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________________ दक्ष प्राचेतस प्राचीन चरित्रकोश दंड दक्ष प्राचेतस प्रजापति--एक ऋषि । प्राचीनबर्हि- पुराण में, दक्षकन्याओं का विभाजन कुछ भिन्न है। उन पुत्र प्रचेतस् एवं कंडुकन्या मारिषा का यह पुत्र था। ग्रंथों में, इसकी कन्याओं की संख्या साठ दी गई है। उनमें सवर्णा नामक समुद्रकन्या को प्राचीनबर्हि से प्रचेतस् | से धर्म को दस, कश्यप को तेरह, सोम को सत्ताईस, नामक दस पुत्र हुएँ। उनके तप करते समय, पृथ्वी | अरिष्टनेमि को चार, भृगुपुत्र को दो, अंगिरस को दो, पर अनेक जातियों के वृक्ष बढ़े। अत्यधिक वृक्षवृद्धि के | इसने विवाह में देने का निर्देश है (ह. वं. १.३; विष्णु कारण, पृथ्वी जंगलमय हो गई। अनाज का उत्पादन बंद | १.१५)। दक्ष को सुव्रता नामक एक कन्या और थी। हो गया। इससे क्रुद्ध हो कर वे दस प्रचेतस् , वृक्षों का | उसे दक्ष, ब्रह्म, धर्म, तथा रुद्र नामक चार पुत्र हुएँ। नाश करने लगे। तब वृक्षों के राजा सोम ने उनसे कहा, | उन चार पुत्रों में से चार मनु उत्पन्न हुएँ, जिनके वर्ण से 'संपूर्ण पृथ्वी अब वृक्षशून्य हो गई हैं। अब वृक्षों का नाश | पुत्रत्व तय होने के कारण, उन्हें सावर्णि कहते हैं (वायु. बंद कीजिये । पश्चात् कंडु की कन्या मारिषा से प्रचेतस् | १००.४२)। का विवाह हुआ। . ___दक्ष के पहले, संकल्प, दर्शन, एवं स्पर्श से संतति सोम का आधा तेज तथा प्रचेतस् का आधा तेज मिल | निर्माण होती थी। दक्ष के पश्चात् मैथुन से संतति-निर्मिति कर, इसे दक्ष नामक तेजस्वी पुत्र हुआ। यही प्राचेतस | होने लगी (मत्स्य ५.२)।। दक्ष प्रजापति है (ह. वं. १.२; म. आ. ७०; भा. ४. सृष्टि-निमाण का क्रम दक्ष के चरित्र म दिया ३०:६.४, ब्रह्म. २.३४,३९-४०; विष्णु. १.१४.१५)। निर्माणशास्त्र पर यह कथा प्रकाश डालती है। दक्ष ने अपने वीर्य के द्वारा, एवं मन के द्वारा सृष्टि का दक्षपितर--दक्ष प्रजापति के पुत्रों का नामांतर (तै. निर्माण किया । मानससृष्टि से प्रजासृष्टि वृद्धिंगत नहीं हुई। | सं. १.२.३)। इसलिये विंध्याचल के समीप के अघमर्षणतीर्थ में इसने | दक्षसावर्णि--दक्ष का पुत्र । यह दक्ष तथा उसी की तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न हो कर, श्रीहरि ने कन्या सुव्रता से चाक्षुष मन्वंतर में उत्पन्न हुआ। यह पंचजन प्रजापति की कन्या असिनी (वीरिणी) भार्या नवम मन्वन्तराधिप मनु था । रूप में इसे दी, एवं प्रजावृद्धि करने के लिये इसे कहा। यह वरुण से उत्पन्न हुआ था (भा. ८.१३.१८)। उस स्त्री से इसे हर्यश्व नामक दस हजार पुत्र हुएँ । दक्ष | इसे दत्तपुत्र भी कहा गया है। किंतु 'दत्त' दक्ष का ही ने उन्हें प्रजा निर्माण करने के लिये कहा। परन्तु नारद अपभ्रंश होगा (मार्क. ९१; मनु देखिये)। इस मन्वन्तर की सलाह के अनुसार, उन्होंने यह कार्य नहीं किया। का अधिपति एवं वैवस्वत मनु का पुत्र करुष माना गया . बाद में नारद के कहने पर, ब्रह्मदेव ने दक्ष को समझाया । है (दे. भा. १०.१३)। इसे रोहित नामांतर है (ह. वं. -तब इसने पुनः साठ कन्याएँ निर्माण की (भा. ६.४-६)। १.७.६३; वायु. १००)। • प्राचेतस दक्ष को इस के समान गुणशील संपन्न एक हजार दक्षिणा--रुचि को आकृति से उत्पन्न कन्या । यह पुत्र हुएँ। उन्हें नारद ने 'मोक्षशास्त्र' एवं ' सांख्यज्ञान' | यज्ञ को दी गई थी। यज्ञ से इसे तुषित नामक बारह का उपदेश दे दिया। इस उपदेश से वे विरक्त हो कर, घर पुत्र हुएँ । यज्ञ इसका भाई ही था। किंतु वह विष्णु का से निकल गएँ । तब इसने 'पुत्रिकाधर्म' के अनुसार, अवतार होने के कारण, उसने लक्ष्मीरूप से अवतीर्ण दौहित्रों को अपना पुत्र मानने का संकल्प किया, एवं उस अपनी दक्षिणा नामक बहन से ही विवाह किया (भा. कार्य के लिये पचास कन्याएँ उत्पन्न की (म. आदि. ४.१)। ७५.६-८)। | एक बार राधा के सामने, दक्षिणा कृष्ण की गोद में उनमें से धर्म को दस, कश्यप को तेरह, चन्द्र को | बैठ गई । क्रोधित हो कर, राधा ने इसे वहाँ से भगा सत्ताईस, भूत, अंगिरस् तथा कृशाश्व, इनको प्रत्येक को दिया। बाद में यह लक्ष्मी के शरीर में प्रविष्ट हुई। वहाँ से दो दो, तथा ताय नामक कश्यप को चार कन्याएँ ब्रह्माजी के पास गई । पश्चात् ब्रह्माजी से इसका विवाह इसने विवाह में दे दी (भा. ६.४-६)। अन्य स्थान पर | संपन्न हुआ (ब्रह्मवै. २.४२)। दिया है कि, असिनी वीरण प्रजापति की कन्या थी, | दंड-(सू. इ.) इक्ष्वाकुपुत्रों में से कनिष्ठ पुत्र । जिससे दक्ष को पाँच हजार पुत्र हुएँ (ब्रह्मांड. ३.२.५)। यह जन्मतः मूढ, विद्याहीन तथा उन्मत्त था । यह अति वीरिणी तथा असिनी एक ही है। हरिवंश तथा विष्णु- शूर तथा विद्वान था, परंतु इसके घोर नामक दोष के २५९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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