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________________ चेदिप - प्राचीन चरित्रकोश च्यवन चेदिप-(सो. ऋक्ष.) उपरिचर वसु का पुत्र एवं | चैलकि-जीवल का पैतृक नाम (श. ब्रा. २.३.१. चेदि देश का राजा (भा. ९. २२.६)। | ३४)। चेनातकि-अंगिराकुल का गोत्रकार । चोल--द्रमिड देश का क्षत्रिय राजा (म. स. परि. चेलक शांडिल्यायन-एक ऋषि । एक विशेष | १. क्र. १५, पंक्ति ५६)। उपासना के प्रकार का यह ज्ञाता था (श. बा. १०. २. कांतिपुर का राजा । अनंतशयन में बड़े ठाठबाठ ४. ५.३)। | से इसने श्रीरंग की पूजा की। तदनंतर विष्णुदास चैकितानेय-सामविद्या का एक आचार्य (जै. उ. | नामक ब्राह्मण ने तुलसीपत्र से श्रीरंग की बड़ी भक्ति से ब्रा. १. ३७.७; ४२. १, २.५२)। इसका सही नाम | पूजा की । एक गरीब ब्राह्मण की यह मजाल देख कर, राजा वसिष्ठ चैकितानेय था। साम के बारे में लिखते समय, | बड़ा ही क्रोधित हुआ। इसका नामनिर्देश प्राप्त है (बृ. उ. १.३. २४)। पश्चात् इन दोनों ने तय किया कि, जो श्रेष्ठ विष्णुभक्त पड़र्विस ब्राह्मण (४१), तथा वंशब्राह्मण में भी होगा, वह पहले वैकुंठ जावेगा । तदनंतर इसने दानइसका उल्लेख आया है . (२)। बहुत सारे ग्रंथों में | दक्षिणा, यज्ञयाग आदि प्रारंभ किया। विष्णुदास ने माघ इसका निर्देश चैकितानेय नाम से प्राप्त है। शंकराचार्य तथा कार्तिक व्रत, तुलसीवन का पोषण, एकादशी, द्वादशाने चैकितानेय का अर्थ, चैकितान का पुत्र लगाया है। क्षर मंत्र, उसी प्रकार विष्णुस्मरण, पूजन, नृत्य, गायन, परन्तु वंशब्राह्मण के भाष्य में, चैकितानेय एक विशेष | तथा जागरण यह क्रम प्रारंभ किया। अन्त में इस भक्ति नाम माना गया है। यह वासिष्ठ आरैहण्य का शिष्य प्रभाव से विष्णुदास इसके पहले वैकुंठ गया । तब इसे था । ब्रह्मदत्त का यह पैतृक नाम था। उपरति हो कर, भक्ति छोड़ बाकी सब तुच्छ हैं, यह इसने चैकितायन-दाल्भ्य का पैतृक नाम (छां. उ. १. जान लिया । इसने यज्ञ में छलांग लगाई । परंतु विष्णु ने इसे झेल लिया। विष्णु इसे स्वर्ग ले गया। चोल तथा विष्णुदास को स्वर्ग में सुशील तथा पुण्यशील ये नये नाम चैत्य--मरुद्गणों के प्रथम गणों में से एक। प्राप्त हो गये। वे ईश्वर के द्वारपाल बने । राज्यत्याग के चैत्र--यज्ञसेन का पैतृक नाम ( का. सं. २१, ४)। बाद इसने अपने भतीजे को गद्दी पर बैठाया। (पद्म. उ. २.स्वारोचिष मन्वंतर के मनु का पुत्र । १०८.१०९; स्कंद. २.४.२६-२७)। चैत्ररथ-चित्ररथ राजा का पुत्र । भारतीययुद्ध में चौक्षि--भृगुकुल का गोत्रकार । यह पांडवों के पक्ष में था। चौलि--वसिष्ठकुल का गोत्रकार । चैत्रसेनि--चित्रसेन पांचाल का पुत्र । यह पांडव च्यवतान मारुताश्व-एक राजा । यह मरुताश्व का वंशीय था तथा भारतीययुद्ध में पांडवों के पक्ष में था।। वंशज था । ध्वन्य, पुरुकुत्स तथा यह संवरण के आश्रयचैत्रा-ज्यामध राजा की भार्या तथा शिबि राजा दाता थे (ऋ. ५. ३३.९)। की कन्या । शैव्या इसीका नामान्तर है। च्यवन--(सो. नील) एक राजा। दिवोदास को चैत्रायण--अत्रिकुल का गोत्रकार । मित्रेयु नामक एक पुत्र था। च्यवन उसका पुत्र है। इस चैत्रियायण-यज्ञसेन का वंशज । इसने छंदोभिद | को बाद में सुदास नामक एक पुत्र हुआ (भा. ९. नामक इष्टकों की चिति से, पशुओं की प्राप्ति कर ली (ते. | २२.१)। सं. ५.३.८.१)। | २. (सो. ऋक्ष.) भागवत, विष्णु तथा वायु के मत चैद्य-(सो. अज.) मत्स्य मत में मैत्रेयपुत्र । में सुहोत्र का पुत्र, तथा मत्स्य के मत में सुधन्वन् चैद्योपरिचर वसु--(सो. ऋक्ष.) उपरिचर वसु | का पुत्र । देखिये। ३. गोकर्ण नामक शिवावतार का शिष्य । २. शिशुपाल को चैद्य कहते थे (कशु तथा चिदि ४. एक धर्मशास्त्रकार । अपरार्क तथा मिताक्षरा देखिये । ग्रंथों में इसके धर्मशास्त्र का उल्लेख प्राप्त है (अप. १. चैल--व्यास की सामशिष्यपरंपरा के वायु मता- | २०७, ३; २६४-२६५, मिता. ३. ३०, ३. २९२)। नुसार शृंगीपुत्र का शिष्य । निम्नलिखित विषयों पर इसने रचे काफी सूत्र तथा २१५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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