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जटासुर
प्राचीन चरित्रकोश
जनक
तथा सहदेव को ले कर, यह भागने लगा। सहदेव ने जन-(सो. पूरु.) अजमीढ एवं केशिनी का पुत्र अपने आप को मुक्त कर लिया। धर्मराज ने इसे बहुत | (म. आ. ८९. २८)। उपदेश दिया परंतु इसने एक न सुनी । इतने में गदाधारी | जन शार्कराक्ष्य--एक ऋषि । अश्वपति कैकेय, भीम वहाँ आ पहुँचा। उसने इससे मल्लयुद्ध कर के | अरुण औपवेशि तथा उसके पुत्र उद्दालक आरुणि का इसका वध किया (म. व. १५४)। इसे अलंबुस नामक | यह समकालीन रहा होगा। उद्दालक आरुणि के पास, पुत्र था (म. द्रो. १४९.५-९)।
यह तत्वज्ञान सीखने के लिये गया था (श. बा.१०. २. मद्राधिपति । धर्मराज की मयसभा में यह एक | ६.१.१; छां. उ. ५.११.१; १५. १)। सदस्य था (म. स. ४.२१.)।
जनक-निमि या विदेहवंश का कुलनाम । इनकी जटिन्-पातालस्थित एक नाग । रावण ने इसपर | वंशावलि भी पुराणों में कई स्थानों पर मिलती है। विजय प्राप्त की थी (वा. रा. यु. ७)।
(ब्रह्मांड. ३. ६४; वायु. ८९; भा. ९. १३; विष्णु. जटिल-एक ब्रह्मचारी। शंकर ने जटिल नामक ४. ४, गरुड. १. १३८)। सूर्यवंशीय इक्ष्वाकुपुत्र निमि से ब्रह्मचारी का रूप धारण किया था। .
निकली हुई यह एक वंशशाखा है। यह वंशावलि अनेक दक्षयज्ञ में सती के . देहत्याग के बाद, हिमालय को
स्थानों पर मिलती है, फिर भी उनमें साम्य नहीं है। मैना से पार्वती उत्पन्न हुई। वह शंकर के लिये तपस्या
विशेषतः भागवत आदि पुराणों में कुछ व्यक्ति अधिक कर रही थी। 'जटिल ब्रह्मचारी' का वेष धारण कर शंकर
जोड़ दिये गये हैं । विदेहवंश का द्वितीय पुरुष मिथिजनक वहाँ आया । इसने शंकर की बहुत निंदा की । यह और
था । इसीने मिथिलानगरी स्थापित की। इसीसे भी निंदा करेगा, यह सोच कर पार्वती ने अपनी सखी
'जनक' यह सामान्यनाम चल पड़ा। जनक नाम से इस विजया के द्वारा, इसको भगाने की सोची। इतनेमें | वंश के लोगों का उल्लेख करने की रीति है (श. ब्रा. शंकर अपने असली रूप से प्रकट हुआ। कुमारसंभव के
११. ३. १. २, ४. ३. २०; ६. २. १; बृ. उ. ३. १. पंचम संग से इस कथा का काफी साम्य है। इसे ब्रह्म
१; ४.१.१; २.१; जै. बा. १.१९.२; कौ. उ. ४.१)। चारिन् भी कहा गया है (शिव. शत. ८४)।
याज्ञवल्क्य वाजसनेय तथा श्वेतकेतु आरुणेय से
इसकी अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी। वैदिक वाङ्मय : जटिला--गौतम के वंश की एक स्त्री । सप्तर्षि इसके
में भी ब्रह्मवेत्ता के रूप में, महापुरुष का स्थान इसे प्राप्त पति थे (म. अ. १८८. १४)।
है (तै. ब्रा. ३. १०. ९. ९)। इसने सप्तरात्र नामक . जटीमालिन्--एक शिबावतार । वाराह कल्प के | याग किया (सां. श्री. १६. २. ७.७) । वैदेह जनक को वैवस्वत मन्वंतर में उन्नीसवीं चौखट में हिमालय पर सावित्राग्निविद्या का उपदेश अहोरात्र के अभिमानी देवों ने
यह शिवावतार हुआ। वहाँ, इसके क्रमानुसार हिरण्य- दिया (तै. बा. ३.१०. ९. २१; भरद्वाज देखिये)। • नामन् , कौशल्य, लोकाक्षिन् , प्रधिमि ये चार पुत्र हुएँ यह याज्ञवल्क्य का समकालीन था। उस समय इसका (शिव. शत. ५)।
नाम दैवराति था । वंशावलि के अनुसार, राम का श्वसुर जड--जनस्थान का कौशिकगोत्री दुराचारी ब्राह्मण । सीरध्वज जनक से, यह जनक कई पीढियों बाद का है। यह एक बार व्यापार करने गया, तब चोरों ने इसके २. एक राजा । भागवत तथा विष्णु मत में यह प्राण ले लिये। पूर्वजन्म के पापों के कारण, यह | निमिपुत्र तथा वायु मतानुसार नेमिपुत्र था । वसिष्ठ पिशाच हुआ। इसका पुत्र अत्यंत सदाचारी था। पिता | के शाप के . कारण, निमि का देहपात हुआ । का उत्तरकार्य करने के लिये वह काशी जाने निकला। देवताओं के कहने पर ब्राह्मणों ने उसके देह वह उसी स्थान पर आया, जहाँ उसका पिता झाड पर का मंथन किया। उसमें से यह उत्पन्न हुआ। इसे पिशाचअवस्था में रहता था। उसने गीता के तीसरे जनक, विदेह मिथिल आदि अन्य नाम थे । इसने मिथिला अध्याय का पाठ किया । उसे श्रवण कर, यह मुक्त नगरी की स्थापना की। इसका पुत्र उदावसु । इसके हुआ ( पद्म. उ. १७७) । मार्कंडेय पुराण में भी एक वंशजों को जनक नाम से ही संबोधित किया जाता है जड़ का उल्लेख है।
(भा. ९. १३. १३, ६. ३. २०)। पंचशिख के साथ जतृण--अंगिराकुल का एक गोत्रकार ।
इसका अध्यात्मविषय पर संवाद, प्रजापालन करने के