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________________ अकंपन समझा कर उसका समाधान किया ( म. द्रो. परि. १.८. पंक्ति ३५. ३५९ ) 1 २. एक राक्षस । यह रावण का दूत था । जनस्थान में खरादिक राक्षसों के राम द्वारा बध की प्रथम सूचना रावण को इसने ही दी थी (वा. रा. अर. ३१) । इसने सीता को चुरा कर खाने की सह रावण को दी। रावण ने युद्ध के संबंध में इसकी स्वतंत्र सिफारिश की थी (बा. रा. युद्ध ५५. २९ ९ २८ ) । रामरावणयुद्ध में हनुमान के द्वारा इसकी मृत्यु हुई (बा. रा. बुद्ध. ५६.३० ) । प्राचीन चरित्रकोश ३. कश्यप तथा खशा का पुत्र । अकर्कर- एक सर्प (म. आ. ३१. १५) । अकर्ण - कश्यप तथा कद्रू का पुत्र । अकल्मष - तामस मनु के पुत्रों में से एक । । अकृतत्रण — हिमालयस्थ शान्त ऋषि का पुत्र । एक बार म्याम के आक्रमण से भयभीत हो कर यह चिल्लाता हुआ भागने लगा । इसी समय परशुराम, शंकर को प्रसन्न कर के बापस आ रहे थे। इसे भागते हुए देख कर परशुराम ने इसे अभय दिया तथा स्याम को मार डाला। व्याम के द्वारा इस बालक के शरीर पर व्रण न किये जाने के कारण इसका नाम अकृताण प्रचलित हुआ। बाद में परशुराम ने इसको अपना शिष्य बनाया । यह निरंतर परशुराम के साथ रहता था (ब्रह्म ३.२५६६ ) । २. युधिष्ठिरद्वारा किये गये राजसूय यज्ञ में यह उपद्रष्टा था । ( भा. १०.७४.९ ) । इसने रोमहर्षण से सत्र पुराणों का अध्ययन किया (भा. १२. ७. ५-७ अंबा देखिये ) । ३. कृतयुग का एक ब्राह्मण । यह एक बार, जब सरोवर में स्नान कर रहा था, तब एक नक ने इसका पैर पकड़ा तथा उसे जल में खींचने लगा। इस लिये इसने उस सरोवर के जल को एवं जलदेवता को शाप दिया कि, जो कोई इस पानी को स्पर्श करेगा वह तत्काल व्याघ्री हो जायेगा । आगे पांडवों का अश्वमेधीय अश्व इस सरोवर में जलपान के लिये उतरने के कारण ज्या वन गया है. अ. २१) मत्स्य के १-१०१ अकृताश्व वा अकृशाश्व - ( सू० इ. ) मत में यह संहताश्व का पुत्र है। अकृष्टमाच — सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९ ८६. ३१-४० ) । अकोप -- इशरथ के अष्टप्रधानों में से एक ( वा. रा. बा. ७)। इसका अशोक नामान्तर भी प्राप्त है। अक्रूर अक्रिय -- (सो. रंम.) गंभीर का पुत्र इसकी संतति तप से ब्राह्मण बन गई थी ( भा. ९.१७.१० ) पुत्र अक्रूर - ( सो. वृष्णि. ) श्वफल्क को गांदिनी से उत्पन्न इसको आसंग आदि ग्यारह तथा सुचिरा नामक भगिनी थी ( भा. ९. २४; १५.१८)। आहुक की कन्या सुतनु इसकी पत्नी थी ( म. स. ११.२२) । इस पर कंस तथा रामकृष्ण का समान ही विश्वास था। रामकृष्ण का कोटा दूर करने के उद्देश्य से कंस ने उन्हें मथुरा खाने के लिये अजूर को भेजा। यह कार्य स्वीकार कर राम कृष्ण को लेकर अक्रूर मथुरा आया। मार्ग में यमुना में स्नान करते समय डुबकी लगाने पर अफूर को राम कृष्णका साक्षात्कार हुआ (भा. १०.३९.४९ ह. वे. २.२६ ) | उसी प्रकार, धृतराष्ट्र पांडवों से अच्छा व्यवहार करता है या नहीं इसे बारीकी से देखने के लिये कृष्ण ने अक्रूर को ही हस्तिनापूर भेजा था (सा. १०. ४९ ) । कुन्ती ने भी अपनी स्थिति मुक्तहृदय से इसको बताई थी। उसी प्रकार, धृतराष्ट्र को भी कुछ उपदेश इसने दिया था, परंतु उसका कुछ लाभ न होगा, यह इसे धृतराष्ट्र के भाषण से मालूम हो गया (भा. १०.४८ ) । कृष्ण ने स्यमन्तक मणि के लिये शतधन्वा की हत्या की, इसकी सूचना मिलते ही भय से अपूर ने मथुरा का त्याग कर दिया। अनूर मथुरा से कहाँ गया, इसका उल्लेख यद्यपि भागवत में नहीं है, तथापि वह काशी गया था ऐसी आख्यायिका है। काशीस्थित वर्तमान अक्रूरघाट से इस आख्यायिका की पुष्टि होती है । उस समय कृष्ण ने सीग्यता से अक्रूर को बताया कि मेरे पास दिखा कर तुम सब का संशय निवारण कर दो । तब अक्रूर ने स्यमन्तक मणि है ऐसा संशय लोगों को है, इस लिये मणि मणि दिखा कर सत्र का संशय निवारण किया ( भा. १०. ५६-५७)। द्रौपदी के स्वयंवरार्थ आये हुए राजाओं में अक्रूर बैठनेवाले राजाओं में भी इसका उल्लेख है (म. . ४था ( म. आ. १७७ - १७ ) | युधिष्ठिर के दरबार में २७ १३-३२ ) । एक बार सूर्यग्रहण के पर्वकाल में यह स्यमन्तपंचक क्षेत्र में गया था ( भा. १०. ८२. ५ ) । यादवी के समय अक्रूर एवं भोज में युद्ध हो कर दोनों मृत हो गये (गा. ११.२० १६) | यह अनूर का नामान्तर है, ऐसा कहने के लिये आधार है ( प (१०.) देखिये) । कई स्थानों पर इसको दानपति कहा गया है
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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