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________________ त्रिशंकु दिया। बाद में देवी की कृपा से इसका पिशाचत्त्व नष्ट हो गया पश्चात् पिता ने भी इसे राजगद्दी पर बिठाया (दे. भा. ७.१२ ) । प्राचीन चरित्रकोश तपश्चर्या से वापस आने पर विवामित्र को पता चला कि, उसके कुटुंब का पालनपोषण त्रिशंकु ने किया । तन के प्रति उसे कृतक्ता महका दुई या उसने इसे वर माँगने के लिये कहा । तत्र सदेह स्वर्ग जाने की इच्छा त्रिशंकु विधामित्र के पास प्रकट की। बाद में विश्वामित्र ने इसे राज्य पर बैठाया, इससे यज्ञ करवाया, तथा सव देवता के विरोध के बावजूद उसने त्रिशंकु को स्वर्ग पहुँचा दिया ( ह. बं. १. १३) । वाल्मीकि रामायण में, त्रिशंकु की सदेह स्वर्गारोहण की कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है । सदेह स्वर्ग जाने की इच्छा त्रिशंकु सिष्ठ के सामने रखी। बसि ने इसे साफ उत्तर दिया कि यह असंभव है व यह वसिष्ठ के पुत्रों के पास गया। उन्हों ने यह कह कर इसका निषेध किया कि, जब हमारे पिता ने तुम्हें ना कह दिया है, तब तुम हमारे पास क्यों आये ? त्रिशंकु ने उन्हें जवाब दिया कि, 'दूसरी जगह जा कर, कुछ मार्ग मै अवश्य इंट खाऊँगा तब उन पुत्रों ने इसे शाप दिया कि तुम चांडाल बनोगे। बाद में यह विश्वामित्र की शरण में गया । " त्रिशंकु यह देख कर विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित हुआ वह 'रुको, रुको' ऐसा विज्ञाने लगा पश्चात् उसने दक्षिण की और नये सप्तर्षि एवं नक्षत्रमा निर्माण किये। 'अन्यमिन्द्रं करिष्यामि, लोको वा स्यादनिन्द्रकः ' ( ' या तो दूसरा इन्द्र निर्माण मैं करूँगा, या मेरा स्वर्ग ही इंद्ररहित होगा), ऐसा निश्चय कर विश्वामित्र से नया स्व निर्माण करना प्रारंभ किया । उससे देव चिंताक्रान्त हुए । उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति को गुरुशाप मिला है, वह स्वर्ग के लिये योग्य नहीं हैं। विश्वामित्र ने कहा, 'मैं अपनी प्रतिज्ञा असल नहीं कर पता तब देवताओं ने उसे मान्यता दी। 'पःस्थितज्योतिष्क के बाजू में दक्षिण की ओर तुम्हारे नक्षत्र रहेंगे, तथा उनमें त्रिशंकु रहेगा, ऐसा आश्वासन दे कर, विश्वामित्र की प्रतिशा देवों ने पूर्ण की ( वा. रा. बा. ५७-६१ ) पचात् अपने कान में दिशेकुभाख्यान के कारण बहुत भारी चित्र आया है यह सोच कर विश्वामित्र ने अपनी तप का स्थान दक्षिण की ओर पुष्करतीर्थ पर बदल दिया (६२) । , विश्वामित्र ने उसे सदेह स्वर्ग ले जाने का आश्वासन दिया, एवं सब को यश के लिये निमंत्रण दिया। वसिष्ठ को छोड़कर अन्य सारे ऋषियों ने विश्वामित्र के इस निमंत्रण का स्वीकार किया किंतु वसिष्ठ ने रुट शब्दों में संदेश भेजा कि, 'जहाँ यश करनेवाला चांदाल हो उपाध्याय क्षत्रिय हो, वहाँ कौन आवेगा? इस यज्ञ के द्वारा स्वर्ग में भी भला कौन जावेगा ?' यह संदेश सुन कर विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित हुआ । उसने सारा वसिष्ठकुल भस्मसात् कर दिया एवं बसि को शाप दिया कि, अगला जन्म तुम्हें डोम के घर में मिलेगा ' । विश्वामित्र का यश शुरू हुआ। विश्वामित्र अध्यर्यु के स्थान में था। निमंत्रित करने पर भी देवता यज्ञ में नहीं आयें। तब अपना तपः सामर्थ्य खर्च कर विश्वामित्र ने त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग ले जाना प्रारंभ किया। देखते देखते त्रिशंकु स्वर्ग चला गया। किंतु इन्द्रसहित सब देवताओं ने इसे नीचे ढकेल दिया । यह 'त्राहि त्राहि ' करते हुए नीचे सिर, तथा ऊपर पैर कर के नीचे आने लगा। 6 · त्रिशंकुआख्यान की यही कथा स्कंदपुराण में काफी अलग तरीके से दी गई है । सदेह स्वर्ग जाने के लिये यश करने की त्रिशंकु की कल्पना, वसिष्ठ ने अमान्य कर दी, एवं इसे गया गुरु ढूँढने के लिये कहा पश्चात् वसिष्ठ के पुत्रों से इसने यज्ञ करने की विज्ञापना की, जिससे उनसे इसे चांडाल होने का शाप मिला । तत्काल इसका शरीर काया एवं दुर्गंधयुक्त हो गया। तब अपने दुराग्रह के प्रति स्वयं इसी के मन में घृणा उत्पन्न हुई। पर खौटने के बाद, द्वार से ही इसने अपने पुत्र को राज्याभिषेक करने के लिये कहा। पश्चात् यह स्वयं संदेह स्वर्गारोहण के प्रयत्न में लगा । जगन्मित्र विश्वामित्र के सिवा इसे अन्य कोई भी मित्र नही था । विश्वामित्र के यहाँ जाने पर, पहले तो इसे किसीने भीतर ही न जाने दिया। परन्तु बाद में विवामित्र से मुलाकात होने पर उसने बसपुत्रों के शाप की हकीकत इसे पूछ की। वसिष्ठ से स्पर्धा होने के कारण, त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग ले जाने की प्रतिशा विश्वामित्र ने की । इसका चांडालत्व दूर करने के लिये, विश्वामित्र ने इसे साथ ले कर तीर्थयात्रा प्रारंभ की। परंतु इसका चांडालत्व नष्ट न हो सका । बाद में अदा पर मार्कडेय ऋपि इनसे निते । उन्हें विश्वामित्र ने सारा वृत्तांत्त, अपनी प्रतिज्ञा के सहित बताया। इसका चांडालत्व दूर होने की २५४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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