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तित्तिरि
प्राचीन चरित्रकोश
तुन
तित्तिरि पक्षियों के रूप लिये थे। उस कारण, उन्हे | किसी को दान देनेवाले राजा के रूप में, इसका 'तित्तिरि,' एवं उनके शाखानुयायिओं को 'तैत्तिरीय निर्देश ऋग्वेद की एक दानस्तुति में प्राप्त है (ऋ. नाम प्राप्त हुआ (विष्णु. ३.५, भा. १२.६.६५)। ८.६.४६-४८)। वत्स काण्व को इस राजा से दान
मत्स्य के मत में, तित्तिरि ऋषि अंगिराकुल के प्रवर स्वरूप उपहार मिला था (सां. श्री. १६.११.२०)। यह का एक ऋषि है । एक शाखाप्रवर्तक के जरियें भी इसका | धन यदु राजाओं से तिरिंदर ने प्राप्त किया था । यदु उल्लेख प्राप्त है ( पाणिनि देखिये )। हिरण्यकेशिन् लोगों | राजाओं को वेबर ईरानी मानते है, एवं भारत तथा ईरान के पितृतर्पण में इसका निर्देश आता है ( स. गु. २०.८. के बीच घनिष्ठ संबंध का प्रमाण इस कथा को समझते है २०)।
| (इन्डि. स्टुडि. ४.३५६)। तिथि-भृगुकुल का एक गोत्रकार ।
तिर्यच् आंगिरस--सामद्रष्टा (पं. वा. १२.६. २. कश्यप एवं क्रोधा की कन्या तथा पुलह की स्त्री।। १२)। तिमि--प्राचेतस दक्ष प्रजापति एवं असिनी की तिलोत्तमा--एक अप्सरा । यह काश्यप तथा अरिष्टा कन्या तथा कश्यप की भार्या ।
की कन्या थी। पूर्वजन्म में यह कुब्जा नामक स्त्री थी। २. (सो. पूरू. भविष्य.) भागवत मत में दुर्व का पुत्र
दीर्घ तपस्या कर यह वैकुंठ गई। देवों के कार्य के लिये (तिग्म देखिये)।
ब्रह्माजी ने इसे सुंदोपसुंद के पास भेजा था। तिमिंगल—एक राजा । यह रामक पर्वत पर रहता प्रत्येक वस्तु का तिलतिल सौंदर्य, इसके सौंदर्य निर्माण था। राजसूय यज्ञ के समय, सहदेव ने इसे जीतकर | के लिये लिया गया था। इसलिये इसे तिलोत्तमा नाम धन प्राप्त किया (म. स. २८.४६)।
प्राप्त हुआ। सुंदोपसुंद के नाशार्थ जाने के पहले, इसने तिमिध्वज--वैजयन्त नगरी का राजा। यह शंबर सब देवों तथा ऋषियों की प्रदक्षिणा की। उस समय इसके नाम से भी प्रसिद्ध था।
मनमोहनी रूप यौवन से, शंकर तथा इंद्र आदि देवसभां इसका राज्य दक्षिण भारत में दंडकारण्य के पास | के ज्येष्ठ देव भी स्तिमित हो गये। था। डॉ. भांडारकरजी के मत में, आधुनिक कालीन विजय- | इसे देखते ही, सुंदोपसुंद का आपस में झगडा हो कर, दुर्ग ही प्राचीन वैजयन्त नगरी है । डे के मत में, आधुनिक | एक ने दूसरे का वध कर दिया। तब ब्रह्मदेव ने इसे . वनवासी शहर का वह प्राचीन नाम है।
वरदान दिया, 'जहाँ जहाँ सूर्य का प्रवेश होगा, यहाँ तुम देवासुर युद्ध चालू था। यह असुरों के पक्ष में मिल
भी प्रविष्ट हो सकोगी। तुम्हारे लावण्य का प्रभाव दाहक कर, इंद्र से युद्ध करने लगा। इन्द्र ने अयोध्या से
| एवं गहरा होगा। इस कारण कोई भी तुम्हारी ओर दशरथ राजा को बुलाया । परंतु युद्ध करते समय, घायल
आँख उठा कर देख न सकेगा' (म. आ. २०३-२०४; हो कर दशरथ बेहोश हो गया । तब सारथ्य करनेवाली
पद्म. उ. १२६)। कैकयी ने बडे चातुर्य से रथ बाजू में ले कर दशरथ की रक्षा | यह अश्विन में त्वष्टा सूर्य के साथ घूमती है (भा की। बाद में तिमिध्वज का क्या हुआ इसके बारे में | १२.११)। कुछ उल्लेख नहीं है (वा. रा. अयो. ९; ब्रह्म.१२३)। | तीक्ष्णवेग--रावण-पक्षीय एक असुर ।
तिमिर्घ दौरश्रत--अग्नीध ऋत्विज का नामांतर । तीर्णक--एक ऋषि । ब्रह्मदेव ने पुष्करक्षेत्र में किये सों उत्कर्षके के लिये किये गये सर्पसत्र में यह उपस्थित | यज्ञ में यह उपस्थित था (पन. स. १४)। था ('पं. बा. २५.१५.३)।
तीवरथ-हंसध्वज के सुमति नामक सचिव का तिरश्ची आंगिरस--सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.९५-९६)। पुत्र। पंचविंश ब्राह्मण में भी इसके नाम का निर्देश आया है | तुक्षय--अंगिरसकुल का एक मंत्रकार । (१२.६.१२)। इसके सूक्तों में इंद्र की आराधना की | तुग्र-अश्वियों के कृपापात्र भुज्यु का पिता । इसलिए गई है (ऋ. १२.६.१२)।
भुज्यु को तुग्र्य अथवा तौय भुज्यु कहते हैं (भुज्यु तिरिंदिर पारशव्य-एक राजा । सायण, के मत में, | देखिये)। यह पशु का पुत्र था । इसलिये इसे पारशव्य पैतृक नाम | २. एक राजा । यह इंद्र का शत्रु था। (ऋ. ६.२०.. प्राप्त हुआ।
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