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तुम्य
प्राचीन चरित्रकोश
तुग्य--भुज्य का पैतृक नाम। तौय्य इसका सही | (प्रथम) का यह पुरोहित था। इसीने उसे राज्याभिषेक • नाम रहा होगा।
किया (ऐ. ब्रा. ४.२७;७.३४:८.३१)। इसका शिष्य तुजि--एक राजा । इसपर इंद्र की कृपा थी (ऋ.६. | यज्ञवचस् राजस्तंबायन (बृ. उ. ६.५.४)। पंचविश२६.४; १०.४९.४)। तूतुजि इसीका नाम होगा (ऋ. ६. ब्राह्मण में (२४.१४.५) उल्लिखित तुर तथा यह एक २०.८)।
ही होगा। तुंड--नल वानर के द्वारा मारा गया, रावणपक्षीय | इसने दूसरे जनमेजय पारीक्षित से सर्पसत्र करवाया एक राक्षस।
| (भा. ९. २२.३५)। दूसरे जनमेजय पारीक्षित के साथ तुंडकोश-कश्यप तथा खशा का पुत्र।
भागवत ग्रंथ में, जोडा गया इसका संबंध केवल नामसाम्य तुमिंज औपोदिति-एक ऋषि । यह यज्ञसत्र में होतृ | के कारण हुआ है। वास्तव में यह प्रथम जनमेजय का काम करता था। संश्रवस् ऋषि के साथ, इड़ा के पारीक्षित का पुरोहित था। इसीलिये. इसने उसे राज्याबारे में इसका वादविवाद हुआ था (तै.सं.१.७.२.१)। भिषेक किया था। __ तुंबरु-एक गंधर्व । कश्यप तथा प्राधा के पुत्रों में तुरश्रवस–एक ऋषि । पारावत ने इन्द्र के लिये से एक । यह चैत्र माह के धाता नामक सूर्य के साथ | सोमयाग किया। वहाँ इस ऋषि ने दो साम कह कर इंद्र रहता था (भा. १२.११.३३)। इसकी भार्या का नाम को प्रसन्न किया। इंद्र ने, उपस्थित ऋषियों में से केवल रंभा था (म. उ. ११५.४००* पंक्ति.४)।
तुरश्रवस् ने सादर किये हवि का स्वीकार किया (पं. बा. ब्रह्माजी की सभा में, यह नारद के साथ गायन | ९.४.१०)। कर, भगवत् का गुण गाता था (भा. ५.२५.८)। | तुरु--एक राक्षस । हिरण्याक्ष के साथ हुए देवों के श्रीकृष्ण के इंद्र और कामधेनु कृत अभिषेक के समय, | युद्ध में, वायु ने इसका वध किया (पद्म. स. ७५)। यह कृष्ण के पास आया था (भा. १०. २७. तुरुक--(तुरुष्क. भविष्य.)एक राजवंश । भागवत२४)। यह अनुयादव का मित्र था (भा. ९.२४.२०)। मत में इस वंश में, कुल चौदह राजा हुए । इतरत्र इसे गोग्रहण के समय अर्जुन का युद्ध देखने के लिये यह | तुषार कहा गया है । स्वयं आया था (म. वि. ५६. १२)। युधिष्ठिर के तुर्व--एक राजा । यह मनु का अनुयायी था (ऋ.
अश्वमेघ में भी यह उपस्थित था (म.आश्व. ८८.३९)।| १०.६२.१०)। - यह रंभा पर आसक्त होने के कारण, कुबेर ने शाप दे तुर्वश--एक वैदिक राजा तथा ज्ञातिसमूह । हॉपकिन्स
कर इसे विराध नामक राक्षम बनाया। बाद में रामलक्ष्मण | के मत में, 'तुर्वश' एक ज्ञातिसमूह का नाम है, जिसका 'से हुए युद्ध में मृत हो कर इसने अपना मूल रूप प्राप्त | एकवचन उसके राजा का द्योतक है (उ. पु. २५८)। यदु *किया (वा.रा. अर. ५: विराध देखिये)।
राजा एवं ज्ञाति से तुर्वशों का धनिष्ठ संबंध था (ऋ. ४. २. एक गंधर्व। यह सुबाहु तथा मुनिकन्या का पुत्र | ३०.१७; १०.६२.१०)। था। इसे मनुवंशी एवं सुकेशी नामक दो कन्यायें थी
दाशराज्ञ-युद्ध में, तुर्वश राजा ने सुदास के विरुद्ध युद्ध (ब्रह्मांड. ३.७.१३)।
किया था। किंतु इस युद्ध में यह स्वयं पराभूत हुआ (ऋ. ३. एक राक्षस । हिरण्याक्ष मे हुए देवों के युद्ध में, | ७.१८.६)। इस युद्ध में भागने ('तुर') के कारण, वायु ने इसका वध किया (पम. स. ७५)। इसका नाम तुर्वश पड़ गया (हॉपकिन्स. उ. पु. २६४)। - तुंबुरु-तुंबरु देखिये।
इस राजा पर इंद्र की कृपा थी। इस कृपा के कारण, तुर कावषेय -एक वैदिक ऋषि । ओल्डेनबर्ग के मत | दाशराज्ञ-युद्ध के पश्चात् , इंद्र ने इसकी सहायता की। में, वैदिक काल के अंतिम चरण में यह पैदा हुआ था अनु तथा द्रुहयु के समान, यह पानी में डूब कर नहीं (सी. गे. ४२. २३९)।
| मरा । इसकी द्वारा की गयी इंद्रस्तुति में, 'तुमने यदुतुर्वशों एक तत्त्वप्रतिपादक के जरिये इसका निर्देश ब्राह्मणों में की रक्षा की, उसी प्रकार हमारी रक्षा करो, ऐसी प्रार्थना प्राप्त है (श. बा. १०.६.५.९)। कारोंती नदी पर, अशि आयी है (मर. ४.४५.१)। उसी प्रकार, 'अतिथिग्व का की वेदिका इसके द्वारा बनाई जाने का उल्लेख शांडिल्य | कल्याण करनेवाले तुम यदुतुर्वशों का वध करो,' ऐसी भी ने किया है (श. बा. ९.५.२.१५)। जनमेजय पारीक्षित प्रार्थना की गयी है । तुर्वश तथा यदु ने, अर्ण एवं चित्ररथ
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