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________________ च्यवन प्राचीन चरित्रकोश च्यवन श्लोकों का उद्धरण, इन दो ग्रंथो में दिया हैं:-(१) गोदान | से पुलोम जल कर भस्म हो गया । बालक को ले कर पुलोमा के समय कहे जानेवाले मंत्र, (२) कुत्ता, चण्डाल, प्रेत, भृगृआश्रम में वापस आई (म. आ. ४-६; ६०.४४)। चिताधम, मद्य, मद्यपात्र आदि अस्पर्श वस्तुओं का स्पर्श | बडा होने पर, च्यवन वेदवेदांगों में निष्णात बना। होने पर किये जानेवाला प्रायश्चित्तविधी, (३) गोवध पश्चात् यह कठोर तपस्या करने लगा। तपश्चर्या करते समय, का प्रायश्चित्तविधी। इसके शरीर पर एक बड़ा वल्मीक तैयार हो गया। इसी भास्करसंहिता के अन्तर्गत जीवदानतंत्र का यह | वन में, राजा शांति अपने परिवार के साथ क्रीड़ा करने रचयिता है (बह्मवै. २. १६)। हेमाद्रि, माधवाचार्य, आया । उसकी रूपवती कन्या सुकन्या अपनी सखियों के एवं मदनपारिजात इन तीन ग्रंथों में इसके आधार लिये | साथ घूमते घूमते, उस वल्मीक के पास आई । उसने देखा गये हैं। कि, वल्मीक के अंदर कुछ चमक रहा है। चमकनेवाला च्यवन भार्गव---एक प्राचीन ऋषि । ऋग्वेद में इसे | पदार्थ क्या है, यह देखने के लिये उसने कांटों से उसे एक वृद्ध तथा जराकान्त व्यक्ति के रूप में दिखाया गया टोका। इससे च्यवन ऋषि की आँखें फूट गई। अत्यंत है। इसे अश्वियों ने पुनः युवावस्था तथा शक्ति प्रदान संतप्त हो कर, इसने संपूर्णसेना समेत राजा का मलमूत्रावरोध की, तथा इसे अपनी पत्नी के लिये स्वीकार्य तथा कन्याओं कर दिया । राजा हाथ जोड़ कर इसकी शरण में आया। का पति बना दिया (ऋ. १.११२.६, १०, ११७.१३; च्यवन ने कहा, 'तुम्हारी कन्या मुझे दो' । राजा ने यह ११८.६; ५.७४.५, ७.६८.६; १०.३९.४)। मान्य किया । सुकन्या का वृद्ध च्यवन से विवाह हो गया ऋग्वेद में सर्वत्र इसे च्यवान कहा गया है। च्यवन (म. आ. ९८)। नाम से इसका निर्देश, ऋग्वेद के अतिरिक्त अन्य सभी बाद में उसी वन में, सुकन्या अपने पतिसमवेत वास वैदिक ग्रंथों में, निरुक्त में तथा महाकाव्य में मिलता है। | करने लगी। एक दिन अश्विनीकुमारों ने उसे देखा। (नि.४.१९)। सर्वानुक्रमणी में इसे भार्गव कहा है (ऋ. उसने सुकन्या से कहा, 'तुम हमारे साथ चलो' । तब १०.१९)। यह भृगु का पुत्र था। इसने अपने पातिव्रत्य से अश्चियों को आश्चर्यचकित कर दिया। सुकन्या ने कहा, 'मेरे पति को यौवन प्रदान ब्राह्मणों में इसे दाधीच कहा गया है (श. ब्रा. ४.१. | करो'। अश्विनीकुमारों के प्रसाद से च्यवन तरुण हुआ। ५, पं. ब्रा. १४.६.१०)। ग्राम के बाहर बैठे हुए, भयानक | | एक तालाब में डुबकी लगाने के कारण, च्यवन पुनः युवा आकृतिवाले, तथा अत्यंत वृद्ध च्यवन को, बालकों ने पत्थर हो गया, ऐसी कथा ब्राह्मणों में दी गयी है (श. बा. ४. . मारे, आदि कथाएँ पुराणों के समान ब्राह्मणों में भी प्राप्य है। यह सामों का द्रष्टा भी था (पं. ब्रा. १३.५.१२, अश्वियों का इस उपकार का बदला चुकाने के लिये, १९.३.६)। च्यवन अपने श्वसुर के गृह में गया। शर्याति राजा के ऋग्वेद में, इसे अश्विनों का मित्र, तथा इंद्र एवं उसका हाथ से एक विशाल यज्ञ करवा कर, अश्विनीकुमारों को एक उपासक पक्थ तुर्वयाण का विरोधक दर्शाया है यह हविर्भाग देने लगा। परंतु अश्चियों को हविर्भाग (ऋ. १०.६१.१-३)। भृगु का अन्य पुत्र विदन्वत् ने मिलना, इंद्र को अच्छा न लगा। उसने इसे मारने के इसे इंद्र के विरुद्ध सहायता की थी (जै. ब्रा. ४.१.५. लिये बज्र उठाया । च्यवन ने इन्द्र के नाशार्थ मा नामक १३)। आगे चल कर, इंद्र से इसकी संधि हो गई (ऋ. | राक्षस उत्पन्न किया। उसे देखते ही भयभीत हो कर, ८.२१.४)। इन्द्र इसे शरण आया । इसी समय से, अश्विनीकुमारों को यह भृगु ऋषि तथा पुलोमा का पुत्र था। पुलोमा के यज्ञ में हविर्भाग मिलने लगा (म. व. १२१-५२५%, उदर में भृगूवीर्य से गर्भसंभव हुआ। एक बार, भृगु | अनु. २६१ कुं; भा. ९.३; दे. भा. ७.३-७)। नदी पर स्नान करने गया। तब पुलोम नामक राक्षस ने ___ एक बार प्रयागक्षेत्र में च्यवन ने उदबासव्रत का पुलोमा का हरण किया। कई ग्रंथों में, इस राक्षस का प्रारंभ किया। रातदिन यह जल में जा कर बैठता था। नाम दमन भी दिया गया है (पन. पा. १४)। सब मछलियाँ इसके आसपास एकत्रित हो जाती थीं। ___ भय के कारण, मार्ग में ही पुलोमा प्रसूत हो गई। अतः | एक बार कुछ मछुओं ने मछलियाँ पकड़ने के लिये. जाल इस पुत्र को च्यवन नाम प्राप्त हो गया। च्यवन के दिव्यतेज | लगाया। तब उसमें मछलियों के साथ, च्यवन ऋषि भी सम २१६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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