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दक्ष
प्राचीन चरित्रकोश
दक्ष प्रजापति
उदीच्य देशों में था । इनका अंक तथा लक्षण | एकबार सृष्टि निर्माण करनेवाले प्रजापति यज्ञ कर रहे (राज्यचिह्न) का निर्देश भी प्राप्त है (काशिका. ४. थे। दक्ष प्रजापति वहाँ आया। उस समय शंकर तथा ब्रह्म३. १२७)। दाक्षिकूल तथा दाक्षिकर्ष ये इनके प्रमुख देव छोड, अन्य सब देव खडे हो गएँ । इससे यह क्रोधित ग्राम थे । कर्ष का अर्थ है 'गरैया'। दाक्षि लोग प्राच्य हुआ, एवं इसने शंकर को शाप दिया। नंदिकेश्वर ने भी देश, भरत जनपद, एवं उशीनर देश के बाहर, पश्चिमो- | इसे शाप दिया। दक्ष के शाप को अनुमति देने के कारण, त्तर भारत में बसे थे। शेरकोट (उशीनर) तथा गंधार के ऋषियों को शाप मिला, 'जन्ममरणों का दुख अनुभव समीप 'दक्षसंघ' का स्थान होगा। पाणिनि स्वयं गांधार | करते हुएँ तुम्हें गृहस्थी के कष्ट उठाने पडेंगे'। इसी समय का रहनेवाला था। वह दक्षसंघ में से एक होना संभवनीय | भृगु ऋषि ने भी शंकर के शिष्यों को दुर्धर शाप दिये है। इसलिये उसको दाक्षिपुत्र कहा गया है। (वासुदेव- (भा. ४.२; ब्रह्मांड. १.१.६४)। इस प्रकार दक्ष तथा शरण-पा. भा. १४)
शंकर इन श्वसुर-दामाद में शत्रुत्व बढ़ने लगा। दक्ष कात्यायनि आत्रेय--शंख बाभ्रव्य का शिष्य ब्रह्मदेव ने दक्ष को प्रजापतियों के अध्यक्षपद का (जै. उ. ब्रा. ३.४१.१, ४.१७.१)।
अभिषेक किया। उससे गर्वाध हो कर, इसने शंकर आदि दक्ष जयंत लौहित्य-कृष्णरात लौहित्य का शिष्य | सब ब्रह्मनिष्ठों को निमंत्रित न करते हुए, यज्ञ प्रारंभ किया। (जै. उ.बा. ३.४२.१)।
प्रथम वाजपेय यज्ञ कर, बाद में बृहस्पतिसव प्रारंभ किया। दक्ष पार्वति-एक प्राचीन राजा । इसने प्रजा एवं | इस यज्ञ में दक्ष ने सारे ब्रह्मर्षि, देवर्षि तथा पितरों का समृद्धि, प्राप्त करने के लिये यज्ञ किया । इसे कुछ लोग | उनकी पत्नीयों के सहित सम्मान किया, एवं उन्हें दक्षिणा 'दाक्षायण-यज्ञ' अथवा 'वसिष्ठ-यज्ञ' कहते हैं। उसके | दे कर संतुष्ट किया । वंशजों को उस यज्ञ से राज्यप्राप्ति हुई (श. बा. १.४. दक्ष के घर में हो रहे यज्ञ की वार्ता, दक्षकन्या सती ने १.६; सां. ब्रा. ४.४)।
| सुनी । तब वहाँ चलने की प्रार्थना उसने शंकर से की। दक्ष प्रजापति-एक सृष्टिनिर्माणकर्ता देवता एवं किंतु उसने वह प्रार्थना अमान्य की । मजबूरन सती को ऋषि । ऋग्वेद में, सृष्टि की उत्पत्ति भू, वृक्ष, आशा, | अकेले ही जाना पड़ा। इसके साथ नंदिकेश्वर, यक्ष, तथा अदिति, दक्ष, अदिति इस क्रम से हुई (ऋ. १०.७२. शिवगण भी भेजे गये। यज्ञमंडप में माता तथा भगिनियों ४-५)। अदिति से दक्ष उत्पन्न हुआ, एवं दक्ष से के सिवा, अन्य किसी ने सती का स्वागत नहीं किया। अदिति उत्पन्न हुई, यों परस्पर विरोधी निर्देश ऋग्वेद में स्वयं दक्ष ने उसका अनादर किया। इस कारण सती ने हैं। इस विरोध का परिहार, 'ये सारी देवों की कथा हैं | पिता की खूब निर्भर्त्सना की, तथा क्रोधवश वह स्वयं आग (देवधर्म), यों कह कर निरुक्त में किया गया है (नि. में दग्ध हो गयी। ११.२३)।
। यह वर्तमान सुन कर, शंकर ने वीरभद्र का निर्माण पुराणों में दी गयी 'दक्षकथा' का उद्गम उपरिनिर्दिष्ट | किया, एवं उसे दक्षवध करने की आज्ञा दी। महाभारत ऋग्वेदीय कथा से ही हुआ है। पुराणों में, दक्ष प्रजापति
के अनुसार, वीरभद्र शंकराज्ञा के अनुसार दक्षयज्ञ में गया। ब्रह्मदेव के दक्षिण अंगूठे से उत्पन्न हुआ (विष्णु
उसने दक्ष से कहा कि, मैं तुम्हारे यज्ञ का नाश करने १.१५, ह. वं. १.२ भा. ३.१२.२३) । स्वायंभुव
आया हूँ। तत्काल दक्ष शंकर की शरण में आया (म. मन्वंतर में यह पैदा हुआ था। स्वायंभुव मनु की कन्या | शां. परि. १.२८)। फिर भी उसने दक्षवध किया। प्रसूति इसकी पत्नी थी। इससे दक्ष को सोलह कन्याएँ । दक्षवध के बाद ब्रह्मदेव ने शंकर का स्तवन किया । तब हुई । उनमें से श्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, | दक्ष को बकरे का सिर लगा कर जीवित किया गया । तत्काल क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, तथा मूर्ति ये तेरह | दक्ष ने शंकर से क्षमा माँगी (भा. ४.३-७)। वायुपुराण कन्याएँ इसने प्रजापति को भार्यारूप में दी। स्वाहा अग्नि | में दक्ष का अर्थ 'प्राण' दिया है ( १०.१८) दक्ष का को, स्वधा अग्निष्वात्तों को तथा सोलहवी सती शंकर को | यज्ञ दो बार हुआ। तथा ऋषि दो बार मारे गये। प्रथम दी गयीं (भा. ४.१)। ब्रह्मदेव के दाहिने अंगूठे से जन्मी | यज्ञ, स्वायंभुव मन्वंतर में हुआ। दूसरा यज्ञ चाक्षुष हुई स्त्री दक्ष की पत्नी थी। उसे कुल ५०० कन्याएँ हुई | मन्वंतर में संपन्न हुआ (ब्रह्मांड, २.१३.४५, ६५-७२, (म. आ. ६०.८-१०)।
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