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जैमिनि
प्राचीन चरित्रकोश
ज्ञानभद्र
जैमिनि ने अपनी शिष्यपरंपरा कैसी बढायी, इसका से प्रसिद्ध है। यशविषयक वाक्यों का अर्थविषयक मतभेद पता कई प्राचीन ग्रंथों से मिलता है। किंतु उसमें एक- दूर कर के संगति लगाना, जैमिनिसूत्रों का मुख्य कार्य है। वाक्यता न होने के कारण, वह जानकारी यहाँ नहीं दी | इन्ही सूत्रों से वाक्यार्थविचारशास्त्र पैदा हुआ। सूत्रों की गई है (अग्नि. १५०.२८-२९; ब्रह्माण्ड. १.१३; २.३५. | संख्या २५०० है । वे ग्यारह अध्यायों में विभाजित है। ३१; वायु. ६१.२७-४८; व्यास देखिये)।
सूत्रग्रंथों में जैमिनिसूत्र प्राचीनतम माने जाते हैं। इस ___ जैमिनि ने लिखा हुवा, 'जैमिनि अश्वमेध' ग्रंथ विषय में प्राचीन आचार्यों का भी निर्देश जैमिनि ने किया प्रसिद्ध है। यह ग्रंथ इसने पूरे महाभारत के रूप में है। 'जैमिनिसूत्रों के उपर, उपवर्ष की वृत्ति, शाबरभाष्य, प्रथम लिखा था। परंतु उसमें पांडवों का गौरव कम था। प्रभाकर की बृहती (गुरुमत), कुमारिलभट्ट का वार्तिक इस कारण, अश्वमेध के सिवा इस ग्रंथ का बाकी भाग नष्ट | (इ.स.७००), पार्थसारथि मिश्र की शास्त्रदीपिका, मंडनकरने की आज्ञा, व्यास ने इसे दी। उस आज्ञानुसार मिश्र के विधिविवेक एवं भावनाविवेक, खंडदेव की भाट्ट जैमिनि ने वह ग्रंथ नष्ट कर दिया।
दीपिका, आदि ग्रंथ विख्यात है। यज्ञद्वारा प्राप्त होनेवाले 'जैमिनि अश्वमेध, महापुराण तथा उपपुराण से बिल्कुल | स्वर्ग की अभिलाषा प्रारंभ में थी। धीरे धीरे टीकाकारों भिन्न है । उसमें भागवत का निम्नलिखित उल्लेख है:- | ने मोक्ष का भी अंतर्भाव पूर्वमीमांसाशास्त्र में कर दिया ।
'भारतं हरिवंशं च पुत्रदं धनदं भवेत् ।। 'बादरायणसूत्रो' में वेद का उत्तरभाग माने गये उपनिषदों श्रीमद्भागवतं पुण्यं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ।।' के वाक्यों का विचार है । इसलिये बादरायणसूत्रों को उत्तर
(जै. आ. ५८.९)। 'जैमिनि अश्वमेध का काल' खि. | मीमांसा नाम से ख्याति प्राप्त हुई। पू. सौ वर्ष माना जाता है (पुराण निरीक्षण, पृ. ८२)। जैवंतायन-एक ऋषि । रौहिणायन के शिष्य शौनक
सामवेद के राणायनीय नामक शाखा का जैमिनीय | तथा रैभ्य के साथ इसका उल्लेख है (बृ. उ.४.५.२९; नामक नवम भेद इसने लिखा है। यह संहिता कर्नाटक | पा. सू. ४.१.१०३)। में विशेष ख्यातनाम है। उसी प्रकार जैमिनीय ब्राह्मण | जैवंत्यायनि-भृगुकुल का गोत्रकार (भृगु देखिये)। तथा जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण नामक सामवेद के ब्राहाण जैवलि-प्रवाहण का पैतृक नाम । जैवलि नामक इसने लिखे । वे दोनों ग्रंथ आज भी उपलब्ध है।
राजा भी यही होगा। राजा जैवलि का गलूनस आक्षाकायण इसके अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रंथ भी इसने लिखे से साम के विषय में संवाद. हुआ था (जै. उ. वा. १. है:--"जैमिनिसूत्र, जैमिनिनिघंटु, जैमिनिपुराण, ज्येष्ठ- | ३८.४; प्रवाहण देखिये)। माहात्म्य, जैमिनिभागवत, जैमिनिभारत, जैमिनिगृह्यसूत्र, | २. एक तत्त्वज्ञ। इसका शिष्य आरुणि (बृ. उ. ६. जैमिनिसूत्रकारिका, जैमिनिस्तोत्र, जैमिनिस्मृति (C.C.)। २.५.७) । यह क्षत्रिय था। ब्राह्मणों में आरुणि सब से सुमन्तु, वैशंपायन, पुलस्त्य, तथा पुलह इनके समान |
प्रथम ब्रह्मज्ञानी हुआ (छां. उ.५.३७; चित्र गाायणि यह भी वज्रनिवारक था (शब्दकल्पद्रुम)। इसका पुत्र | देखिये)। सुमंतु (विष्णु. ३.६.२)।
जैह्मप-गौरपरांशरकुलीन एक ऋषि । 'समय' जैमिनिगृह्यसूत्र के उपाकर्मीगतर्पण में, जैमिनि ने |
इसीका ही पाठभेद। निम्नलिखित आचार्यो का उल्लेख किया है:-१. जैमिनि,
जैखलायनि--अंगिराकुल का एक गोत्रकार । २. तलवकार, ३. सात्यमुग्र, ४. राणाय नि, ५. दुर्वासस् , ६. भागुरि, ७. गौरुण्ड़ि, ८. गौर्गुलवि, ९. भगवान्
जौडिलि-गोडिनी के लिये पाठमेद। औपमन्यव कारडि, १०. सावर्णि, ११. गार्ग्य, १२. वार्ष
ज्ञाति-(सो. क्रोष्ट.) मत्स्यमत में बभ्र का पुत्र । गण्य तथा १३. दैवन्त्य (जैमिनि गृह्यसूत्र १.१४ )। यह | विष्णु मत में इसे धृति, भागवत मत में कृति, तथा वायु सामवेदी श्रुतर्षि था। ब्रह्मांडपुराण के प्रवर्तक ऋषियों की | मत में आहुति नाम है। परंपरा में, इसका नामोल्लेख आता है।
ज्ञानगम्य--सोमकांत राजा का प्रधान ( गणेश, जैमिनिसूत्र का परिचय- जैमिनि ने यज्ञप्रतिपादक | २९.)। ब्राह्मण ग्रंथ का वाक्यार्थ निश्चित करने के लिये सूत्ररचना ज्ञानभद्र-द्वापार युग का एक महायोगी। यह की । जैमिनि रचित सूत्र 'पूर्वमीमांसा' वा 'कर्ममीमांसा' नाम | सौराष्ट्र में रहता था। .
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