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ज्ञानभद्र
प्राचीन चरित्रकोश
ज्योतिर्लिंग
एक बार अकाल पड़ने के कारण, लगातार बीस दिनों किनारे के दूरदूर के प्रदेशों पर आक्रमण करने को, इसे उत्सा तक इसे, तथा इसकी पत्नी को उपवास करना पड़ा । एक हित किया। मृत्तिकावती नामक नगरी उने प्रदेशों की राजपर्वत पर जा कर यह एक कुम्हड़ा ले आया। इतने में धानी था। बाद में ऋक्षवत् पर्वत पर आक्रमण कर, इसने भारी वर्षा के कारण, भीगा हुआ एक गोप ठंड से उसे जीता। वहाँ की शुक्तिमती नामक नगरी में उपनिवेश ठिठुरते हुए इसके घर आया। वह बीस दिनों से भूखा प्रस्थापित किया। बाद में मृत्तिकावती प्रदेश जीतने के होने के कारण, यह कुम्हडा इन्होंने उस गोप को दिया। कारण प्राप्त, उपदानवी नामक कन्या साथ ले कर, यह इससे वह संतुष्ट हो गया। बाद में उपवास के कारण, अपने राज्य आया। ' यह कन्या मैंने तुम्हारे पुत्र के यह दोनों यकायक मृत हो गये। उससे दोनों को सायुज्य- लिये लाई है' ऐसा इसने अपने पत्नी को झूठ ही बता मुक्ति प्राप्त हुई (पन. क्रि.२५)।
दिया । परंतु पुत्र न होने के कारण, यह झूठ बोलना उसे ज्ञानथति--गोदावरी के किनारे स्थित प्रतिष्ठान नहीं ऊँचा । बाद में उस कन्या के तपःप्रभाव से' वृद्ध (पैठण) शहर का पुण्यशील राजा। आकाश से उड़ने काल में गर्भधारण कर, शैब्या ने विदर्भ नामक पुत्र को वाले हंस से इसे मालूम हुआ कि, रेक नामक ब्रह्मवेत्ता ! जन्म दिया। विदर्भ का उपदानवी से विवाह किया अपने से अधिक पुण्यवान है। तब इस पुण्यशील को | उससे उपदानवी को क्रथ, कोशिक तथा लोमपाद नामक ढूँढने के लिये, इसने अपने सारथि से कहा । सारथि तीन पुत्र हुएँ (ह. वं. १.१.३७; १३-२०; ब्रह्म. १४. द्वारा उसका पता लगने पर, बड़ा नजराना ले कर यह रैक १०-२०, लिंग. १.६८.३२-४१; मत्स्य. ४४.३२९ के पास गया। परंतु उसने राजा का नजराना अस्वीकार | ब्रह्मांड. ३.७०.३३ पन. स. १३.११-१९)। विष्णु पुराण कर दिया। राजा ने पूछा, 'यह निरिच्छ वृत्ति आपको | में रुक्मकवच को ज्यामघ का पितामह कहा है। कैसी पाप हुई' ? उसने बताया, 'यह सब गीता के तथापि रुक्मकवच तथा रुचक एक ही होंगे। - छठवें अध्याय पढने का फलं है' (पझ. उ. १८०; रैक्व ज्यामहानि--ब्रह्मांड मत में व्यास की सामशिष्य देखिये)।
परंपरा के लांगलि का शिष्य (व्यास देखिये)। ज्ञानसंज्ञेय--कश्यपकुल का गोत्रकार ऋषिगण ।
ज्येष्ठ--एक ब्रह्मर्षि तथा ज्येष्ठ साम का कर्ता । बर्हिषद ज्यामघ--(सो. क्रोष्ट.) विष्णु के मत में परावृत्त- से वेदपारग ज्येष्ठ ऋषि को सात्वतधर्म प्राप्त हुआ। इसके पुत्र, मत्स्य तथा वायु के मत में रुक्मकवचपुत्र तथा
साम श्रीहरी को अत्यंत प्रिय थे। अविकंपन राजा को भागवतमत में रुचकपुत्र। इसे चैत्रा अथवा शैव्या सात्वतधर्म इसी ब्रह्मर्षि से प्राप्त हुआ। (म. शां. ३३६. ' नामक पत्नी थी। इसे संतति नहीं थी। परंतु अपनी पत्नी के भय से, यह दूसरा विवाह नही कर सकता था । ज्येष्ठा-- अलक्ष्मी देखिये।
एक बार भोज देश की राजकन्या का स्वयंवर संपन्न २. सोम की सत्ताईस पत्नियों में से एक । हुआ था। यह स्वयंवर में गया । पराक्रम से राजकन्या ३. शुक्र की कन्या । द्वादशादित्यों में वरुण की स्त्री। भोजा को जित कर, एवं रथ में बैठा कर, यह अपने इसे बल, अवर्त नामक पुत्र, तथा सुरा नामक कन्या थी नगर ले आया। परंतु चैत्रा ने पूछा, 'यह कौन है'। (म. आ. ६०.५२-५३)। घबराकर इसने कहा 'यह तुम्हारी स्नुषा है। ज्योति--स्वारोचिष मन्वन्तर के मनु का पुत्र । पुत्रवती न होने के कारण, इन शब्दों से चैत्रा को अत्यंत २. वसिष्ठ का पुत्र । स्वारोचिष मन्वन्तर का प्रजापति दुःख हुआ। परंतु जल्द ही चैत्रा को विदर्भ नामक पुत्र हुआ। उसका भोजा से विवाह किया गया (भा. ९.२३. ३. वंशवर्तिन् देवों में से एक । ३५, वायु. ९५)।
ज्योतिर्धामन्-तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से __हरिवंश मे, यही कथा किंचित् अलग ढंग से दी गयी | एक (भा. ८.१.२८)। है । रुक्मेषु तथा पृथुरुक्म नामक बंधुओं ने मिल कर ज्योतिर्मुख-रामसेना का एक वानर (वा. रा. यु. ज्यामध राजा को राज्य से भगा दिया। तब अरण्य | ३०.७३)। में आश्रम बना कर, यह शांत चित्त से रहने लगा। परंतु | ज्योतिर्लिंग-शिव के बारह अवतारों का सामूहिक वहाँ के ब्राह्मणों ने इसकी राज्यतृष्णा जागृत कर, नर्मदा | नाम ।
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४२)।