________________
अक्रूर
प्राचीन चरित्रकोश
अगस्त्य
(भा. १०. ३६. २८, ४९. २६)। इसको देववत् एवं | कयाशुभीय सूक्त में इन्द्र-मरुतों का विवाद है (ऋ. १. उपदेव नामक दो पुत्र थे (भा. ९. २४. १८)। | १६५) तथा अन्त में मरुतों का सांत्वन है। यह विवाद २. कद्रपुत्र।
वैदिक ग्रंथों में काफी प्रसिद्ध प्रतीत होता है (तै. सं. अक्रोधन-(सो. पूरु.) अयुतानायिपुत्र । इसकी माता | ७. ५.५.२; तै. बा. २. ७. ११. १; मै. सं. २. १.८; भासा । इसकी पत्नी का नाम कण्डू । इसका पुत्र देवातिथि क. सं. १०.११; पं. बा. २१. १४.५)। इन्द्र पर भी (म. आ. ९०.२०)। भविष्य के मत में यह अयुतायू | इसका काफी प्रभाव था (ऋ. १. १७०)। का पुत्र है । इसने १०५०० वर्षों तक राज्य किया।
इसकी पत्नी का नाम लोपामुद्रा (ऋ. १.१७९.४)। __ अक्ष-रावण को मन्दोदरी से उत्पन्न पुत्र । अशोकवन | ऋग्वेद के इस सूक्त में अगस्त्य-लोपामुद्रा संवाद है। वहाँ यह के ध्वंस समय रावण ने हनुमान को पकडने के लिये | वृद्ध है तथा लोपामुद्रा इसे संभोग के लिये प्रवृत्त कर रही है। पांच सेनापति भेजे थे। हनुमान द्वारा वे मारे जाने पर
यह खेल नृप का पुरोहित होगा (ऋ. १.१८२.१)। इसको भेजा गया। आठ अश्वों से युक्त रथ में बैठ कर
अगस्त्यशिष्य (ऋ. १.१७९.५-६) तथा अगस्त्य स्वस यह अशोकवन में गया तथा हनुमान से युद्ध करते
(ऋ. १०.८०.८) के नाम पर कुछ ऋचाएँ हैं । अन्त में उसी के हाथों मारा गया (वा. रा. सुं. ४७)। | ऋषियों में वृद्धतम जान कर इन्द्र ने इसे गायत्र्युपनिषद मक्ष मौजवत-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.३४)। का उपदेश दिया तथा इसने वह उपदेश इषा को बता भक्षपाद-शिवावतार सोम का शिष्य । (गौतम
कर परंपरा प्रारंभ की (जै. उ.बा.४.१५.१,१६. १)। देखिये )। .
जैमिनीय उपनिषद्-ब्राह्मण ही गायत्र्युपनिषद् है ।। ____ अक्षमाला-वसिष्ठ की पत्नी (म.उ. ११५.११)।
पौराणिक वाङ्मय मे उपरोक्त वर्णन के विरुद्ध कुछ अरुंधती का नामान्तर ।
विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। समुद्र में छिपे अक्षीण-विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ४.५०)।
हुए असुरों में इन्द्रादिकों को जब सताना प्रारंभ किया __ अगस्ति-(स्वा.) पुलस्त्य को हविर्भू से उत्पन्न
| तब देवताओं ने अग्नि तथा वायु को समुद्र का शोषण ..पुत्र।.
करने को कहा। परन्तु समुद्र के प्राणियों का नाश होने की २. अगस्त्य, दृढद्युम्न और इंद्रबाहु को अगस्ति संज्ञा संभावना से उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। तब इन्द्र - है (मत्स्य १४५..११४-११५)।
के द्वारा दिये गये शाप से मित्रावरुणों के वीर्य से यह मगस्त्य-वसिष्ठ के समान यह भी मित्रावरुणों का | कुंभ में उत्पन्न हुआ। उनमें से अगस्य, अग्नि है। इसी .. पुत्र है (ऋ७.३३. १३)। उर्वशी को देख कर मित्रा- कारण इसको मैत्रावरुणि तथा कुंभयोनि नाम मिले (मत्स्य .. वरुणों का रेत कमल पर स्खलित हुआ तथा उससे वसिष्ठ | ६१.२०१; पम. स. २२. २२; म. व. ९६; द्रो. १३२,
एवं अगस्त्य उत्पन्न हुए (बृहद्दे. ५. १३४) । ऋग्वेद में | १८५; शां. ३४४; ब्रह्माण्ड. ३.३५)। अगस्त्य के काफी सूक्त तथा मंत्र हैं (ऋ. १. १६५. १३- अगस्त्य विरक्त था तथापि पितरों की आज्ञानुसार १५:१६६-१६९; १७०.२, ५, १७१-१७८; १७९.३- विदर्भाधिपति की कन्या लोपामुद्रा के साथ इसका विवाह ४; १८०-१९१)। अगस्त्य कुलनाम होने के कारण हुआ (लोपामुद्रा देखिये)। वह राजकन्या होने के कारण अगस्त्य कुल के लोगों द्वारा रचित सूक्त अगस्त्य के नाम उसे अगस्त्य की अपेक्षा ऐश्वर्य में विशेष ऋचि थी। से प्रसिद्ध हैं। एक स्थान पर अगस्त्य का सुमेधस् नाम | अपने तपःसामर्थ्य से जो चाहे वह प्राप्त करने की शक्ति होते आया है (ऋ. १.१८५.१०)। मान्य तथा मान्दार्य ये हुए भी तप का व्यय करने की अगस्त्य की इच्छा न थी। पैतृक नाम भी अगस्त्य के लिये दिये हुए मिलते हैं (ऋ. | परन्तु लोपामुद्रा की तीव्र इच्छा देख कर श्रुतर्वन् , बन्ध्यश्व १.१६५.१४-१५,१६६.१५)। मरुतों के लिये लाये गये | तथा त्रसदस्य इन तीन राजाओं के पास से संपत्ति प्राप्त करने पशु का इन्द्र ने हरण किया, तब वे वज्र लेकर इन्द्र को | का इसने प्रयत्न किया; परन्तु इसे यश प्राप्त नहीं हुआ। मारने के लिये उद्युक्त हुए। उस समय, अगस्त्य में मरुतों | तथापि त्रसदस्यू ने अगस्त्य को इल्वल की अपरंपार संपत्ति का सांत्वन किया तथा इन्द्र-मरुतों में मैत्रीभाव निर्माण | का वर्णन बताया। तब तीनों राजाओं को साथ ले कर यह किया। जिस सूक्त के द्वारा यह मैत्रीभाव सिद्ध किया वह | इल्वल के पास गया तथा अपने अतुल सामर्थ्य से इल्वल अगस्त्य का कयाशुभीय सूक्त है (ऐ. ब्रा. ५. १६)। की संपत्ति प्राप्त कर इसने लोपामुद्रा को संतुष्ट किया।