SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छाया प्राचीन चरित्रकोश जटासुर यम तथा यमुना इन संज्ञापुत्रों को सापत्नभाव से देखने से, सूर्य ने पहचान लिया कि, यह कौन है। तब वह संज्ञा लगी। यम को यह सहन नहीं हुआ। उसने छाया पर के पास चला गया (विवस्वत् , संज्ञा, तथा यम देखिये)। लत्ताप्रहार किया। तब इसने उसे शाप दिया । इस शाप जघन--धूम्राक्ष का पुत्र (गणेश. २.३१.१२)। इसने पंखों से उड़ा दिये। अंत में रावण ने इसके पंख जंगारि--विश्वामित्रकुल का गोत्रकार । तोड़ कर, इसे मृतप्राय कर दिया। जंघ--रावण के पक्ष का एक राक्षस । ___इस प्रकार, जटायु को हतबल कर, सीता को रावण ले जंघाबंधु--युधिष्ठिर की सभा में उपस्थित एक ऋषि | गया। सीता को खोजते हुए रामलक्ष्मण वहाँ आये। (म. स. ४.१४)। सीता का हरण रावण ने किया, यह वृत्त जटायु ने राम जंघारि--विश्वामित्र का पुत्र । को बताया। इसने कहा, 'चूंकि सीता का हरण विन्द जटायु--गरुड जाति का एक मानव । विनता- | मुहूर्त पर किया गया है, अतएव वह तुम्हें पुनः . पुत्र अरुण को श्येनी से उत्पन्न दो पुत्रों में से यह एक था | अवश्य प्राप्त होगी (वा. रा. आर. ६८.१२)' । राम.ने (म. आ. ६०.६७; वा. रा. अर. १४.३; ३३)। यह इसे पूज्य मान कर आलिंगन किया ( वा. रा. अर. ६७. एक राजा था, जो योग्य रीति से अपनी प्रजा का २३; ६८.२६-३६)। तदनंतर इसने प्राणत्याग किया। पालन करता था (वा. रा. अर. ५०. २०)। राम ने रामलक्ष्मण ने इसे पूज्य मान कर इसकी उत्तरक्रिया जब इसे सर्वप्रथम देखा, तब उसे लगा, यह कोई की। इस समय इसकी आयु साठ हजार वर्षों की थी राक्षस होगा। आगे चल कर, राम एवं सीता को यह (म. व. २७९; आ. रा. सार.७; वा. रा. अर. ५०-५२; गृध्रस्वरूप में दिखाई दिया। राम ने पूछा. 'तुम कौन ६८.२६-३६)। हो ?' अपना परिचय दे कर इसने कहा, 'रामलक्ष्मण ___ जटायु की मृत्युवातर्ता ज्ञात होते ही, अंगदादि वानरों जब बाहर जायेंगे तब मैं सीता की रक्षा करूँगा' (वा. की सहायता से, संपाति वहाँ आया। उसने जटायु रा. अर. १४.३,३३-३४, ५०)। यह हितचिंतक है, का तर्पण किया (वा. रा. कि. ५८.३३-४५)। संपाति यों बाद में प्रतीत होने लगा। इसका बड़ा भाई था (वा.रा. कि.५३.२३;म. आ. ६५)। यह दशरथ का मित्र था (म.व.२६३.१ वा. रा. अर. इसे काक, गृध्र तथा कर्णिक नामक तीन पुत्र थे (ब्रह्मांड १४.३)। अपनी स्नुषा के समान सीता को, रावण की ३.७-४४८)। स्वयं जटायु तथा संगति में, वे मनुष्यों मे गोद में देख कर इसे अत्यंत क्रोध आया। यह रावण से भिन्न है, ऐसी भावना नहीं थी (वा. रा. कि.५६.४)। युद्ध करने के लिये तैय्यार हो गया। रावण सीता को ले जटासुर-एक राक्षस । वनवास के समय पांडव एक जा रहा था, तब इसने उसे उपदेश किया। उपदेश में बार बदरिकाश्रम आये। तब ब्राह्मण के वेश में यह राक्षस रावण को वेदतत्त्व बता कर, परस्त्रीअपहार के लिये इसने उनके पास रह कर, अपने तप की प्रशंसा करता रहा। उसका निषेध किया (वा. रा. अर. ५०)। इसने रावण पांडवों के शस्त्रास्त्र तथा द्रौपदी का हरण करने का यह से कहा, 'तुम चुपचाप सीता को छोड दो, अन्यथा सोचता था। परंतु शक्तिशाली भीम के सामने इसकी डाल परिणाम अच्छा नहीं होगा'। परंतु रावण ने यह नहीं नही गलती थी। भीम पहचान गया था कि, यह अवश्य माना । तब दोनों में युद्ध छिड़का। इसने अपने तीक्ष्ण | कोई राक्षस है। नखों से, तथा चोंच से रावण को घायल किया। रक्त से एक दिन भीम अरण्य में गया था। अर्जुन लथपथ कर दिया। रावण के द्वारा छोड़े गये सब बाण इंद्रलोक गया था। यह अवसर देख, द्रौपदी, धर्म, नकुल २१८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy