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दिलीप
प्राचीन चरित्रकोश
दिवोदास
से आगे; शां. २९.६४-७२)। सम्राट तथा चक्रवर्ति | आश्रम में छिपने के लिये मजबूर कर दिया (म. अनु. के नाते इसका निर्देश किया जाता था।
८ कुं.)। प्रतर्दन के साथ भारद्वाज ऋषि का स्नेहसंबंध ३. (सो. कुरु.) एक पौरव राजा। भागवत मत में | था (क. सं. २१.१०)। ऋश्य का, एवं विष्णु, मत्स्य तथा वायु के मत में भीमसेन | इसकी पत्नी का नाम दृषद्वती। इसे दृषद्वती से ही का पुत्र।
प्रतर्दन हुआ था (ब्रह्म. ११.४०.४८) । प्रतर्दन, दिलीवय--भविष्य मत में मनुवंशी दशरथ का पुत्र । अप्रतिरथ, शत्रुजित्, ऋतध्वज, तथा कुवलाश्व ये सारे दिवंजय-उदारधी एवं भद्रा का पुत्र ।
एक ही है (भा. ९.१७.६)। दिवस्पति-रोच्य मन्वंतर में होने वाला इंद्र । _इसे ययातिकन्या माधवी से प्रतर्दन हुआ, यह कथा दिवस्पर्श--तुषित देवों में से एक ।
महाभारत में दी गयी है (म. उ. ११५.१.१५)। किंतु दिवाकर-गरुड का पुत्र (म. उ. ९९.१४)। कालदृष्टि से वह विसंगत अतएव असंभव मालूम पडती
२. (स. इ. भविष्य.) भागवतमत में भानु राजा का | है। यह यमसभा का एक सदस्य था (म. स. ८.११)। पुत्र । इसका पुत्र सहदेव । वायुमत में यह प्रतिव्यूह का | 'भास्करसंहिता' के 'चिकित्सादर्पणतंत्र' का यह कर्ता है पुत्र, एवं मस्त्य तथा विष्णुमत में प्रतिव्योम का पुत्र | (ब्रह्मवे. २.१६)। धन्वन्तरि के आगे दिवोदास शब्द था। इसके शासनकाल में 'मस्यपुराण' का निर्माण हुआ | जोड़ा जाता है । वह शब्द वंशदर्शक होगा। (मत्य. २७१)। पौरव राजा अधिसोमकृष्ण तथा २. (सो. काश्य.) काशी देश का राजा । यह सुदेव मगध देश का राजा सेनजित् इसके समकालीन थे। | का पुत्र तथा अष्टारथ का पिता था। परंतु ब्रह्म तथा महा
३. (सो.) भविष्य मत में आतिथ्यवर्धन का पुत्र। भारत के सिवा अन्य स्थान की बंशावलि में, इतनी दिवावप्र-कश्यपकल का गोत्रकार ऋषिगण ।। जानकारी भी नहीं मिलती। दिवावस एवं दिवाबसिष्ठ ये इसीके पाठभेद है।
___ हैहयवंशों से तुलना करने पर काश्यवंश में दो दिवावष्टाश्व--कश्यपकुल का गोत्रकार । दिवोदासों को मान्यता देना अनिवार्य प्रतीत होता दिवावस--दिवावष्ट देखिये।
है। इसने भद्रश्रेण्य से काशी जीत ली, एवं वहाँ दिवावसिष्ठ-दिवावष्ट देखिये।
अपना राज्य स्थापित किया। किंतु निकुंभ के शाप से, दिवि-सत्य देवों में से एक।
इसे काशी छोड़ कर, गोमती तीर पर दूसरी राजधानी दिविरथ-(सो. अनु.) भागवतमत में खनपान | स्थापित करनी पड़ी। अतः हैहय तथा काश्य घरानों के का पुत्र, एवं रथ राजा का पिता । विष्णुमत में यह पार का झगड़ा कुछ काल के लिये स्थगित हुआ। किंतु भद्रश्रेण्य एवं वायु तथा मत्य मत में दधिवाहन का पुत्र था। इसका का पुत्र दुर्मद बड़ा होने पर, उसने दिवोदास का पराभव पुत्र धर्मरथ । महाभारत मे इसे दधिवाहन का पुत्र कह किया (म. अनु. ३०; ब्रह्म. ११.४८; १३.५४; ह. वं. कर, इसका पुत्र अंग बताया है (म. शां. ४९.२०२)। १.२९; ब्रह्मांड. ३.६७; वायु: ९२.२६)। इसकी पत्नी
दिवीलक-(आंध्र. भविष्य.) विष्णुमत में लंबोदर का नाम सुयशा था। उससे इसे अष्टारथ नामक पुत्र का पुत्र । इसका नाम अपीतक एवं चिवीलक भी प्राप्त है। हुआ था (ब्रह्म. १३.३१)।
दिवोदास--(सो. काश्य.) भागवत तथा विष्णुमत दिवोदास अतिथिग्व-(सो. नील.) वैदिक युग का में भीमरथपुत्र तथा विष्णुमत में अभिरथपुत्र । ब्रह्म एक प्रमुख राजा । यह वयश्व का पुत्र, एवं भरतवंशातथा वायु मत में यह भीमरथ का ही दसरा नाम न्तर्गत तृत्सु लोगों का सुविख्यात राजा सुदास का पिता है। महाभारत में इसे काशीपति सौदेव कहा गया है। (वा पितामह) था। 'अतिथिग्व' का शब्दशः अर्थ है, इसका पितामह हर्यश्व हो कर, पिता सुदेव अथवा भीमरथ | 'अतिथि का सम्मान करनेवाला'। यह उपाधि दिवोदास था। इसका पराजय हैहय वीतहव्य ने किया। तब यह एवं सुदास को लगायी जाती थी (ऋ. १.५१.६; ७.१९. भरद्वाज ऋषि की शरण में गया।
८)। 'अतिथिग्व' की उपपत्ति सायणाचार्य ने 'अतिथिग इसके द्वारा पुत्रकामेष्टियज्ञ करने पर, इसे प्रतर्दन वा का पुत्र' ऐसी दी है (ऋ. १०.४८.८)। अप्रतिरथ नामक शत्रुनाशक पुत्र हुआ। उसने हैहय सरस्वती की कृपा से वन्यश्व को दिवोदास पुत्ररूप वीतहव्यों का पराभव किया तथा वीतहव्य को भृगु के में प्राप्त हुआ (ऋ. ६.३१.१)। यह भरतों में से एक
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