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________________ प्राचीन चरित्रकोश तंडि तंसु-(सो. पूरु.) अंतिनारपुत्र । इसे इलिन नामक क्षपणक का वेष धारण कर के, तक्षक उसका पीछा करने पुत्र था। इसे त्रस्नु नामांतर है। (म. आ. ९०.२६; लगा। यह क्षण में दिखता था, क्षण में अदृश्य हो जाता अंतिनार देखिये)। था। रास्ते में, कुंडल भूमि पर रख कर, उत्तंक लघुशंका तकवान-एक मंत्रकार ऋषि (ऋ. १.१२०.६)। करने बैठा । उसे इस प्रकार व्यस्त देख कर, क्षपणक तकवान शब्द ऋग्वेद के एक मंत्र में मंत्रकार के रूप में वेषधारी तक्षक ने उसके कुंडल चुरा लिये । आचमन आया हुवा है। संभवतः कक्षीवत् कुल का मंत्रकार होगा कर के उत्तक वापस आया। उसने देखा कि, पीछे पीछे (ऋ. १.१२०.६ )। दूसरे स्थान पर तकु शब्द का तकवे | आनेवाला क्षपणक कुंडल ले कर भाग रहा है । उत्तंक ने रूप आया है। तक का तकवान बना होगा। फिर भी ये| इसके पीछे दौडना प्रारंभ किया । इतने में, क्षपणक ने सारे निर्देश अनिश्चित स्वरूप के है (ऋ. ९.९७.५२)।। अपना मूल तक्षक का रूप धारण किया, तथा एक बिल तकिबिंदु-अत्रिकुल का गोत्रकार। के मार्ग से पाताल में पलायन किया। उत्तंक ने उस बिल तक्ष-(सू. ई.) दशरथपुत्र भरत को मांडवी से को खोद लिया। तक्षक का पीछा करते करते उत्तक पाताल उत्पन्न पुत्र । अपने पुष्कर नामक भाई के साथ इसने पहुँचा । पाताल में, नागों की स्तुति कर के उत्तंक ने अपने गांधार देश पर आक्रमण किया । उस देश को जीत कर कुंडल वापस ले लिये (म. आ. ३.१५४-१५८; दे. भा. " इसने तक्षशिला नगरी की स्थापना की (वा. रा. उ. | २.१०)। १०१; विष्णु. ४. ४, वायु. ८८.१८९)। पश्चात् , तक्षक का वध करने के लिये, सर्पसत्र का तक्षक-कश्यप तथा कद् का पुत्र एवं एक नाग आयोजन करने की सलाह, उत्तंक ने जनमेजय, को दी। (विष्णु. १.१५; मत्स्य. ६; म. आ. ५९. ४०; ह. वं. अपने पिता परीक्षित् के मृत्यु का बदला लेने के लिये, १. ३. १२)। इसे एक पत्नी तथा अश्वसेन एवं श्रुतसेन जनमेजय पहले से ही उत्सुक था। उसने सर्पसत्र आयोनामक दो पुत्र थे (म. आ. ३. १४५-१४६)। जित किया । इस सर्पसत्र में, इसके परिवार में से अठारह अर्जुन ने खांडववन अग्नि को दिया, तब तक्षक की पत्नी सर्पकुल जल कर भरण हुवें। उन सर्पकुलों के नाम ये थे। तथा अश्वसेन वहाँ थे । अश्वसेन की माता ने उसे मुँह पिच्छांडक, मंडलक, पिंडरिक्त, रमेणक, उच्छिक, शरभ, में ले लिया। वह आकाशमार्ग से भागने लगी। यह भंग, बिल्वतेजस् , विरोहण, शिली, हालकर, मूक, सकुमार, देखते ही अर्जुन ने उसका शिरच्छेद किया। परंतु तक्षक प्रवेचन, मुदगर, शिशुरोमन् , सुरोमान् , महाहनु । इंद्र का मित्र था। इसलिये अश्वसेन का रक्षण करना इंद्र ___ सर्पसत्र में, तक्षक भी मरनेवाला था। परंतु यह बच ने अपना कर्तव्य समझा । इसलिये अर्जन के विरुद्ध गया (म. आ. ४८.१८, आस्तीक तथा इन्द्र दलिये)। वर्तन करके इंद्र ने अश्वसेन की रक्षा की (म. आ. २. (स.इ.) प्रसेनजित् का पुत्र । इसका पुत्र बृहल २१८. ९)। (भा. ९.१२.८)। इस समय तक्षक कुरुक्षेत्र में था (म. आ. २१९. तक्षक वैशालेय–विराज का पुत्र (अ. वे. ७. १३; काश्यप २. देखिये)। पश्चात् , शमीक ऋषि का पुत्र १०.२९) । सर्पसत्र के ब्राह्मणाच्छंसी पुरोहित (पं. बा. शंग की प्रेरणा से, अर्जुन का पौत्र परीक्षित् को गले में काट कर तक्षक ने उसका वध किया (परीक्षित् देखिये)। | तक्षन्–एक ऋपि । जीवल ऐलकि से इसका कुछ ___जनमेजय के सर्पसत्र की कथा पुराणों में सुविख्यात विषयों में मतभेद हुआ था। ब्रह्मवर्चसकाम आरुणि को है । जनमेजय तथा तक्षक का वैर बैद ऋषि का शिष्य इसने अग्निसंबंध में जानकारी दी थी (श. बा. २.३.१. उत्तंक के कारण हुआ । पौष्य राजा की पत्नी | ३१-३५)। का उत्तंक गुरु था । पौष्यपत्नी ने उत्तंक को तंडि--कृतयुग का एक अंगिरसगोत्री ऋषि । इसने गुरुदक्षणा के रूप में अपने कुंडल दिये (म. आ. दीर्घकाल तक तपस्या की । शिवसहस्र नाम के योग से ३.८५)। उत्तंक से ये कुंडल छीनने के लिये, एक | इसने शंकर को प्रसन्न किया । सूर्यकुलोत्पन्न रजा निधन्वन्
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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