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त्वष्ट
प्राचीन चरित्रकोश
दक्ष
इसने इंद्र के नाश के लिये वृत्र निर्माण किया ( भा. ६. इसे विरोचना नामक स्त्री थी, जिससे इसे विरज नामक
१६१८५४ उ ९.४३ विश्वरुप देखिये) ।
पुत्र उत्पन्न हुआ (भा. ५. १५.१५ ) । ६. ग्यारह रुद्रों में से एक।
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२. महाभारतकालीन स्थापत्यविशारद । युधिष्टिर के अर्थराज्याभिषेक के समय इंद्र ने इसे भेज कर इंद्रप्रस्थ नगरी तयार करने को कहा । तदनुसार इसने उस नगरी की निर्मिति की (म. आ. १९९६१९८०० ) । खांडववन के दाह के समय, इंद्र की मदद करने यह उपस्थित था ।
३. कश्यप तथा अदिति का पुत्र एक आदित्य ( भा. ६.६.३९) । यह प्रत्येक इप ( आश्विन ) माह में प्रकाशित होता है ( भा. १२.११.४३ ) ।
४. प्रभास बहु तथा अंगिरसूकन्या ब्रह्मवादिनी का पुत्र (भवि. ब्राह्म. २.७९.१६ - १७) | यह प्रत्येक फाल्गुन माह में प्रकाशित होता है। इसकी ११०० किरणें हैं (भवि. ब्राह्म. ७८ ) ।
४. (स्वा. प्रिय.) भागवत मतानुसार राजा भौवन
तथा दूषणा का पुत्र विष्णु मतानुसार मनस्तु का पुत्र । ।
दंष्ट्र-- लंकास्थित एक राक्षस ( वा. रा. सुं. ६ ) । दंष्ट्रा- कश्यप तथा मोधा की कन्या पुलह की
स्त्री ।
दक्ष - अंगिराकुल का गोत्रकार ।
२. अंगिरा तथा सुरूपा का देवपुत्र ( मत्स्य. (२) ।
१९५.
३. गु तथा पौलोमी का देवपुत्र ( मत्स्य. १९५६.१३) । ४. बाष्कल का पुत्र ( ब्रह्माण्ड २.५.२८-३९ ) । ५. ( सो. कुरु. ) मत्स्य मतानुसार देवातिथि का पुत्र इसे विष्णु तथा वायु के मतानुसार ऋक्ष एवं भागवत मतानुसार ऋश्य कहा है।
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७. तारासुर तथा देवताओं के संग्राम में तारासुर की ओर का एक दानव ( मत्स्य. १७२ ) ।
त्वष्टाधर शुक्राचार्य का एक पुत्र यह असुरों का याजक था । यह अत्यंत तेजस्वी, तथा ब्रह्मविद्या में प्रवीण था ( म. आ. ५९. ३६ ) | भांडारकर इन्स्टिटयूट महाभारत में ' त्वष्टावर ' यों पाठ उपलब्ध है ।
त्वाष्ट्र - त्वष्टृ प्रजापति का पुत्र ( भा. ६.९.१८ ) । आभूति और विश्वरुप का यह पैतृक नाम है।
द
त्वाष्ट्रीय की कन्या। यह आदित्य को दी गयी । थी । इसे अश्विनीकुमार नामक दो पुत्र उत्पन्न हुएँ (म. आ. ६०.२४; संशा देखिये) ।
में, इस का एक गद्य उद्धरण भी ' अपरार्क' में दिया गया है (अ. १६८) । 'नौ अदेय वस्तुओं का विवरण भी इसने किया है ( अपरार्क. ४०४ ) । ' जीवानंद संग्रह ' में दक्षस्मृति दी गई है, जिसके सात भाग तथा २२० श्लोक है | अह्निक, संस्कार, योग, तथा व्यवहार आदि का उस स्मृति में विचार किया गया है। विश्वरूप द्वारा किये गए दक्ष का उल्लेख, मुद्रित 'दक्षस्मृति में तथा अन्यत्र भी प्राप्त हैं । अपरार्क में दक्ष के चालीस श्लोक हैं, जिस में से कुछ दक्षस्मृति में अप्राप्य हैं। डेक्कन ' कॉलेज के संग्रह में १९७ लोकों की 'दक्षस्मृति दी गई है (डे. कॉ. नं. १२०, इ. स. १८९५ - १९०२ ) । बंबई विश्वविद्यालय ने भी ऐसी ही 'दक्षस्मृति प्रकाशित की है।
६. एक धर्मशास्त्रकार । याज्ञवल्क्य ने धर्मशास्त्रकारों मैं इसकी गणना की है। विश्वरुप ने इसके अनेक लोक दिएँ है (याज्ञ. १. १७; ३. ३०; ३.६६; ३.१९१ ) । मिताक्षरा में इसका मत दिया है कि, ब्राह्मण क्षणभर भी आश्रमधर्म से अलिप्त न रहे (याश. १.८९) । आचार, . अशौच, श्राद्ध आदि आचारधर्म के विषय में इसके
९. पश्चिमोत्तर भारत का एक मानवसंघ (पाणिनि
श्लोक उपलब्ध है (अपरार्क. ३६८ ) । सुवर्णदान के संबंध | देखिये ) । इस संघ का राज्य पश्चिमोत्तर भारत वा
प्रा.च.३२]
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७. गरुड़ की प्रमुख संतानों में से एक (म. उ. १०१. १२ ) ।
८. एक विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३५ ) ।