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तालक
प्राचीन चरित्रकोश
तालक-वायु एवं ब्रह्मांड मत में व्यास की साम शिष्य परंपरा के हिरण्यनाभ का शिष्य । तालकृत् - अंगिरा कुल का गोत्रकार ।
तालकेतु -- कृष्ण के द्वारा मारा गया एक राक्षस । २. भीष्म का नामांतर ( म. भी. ४५.९, उ. १४८. ५) ।
३. कुवलयाश्व के द्वारा मारा गया एक राक्षस (मार्के मृदु का पुत्र | १८.२३) ।
तालजंघ - (सो. सह) कार्तवीर्य का नाती तथा जयध्वज का पुत्र । इसके पुत्रों को भी तालजंघ कहते थे, चीतोष, शार्यात, इंडिकेर भोज तथा अवंती इन पाँच वीतहोत्र, वंशों को, ' तालजंघ' यह संयुक्त नाम दिया जाता है ।
तालजंघ को १०० पुत्र थे । उनमें से पाँच गण मुख्य थे। उनके पाठभेद से नामः वीरहोत्र, भोज, आवर्ति लुडिकेर, तालमंच। ये सारे तालजंघ नाम से ही प्रसिद्ध मे ( वायु. ९४.५०-५२ ) ।
तित्तिरि
तिग्म - (सो. कुरु. भविष्य . ) मत्स्यमत में उर्वपुत्र, तथा विष्णुमत में मृदुपुत्र । तिमि तिग्मज्योति, ये सारे एक ही है ।
तिग्मकेतु - (खा. उत्तान) भागवतमत में वत्सर तथा स्वर्वीथिका पुत्र |
तिग्मज्योति - (सो. कुरु. भविष्य.) भविष्यमत में
परशुराम से ड़र कर, अपने सारे भाईयों सहित, यह हिमालय की गुफाओं में रहता था। परशुराम तप करने गया, तब यह निर्भय हो कर सपरिवार पुनः माहिष्मती नगर में आकर रहने लगा ।
कुछ कालोपरांत अयोध्या पर आक्रमण कर इसने सगर के पिता फल्गुतंत्र को जीत लिया ( ब्रह्मांड. २. ४०) । इसका बदला चुकाने के द्विये सगर ने और्ष रूप द्वारा प्राप्त आग्नेयास्त्र से इसको तथा इसके सारे परिवार को जला दिया। इनमें से केवल वीतिहोत्र बच गया (भा. ९.२३ ) इन्हे जीतने पर और्व ऋषि की आज्ञा के कारण, संगर ने इनका बंध नहीं किया। किन्तु इन्दे विष कर, छोड़ दिया (भा. ९.८.५ पद्म. उ. २०, वीतहव्य तथा बाहु देखिये) । गुकुल के साथ कल करने से, हैहय तथा तालजंघो का नाश हुआ (कौटिल्य. पृ. २२) ।
२. (स्. शर्याति. ) शर्याति राजा का पुत्र ( म. अनु. ८.८. कुं. ) ।
३. मुर दैत्य का पिता ।
तालन - - कलियुग का एक राजा । इसने महावती नगरी पर आक्रमण किया। इसके आठ पुत्र थे । उनके नाम :- अल्कि, भलामति, काल, पत्र, पुष्पोदरी, वरीकरी, नरी तथा सुललित । अपना वनरस नामक नगर इसने इन पुत्रों को दिया। म्लेच्छों की पूजापद्धति से इसने असुर देवताओं की पूजा की ( भवि. प्रति ३.७)।
तितिक्षा - स्वायंभुव मन्वन्तर के दक्षप्रजापति की कन्या तथा धर्म की स्त्री । इसका पुत्र क्षेम ।
तितिक्षु -- (सो. अनु. ) एक चक्रवर्तिन् सम्राट् । भागवत, मत्स्य, एवं बायु के मत में, चक्रवर्तिन् महामनस् का यह पुत्र था। विष्णु मत में, यह महामणि का पुत्र था | पश्चिमोत्तर भारत में राज्य स्थापन करनेवाला सम्राट् उशीनर इसका भाई था।
तितिक्षु से ही प्रारंभ हुआ। यह वंश, अनुवंश की ही तितिक्षुवंश -- पूर्व भारत में ख्यातिप्राप्त तितिक्षुवंश, स्वतंत्र शाखा थी । तितिक्षुवंश में पैदा हुवे, बलि ने पूर्व भारत में बलाढ्य साम्राज्य स्थापन किया । को अंग, वंग, कलिंग, सुहा, पु नाम पाँच पुत्र थे। बलि के साम्राज्य के पाँच देश, इन पाँच पुत्रों के नाम से ही सुविख्यात हुवे |
अयोध्यापति दशरथ का समकालीन रोमपाद राजा अंगवंश का था। भारतीय युद्ध में, कर्ण तथा वृषसेन ये दोनों तितिक्षुवंशांतर्गत अंगवंश के थे।
तितिक्षु का भाई सम्राट् उशीनर का वंश, पश्चिमोत्तर भारत में केकय, मद्र आदि प्रदेशों में राज्य करता था (अनु. उशीनर, तथा बलि देखिये) ।
तित्तिर वा तित्तिरि - ( सो. कुकुर . ) कपोतरोमन् का पुत्र । इसका पुत्र बहुपुत्र ।
तित्तिरि कश्यप तथा कटु का पुत्र एक नाग | २. एक ऋषि तथा शाखाप्रवर्तक ( म. स. ४.१०; पाणिनि देखिये) । अंगिरस्कुल के ऋषिओं की एक शाखा के, अंगिरस, तैत्तिरि, कापिभुव ये तीन प्रवर हैं । उनमें से तैत्तिरि का यह पिता होगा |
कृष्ण यजुर्वेद के एक शाखा का 'तैत्तिरीय यह उपनाम है । उस शाखा का मूल आचार्य तित्तिरि रहा होगा । वैशंपायन के शिष्य वायव्य के नेतृत्व में वह शाखा पहले थी । किंतु कुछ कारणवश, वैशंपायन ने याज्ञवल्क्य के नेतृत्व से वह शाखा निकाल ली । वह वैशंपायन के बाकी बचे ८५ शिष्यों ने धारण की। उस समय उन्होंने
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