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________________ तारा प्राचीन चरित्रकोश ता_पुत्र का पूर्वापर वैर था। राम की सहायता से सुग्रीव ने | भारतीय युद्ध के समय, यह गर्भवती थी। गर्भवती वालिन् के उपर जोरदार हमला किया। उस समय, सुग्रीव | अवस्था में, कौरव पांडवो के युद्धक्षेत्र के ऊपर से यह से सुलह करने की सलाह इसने वालिन् को दी थी। जा रही थी। उड़ते उड़ते, उस स्थान पर यह आई, ३. सूर्यवंशीय हरिश्चंद्र राजा की पत्नी । इसे तारामती | जहाँ अर्जुन तथा भगदत्त का युद्ध हो रहा था। अर्जुन के नामांतर था (तारामती देखिये)। बाण से इसका उदर विदीर्ण हुआ। उसमेंसे चार अंडे ४. एक ब्रह्मवादिनी। नीचे गिरे। ताराक्ष---तारकासुर का पुत्र । इसे तारकाक्ष नामांतर इसी समय सुप्रतीक नामक हाथी के गले की प्रचंड था (म. क. २३.३-४)। घंटा नीचे गिरी । ताी के चार अंडों को, बीच के पोले तारापीड-(स. इ.) मत्स्य के मत में चन्द्रावलोक | भाग में ले कर, वह घंटा कीचड़ में फंस गई। बाद में शमीक राजा का पुत्र । इसका पुत्र चन्द्रगिरि। ऋषि उन अंडों को ले गया (मार्क. ३.३१-४४)। इसी तारामती--शैब्य देश के राजा की कन्या तथा समय ताी की मृत्यु हो गई । उन अंडे से बाहर निकले अयोध्यापति हरिश्चन्द्र की पत्नी (मार्क ७.९)।हरिश्चन्द्र | बच्चे, पिंगाक्ष, विबोध, सुपुत्र तथा सुमुख ये नाम से की सौ पत्नियों में यह पटरानी थी। वरुणकृपा से इसे प्रसिद्ध हुए। रोहित नामक पुत्र हुआ (दे. भा. ७.१४)। ता_--एक आचार्य (ऐ. आ. ३.१.६; सां. आ. विश्वामित्र की दक्षिणा पूर्ण करने के लिये, हरिश्चन्द्र ने | ७.१९)। विशिष्ट ज्ञान संपादन करने के हेतु, इसने इसको तथा राजपुत्र रोहित को, काशी के एक वृद्ध ब्राहाण | गुरुगृह में रह कर उसकी गाय की रक्षा की। इसके नाम को बेच दिया (दे. भा. ७.२२)। पश्चात् , सर्पदंश से | का 'तारुक्ष्य' पाठभेद कई जगह प्राप्त है। किंतु बहुत सारी रोहित की मृत्यु हो गयी । उसे ले कर यह स्मशान गई। जगह, इसे तार्क्ष्य ही कहा है (ऐ. आ. १.५.२, सां. वहाँ लड़के खानेवाली राक्षसी समझ कर, लोग इसे राजा के | श्री. ११.१४.२८; १२.११.१२; आश्व. श्री. ९.१)। पास ले गये । राजा ने चांडाल को इसका वध करने के | अरिष्टनेमि तार्थ्य तथा यह एक ही होने की संभावना है। लिये कहा। चांडाल ने यह कार्य करने की आज्ञा | किंतु इस बारे में, निश्चित रूप से कहा नही जा सकता। हरिश्चन्द्र को दी। उसने पत्नी को तथा पुत्र को पहचान | २. अरिष्टनेमि का पैतृक नाम । लिया। यह अग्निप्रवेश करने को तैय्यार हुई। किंतु इन्द्र . ३. कश्यप प्रजापति का नामांतर । ताय नाम धारण ने रोहित को जीवित किया । पश्चात् इन्द्र की कृपा से इसे | किये कश्यप को दक्ष ने अपनी कन्याएं दी थीं। सरस्वती स्वर्गप्राप्ति हई (दे. भा. ७.२५-२७; हरिश्चंद्र देखिये)। | से इसका संभाषण हुआ था (म. व. १८४. १; कश्य तारावती-चंद्रशेखर देखिये। देखिये)। तारुक्ष्य-१. तार्क्ष्य देखिये । ४. एक पराक्रमी पक्षी (खिल. २.४.१) । यह तारेय--एक वानर । तारापुत्र अंगद का यह नामांतर पक्षियों का राजा था (श: ब्रा., १३.४.३.१३)। संभवतः यह सूर्य का प्रतीक था। एक दिव्य अश्व के रूप में भी २. एक राक्षस । यह तारकासुर का पुत्र था। हिरण्याक्ष इसका उल्लेख प्राप्त है (ऋ० १.८९.६:१०.१७८.१)। के पक्ष में यह लड़ रहा था। उस वक्त, अपने पिता के | सोम लाने के लिये, इसका उपयोग किया गया था वध का बदला लेने के लिये इसने कार्तिकेय पर अग्न्यस्त्र । ( सुपर्ण ३. देखिये)। तथा रौद्रास्त्र की वर्षा की । किन्तु ये सब अस्त्र प्रभावहीन | ५. कश्यप तथा विनता का पुत्र । इसका भाई गरुड । साबित हुएँ । अन्त में कार्तिकेय ने इसका वध किया ६. एक यक्ष । मार्गशीर्ष माह में यह अंशुमान् सूर्य (पद्म. स. ६९)। के साथ रहता है (भा. १२.११)। तार्श इसीका ताः--तायं ६. देखिये। नामांतर है। ताी --एक पक्षिणी । पूर्वजन्म में, यह वपु नामक | ७. कश्यप का नामान्तर (म. व. १८२.८)। अप्सरा थी। दुवास ऋषि के शाप से, इसे पक्षियोनि | तार्थ्य वैपश्वित--एक आचार्य (आश्व. श्री. १०. प्राप्त हुई । कंधर तथा पक्षिरूपधारी मदनिका की यह | ७)। कन्या बनी। द्रोण नामक पक्षी इसका पति था। | तार्क्ष्यपुत्र-सुपर्ण तायपुत्र देखिये । २४४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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