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________________ त्रिशंकु तरकीब भी मार्केय ऋषि से पूछी मार्कंडेय इसेने हाटकेश्वर क्षेत्र में जा कर पातालगंगा में स्नान, तथा "हाटकेश्वर का दर्शन लेने के लिये कहा। हाटकेश्वर दर्शन के पश्चात् इसका चांडा दूर हुआ। प्राचीन चरित्रकोश इसलिये पश्चात् यज्ञ की सामग्री एकत्रित करने के लिये, विश्वामित्र ने इसे कहा। त्रिशंकु के यज्ञ की तैयारी पुरी होते ही, विश्वामित्र स्वयं ब्रह्मदेव के पास गया । ब्रह्माजी से विश्वामित्र ने कहा कि, 'त्रिशंकु को सदेह तुम्हारे लोक में लाने के लिये, मैं उससे यज्ञ करवा रहा हूँ आप सब देवों के साथ यहाँ आ कर, यज्ञभाग का स्वीकार करे' तंच ब्रह्मदेव ने कहा, 'देहान्तर के बिना स्वर्गप्राप्ति असंभव है । इसलिये यज्ञ करने के बाद त्रिशंकु को देहान्तर (मूत) करना ही पडेगा परना उसका स्वर्गप्रवेश असंभव है ' । यह सुन कर विश्वामित्र संतप्त हुआ, तथा उसने कहा, 'मैं अपनी तपश्चर्या के सामर्थ्य से त्रिशंकु को सदेह स्वर्गप्राप्ति दे कर ही रहूँगा । इतना कह कर, विश्वामित्र त्रिशंकु के पास वापस भाया। स्वयं अध्वर्यु बन कर, विश्वामित्र ने यज्ञ शुरू किया। शांडिल्य आदि ऋषियों को उसने होता आदि ऋत्विजों के काम दिये | बारह वर्षों तक विश्वामित्र का यज्ञ चालू रहा। पश्चात् अवभृतस्नान भी हुआ। किंतु त्रिशंकु को. स्वर्ग प्रवेश नही हुआ । सि के सामने अपना उपहास होगा, वह सोच कर इसे अत्यंत दुख हुआ। विश्वामित्र ने इसे सांत्वना दी, एवं कहा की, 'समय पाते ही मैं प्रति निर्माण करूँगा' प्रति सृष्टि निर्माण करने की शक्ति प्राप्त हो, इस हेतु से विश्वामित्र ने शंकर की आराधना शुरू की पश्चात् बैसा बर भी शंकर से उसने प्राप्त किया, एवं प्रतिसृष्टि निर्माण करने का काम शुरू किया । त्रिशंकु सत्यलोक गया (स्कन्द ५.१.२.७) । भविष्य के मतानुसार, त्रिशंकु ने दस हजार वर्षों तक राज्य किया । ब्रह्मदेव ने विश्वामित्र के पास आ कर उससे कहा, 'इंद्रादि देवों का नाश होने के पहले, प्रतिसृष्टि निर्माण करना बंद करो' । विश्वामित्र ने जवाब में कहा, 'अगर त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग प्राप्त हो जाये, तो मैं प्रतिष्ठि निर्माण करना बंद कर दूंगा । ब्रह्मदेव के द्वारा अनुमति दी जाने पर, निर्माण की गई प्रति सृष्टि अक्षय होने के लिये, विश्वामित्र ने ब्रह्मदेव से प्रार्थना की। तब ब्रह्मदेव ने कहा, 'तुम्हारी सृष्टि अक्षय होगी, परंतु यशार्ह नहीं बन सकती ' । इतना कह कर, ब्रह्मदेव त्रिशंकु के साथ २५५ इसकी पत्नी का नाम सत्यरथा था । उससे इसे हरिश्चन्द्र नामक सुविख्यात पुत्र हुआ (ह. वं. १.१३. २४ ) । त्रिशंकु की धार्मिकता का वर्णन, विश्वामित्र के मुख में काफी बार आया है ( वा. रा. बा. ५८ ) । इसने सौ यज्ञ किये थे। क्षत्रियधर्म की शपथ ले कर इसने कहा है मैंने कभी भी असत्य कथन नहीं किया, तथा नहीं करूँगा। गुरु को भी मैं ने शील तथा वर्तन से संतुष्ट किया है, प्रजा का धर्मपालन किया है। इतना धर्मनिष्ठ होते हुये भी, मुझे यश नहीं मिलता, यह मेरा दुर्भाग्य है। मेरे सब उद्योग निरर्थक हैं, ऐसा प्रतीत होता है। विश्वामित्र को भी इसके बारे में विश्वास था (५९) । वसिष्ठ को भी त्रिशंकु के वर्तन के बारे में आदर था । 'यह कुछ उच्छृंखल है, परंतु बाद में यह सुधर जाएगा' ऐसी उसकी भावना थी (ह. वं. १.१३ ) । वनवास के समय इसका वर्तन आदर्श था। यहाँ इसने विश्वामित्र के बालकों का संरक्षण किया, इससे इसकी दयालुवृत्ति जाहीर होती है । ब्राह्मण की कन्या के अपहरण के संबंध में जो उल्लेख आयें है, उसका दूसरा पक्ष हरिवंश तथा देवी भागवत में दिया गया है। उस माँमले में इसकी विचारपद्धति उस काल के अनुरूप ही प्रतीत होती वसिष्ठ की गाय इसने जानबूझ कर मारी यह एक आक्षेप है। किंतु वसिष्ठ के साथ इसका शत्रुत्व था । गोहत्या का यही एक समर्थनीय कारण हो सकता है। है सदेह स्वर्ग जाने की इच्छा, इसके विचित्र स्वभाव का एक भाग है। सदेह स्वर्ग जाना असंभव है, यो वसिष्ठ ने कहा था। तथापि वसिष्ठविश्वामित्रादि ऋषि स्वर्ग में जा कर वापस आते थे, यह हरिश्चन्द्र की कथा से प्रतीत होता है । त्रिशंकु की कथा में भी वैसा उल्लेख आया है । कुछ दिन स्वर्ग में जा कर, अर्जुन ने इन्द्र के आतिथ्य का उपभोग किया था, ऐसा उल्लेख भी महाभारत में प्राप्त है । इस दृष्टि से त्रिशंकु को भी स्वर्ग जाने में कुछ हर्ज नहीं था परंतु बसि के द्वारा अमान्य किये जाने पर, इसे ऐसा लगा, अपना तथा वसिष्ठ का शत्रुत्व है, इसीलिये वह अपनी इच्छा अमान्य कर रहा है'। इन्द्रादि देवों ने भी इसे स्वर्ग में न लेने का कारण, 'गुरु का शाप' यही कहा है । स्वर्गप्राप्ति के लिये देहान्तर
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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