दशरथ के पूर्वकाल में यह अयोध्या का इसके मत में विचार आया, 'मुझे भी भूषण के समान | राजा था। गुणवान् पुत्र हो'। इसने साध्य राजा को पुत्रप्राप्ति । ३. (सो. क्रोष्टु.) भविष्य, भागवत, विष्णु, वायु तथा का उपाय पूछा । साध्य ने इसे 'विष्णु को संतुष्ट करने | पन के मतानुसार नवरथ का पुत्र (पन. सू. १३)। को कहा।
| मत्स्य के मतानुसार इसे दृढरथ नाम है। बाद में सुमानसनगर साध्य राजा को देकर, यह ४. (मौर्य. भविष्य.) विष्णु के मतानुसार सुयशस् का अयोध्या लौट आया । अनेक व्रत करने के बाद इसने पुत्र । मत्स्य के मतानुसार यह शक का नाती था । अन्य पुत्रकामेष्टियज्ञ किया। तब विष्णु ने प्रकट हो कर इसे वर पुराणों में इसका उल्लेख नहीं है। माँगने के लिये कहा। तब इसने दीर्घायुषी, धार्मिक तथा ५. रोमपाद १. देखिये। लोगों पर उपकार करनेवाले चार पुत्र माँगे। विष्णु ने दशवज-एक राजा । अश्विनों ने इसका संरक्षण कौसल्या, सुमित्रा, सुरुपा, तथा सुवेषा को चार पुत्र होंगे, | किया था (ऋ. ८.८.२०)। इंद्र ने भी इसपर कृपा यों आशीर्वाद दिया। दशरथ ने विष्णु से अपना पुत्र | की थी (ऋ. ८.४९.१०; ५०.९)। .
२६८