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________________ चरक प्राचीन चरित्रकोश चरक विवेचन प्रायः समान है । चरक तथा याज्ञवल्क्य दोनों ने | याज्ञवल्क्यकालीन चरक तथा कनिष्ककालीन चरक ये दो मानवी अस्थिसंख्या ३६० बताई हैं । याज्ञवल्क्य तथा अलग व्यक्तियाँ मानना होगा। चरक दोनों एक ही वैशंपायन के शिष्य थे। २. कृष्णयजुर्वेद का एक शाखाप्रवर्तक । इसका सही चरकसंहिता--उपलब्ध आयुर्वेदीय संहिताओं में नाम कपिष्ठल-चरक था। प्रवरमाला में इसका नामोल्लेख 'चरकसंहिता' सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है। सुश्रुतसंहिता शल्यतंत्र- | है। प्रधान तथा चरकसंहिता कायाचिकित्साप्रधान ग्रंथ है । इस ३. कृष्णयजुर्वेद की एक उपशाखा। कृष्णयजुर्वेद में ग्रंथ में चिकिल्ला-विज्ञान के मौलिक तत्त्वों का जितना उत्तम 'चरक' नाम धारण करनेवाली बारह शाखाएँ (भेद) विवेचन किया गया है, उतना अन्यत्र नही हैं। इसके हैं। उनके नाम :-चरक, आह्वरक, कठ, प्राच्यकठ, अतिरिक्त, इस ग्रंथ में सूत्ररूप में सांख्य, योग, न्याय, कपिष्ठलकठ, आरायणीय, वारायणीय, वार्तान्तवेय, वैशेषिक, वेदान्त, मीमांसा इन आस्तिक दर्शनों का, श्वेताश्वतर, औपमन्यव, पातण्डनीय, तथा मैत्रायणीय । चार्वाक आदि नास्तिक दर्शनों का, तथा परोक्ष रूप से | इनमेसे मैत्रायणीय शाखा में मानवादि छः भेद हैं । चरक व्याकरण आदि वेदांगों का भी.संकलन सुन्दरता से किया वाराहसूत्रानुयायी तथा मैशयणीय मानवसूत्रानुयायी है गया है। इस लिये, इस ग्रंथ को यथार्थता से 'अखिल- | (चरणव्यूह)। शास्त्रविद्याकल्पद्रुम' कहा जा सकता है। | कृष्णयजुर्वेद की एक शाखा, कृष्णयजुर्वेद की सामान्य __ 'चरक संहिता' में दी गयीं आयुर्वेदीय विद्यापरंपरा संज्ञा, तथा कृष्णयजुर्वेद पढनेवाले लोग, ये तीन ही इस प्रकार है । आयुर्वेद सर्वप्रथम ब्रह्मा ने निर्माण किया। अर्थ से 'चरक' नाम का निर्देश उपलब्ध है (श. ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनीकुमारों ने, उनसे ब्रा. ३.८.२.२४, ४.१.२.१९; २.३.१५, ४.१.१०; इंद्र ने, तथा इंद्र से भरद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन ६.२.२.१-१०, ८.१.३.७; ७.१.१४.२४)। किया । फिर भरद्वाज के प्रभाव से दीर्घ, सुखी तथा | कृष्ण यजुर्वेद की सर्व शाखाओं के लिये चरक यह आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार नाम प्रयुक्त होता है। तथापि महाराष्ट्र में कृष्णयजुर्वेद किया। तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेड, की चरक नामक ब्राह्मणज्ञाति उपलब्ध है। वह ज्ञाति जतूकर्ण, पराशर, हारीत तथा क्षीरपाणि नामक छः शिष्यों | मैत्रायणी शाखा की है। उनका सूत्र मानव एवं वाराह को आयुर्वेद का उपदेश किया। इन छः शिष्यों में सबसे है। चरक ब्राह्मणग्रंथ का निर्देश ऋग्वेद के सायणभाष्य अधिक बुद्धिमान् अग्निवेश ने सर्वप्रथम 'अग्निवेशतंत्र' में भी आया है (ऋ. ८.६६.१०)। नामक एक संहिता का निर्माण किया (च.मू.अ. १)। इसी 'चरक' नाम का शब्दशः अर्थ, 'प्रायश्चित्त करनेग्रंथ का प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किग, तथा उसका | वाले' ऐसा है । वैशंपायन के लिये जिन्होंने प्रायश्चित्त नाम "चरकसंहिता' पड़ा। उपलब्ध चरकसंहिता के किया, वे सब वैशंपायन शिष्य चरक नाम से प्रसिद्ध चिकित्सास्थान, के १७ अध्याय तथा १२-१२ अध्याय के हुए। वैशंपायन को 'चरकाध्वर्यु' कहा गया है कल्पस्थान तथा सिद्धिस्थान चरक ने लिखे मूल संहिता (वैशंपायन देखिये). में नहीं थे। उनकी पूर्ति दृढबल ने की (च. चि. ३०)। परुषमेध में. चरक (आचार्य) को बलिप्राणियों में बौद्ध त्रिपिटक ग्रंथ में, कुषाणवंशीय राजा कनिष्क का समाविष्ट किया गया है (वा. सं. ३०.१८)। शुक तथा राजवैद्य यों कह कर चरक का निर्देश प्राप्त है। योगसूत्र, कृष्णयजुर्वेद का परस्परविद्वेष इससे प्रकट होता है। कार तथा महाभाष्यकार पतंजलि तथा चरक एक ही थे । याज्ञवल्क्य के अनुयायियों के लिये यह नाम प्रयुक्त ऐसी जनश्रति है। कनिक तथा पतंजलि का काल इसापूर्व नहीं होता था। क्यों कि, उन्होंने वैशंपायन के लिये प्रायश्चित दूसरी सदी निश्चित है । वह चरक काल होगा। नहीं किया (वैशंपायन तथा व्यास देखिये)। श्यामा वैशंपायनशिष्यत्व, एवं पाणिनि तथा शतपथ मे निर्देश यनि (उदीच्य), आसुरि (मध्य) तथा आलंबि के कारण चरव.काल भारतीययुद्ध से नजदीक होने का (प्राच्य ) ये चरकाध्वर्यु तथा तैत्तिरीयों के मुख्य है। वपा संभव है। पाश्चात्य चिकित्सापद्धति के आचार्य हियो तथा पृषदाच्य में प्रथम अभिधार किसे किया जावे, इस क्रिटीस (इ. पू. ६००) ने भी इसके सिद्धान्तों का भाव विषय में चरकाध्वयु का याज्ञवल्क्य से मतभेद है (श. लिया है, ऐसा कई विद्वानों का मत है। ऐसा हो तो, बा. ३.६.३.२४)। २०७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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