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________________ चन्द्रहास प्राचीन चरित्रकोश चरक उत्कट आराधना की । तदनंतर योग्य मुहूर्त पर मदन ने प्राचीन नाम है । परंतु कुंतलपूर वर्तमान खेड़ा जिला का चन्द्रहास तथा विषया को विवाहबद्ध कर दिया। सरनाल ग्राम है । इसलिये बड़ोदा को चंदनावती नहीं कह सकते । कनिंगहॅम ने लिखा है कि, कुंतलपुर ग्वालियर प्रांत में है । चन्द्रा- वृषपवी दानव की कन्या तथा शर्मिष्ठा की भगिनी २. कृष्ण के समय की एक गोपी (पद्म. पा. ७७ ) । चन्द्रार्क भीकर-कर तथा खशा का पुत्र । चन्द्रावली - कृष्ण की प्रियपत्नी (पद्म. पा. ७० ) 1 चन्द्रायलोक (इ.) मत्स्य के मत में सहाध पुत्र । इसका पुत्र तारापीड़ । इसी समय, धृष्टबुद्धि ने चंदनावती में कुलिंद को बद्ध कर के, प्रजा पर अनन्वित अत्याचार किये। इस प्रकार अत्याचार से प्राप्त धन ले कर वह कुंतलपुर आया । वहाँ बाबों का दान हो रहा था। मया ने चन्द्रहास को विषयादी, यह वृत्त उसे मालूम हुआ। वह अत्यंत संतप्त हुआ तथा मदन पर क्रोधित हुआ । परंतु बाद में मदन ने उसे समझाया। फिर भी चन्द्रहासवध की कल्पना उसके मन से नहीं हटी। देवी के दर्शन के लिये जाने की आज्ञा, धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास को दी। वहाँ उसने इसके वध के लिये दो अंत्यज रखे । परंतु इस समय भी धृष्टबुद्धि के दुर्दैव से चन्द्रहास के बदले मदन का वध हुआ । इसके पूर्व ही कौंतल ने अपनी कन्या चंपकमालिनी तथा सब राज्य चन्द्रहास को दिया । पश्चात् वह स्वयं अरण्य में चला गया। चन्द्रहास राज्य बन गया ऐसा सुन कर भृष्टबुद्धि क्रोध से पागल सा हो गया। चंडिकादर्शन के लिये न जा कर, चन्द्रहास ने कुलप्रथा तोड़ दी, यह सुन कर भी इसे अत्यंत क्रोध आया। वह तुरंत चंडिकामंदिर में गया । वहाँ मदन मृत पड़ा हुआ था। इस समय कृतकर्म का उसे अत्यंत पश्चात्ताप हुआ। उसका मन कहने लगा, 'वैष्णवों से द्रोह करने का यह दुष्परिणाम है'। अंत में पुत्रशोक अनावर हो कर स्तंभ पर सिर पटक कर उसने प्राण दिये। यह वृत्त सुन कर चन्द्रहास को अत्यंत दुःख हुआ । अपने मांस का होम कर के इसने देवी को प्रसन्न किया। देवी ने इसे दो वरदान दिये। इन वरों से मदन तथा धृष्टबुद्धि जीवित हो गये । कुलिंद राजा तल के अत्याचारों से त्रस्त हो कर पत्नी समेत अभिप्रवेश कर रहा था। इतने में धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास का वृत्त उसे कथन किया। बाद में चन्द्रहास अपने पिता के आज्ञानुसार राज्य करने लगा । चन्द्राश्व - (स. इ.) विष्णु के मत में कुवल्याश्रपुत्र । भागवत, वायु तथा मत्स्य मत में दंडपुत्र | । चन्द्रोदय - विराट का भाई ( म. द्रो- १३२.४० ) । चमस - ( स्वा. प्रिय. ) ऋषभ को जयंती से उत्पन्न पुत्र । यह महायोगी था । इसने विदेह के यज्ञ में जा कर, उसे ज्ञानोपदेश दिया ( भा. ५.४.११ ११.५.२ ) । चंप-- चंचु देखिये | २. (सो. अनु. ) मत्स्य तथा विष्णु के मत में पृथुलाक्ष का पुत्र । इसने मालिनीनगर को चंपा नाम दे दिया | चंपक - कुंडलनगरी के सुरथ का पुत्र (पद्म. पा. ४९ ) । चंपकमालिनी - कौंतल देश के राजा की कन्या तथा चन्द्रहास की पत्नी । इसे पद्माक्ष नामक पुत्र था । २. रामपुत्र कुश की चंपिका नामक ज्येष्ठपत्नी से हुयीं नौ कन्याओं से एक । युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के समय, इसने उसका अश्वमेधीय अश्व पकड़ लिया था। परंतु श्रीकृष्ण की आशानुसार अर्जुन ने इसके साथ संधि कर ली। इस कारण, चन्द्रहास ने अयमेव में काफी सहायता की। चन्द्रहास को विषया से मकराक्ष तथा चंपकमालिनी से पद्माक्षनामक दो पुत्र हुए ( अ. ५०-५९)। चन्द्रहास की राजधानी चंदनावती कौतलपुर से छः दूर थी (जै. अ. ५२ ) । चंदनावती बड़ोदा का योजन २०६ चंपा -- चन्द्रसेना नामक राक्षस स्त्री का नामांतर । चंपका - - रामपुत्र कुश की दों पत्नियों में से ज्येष्ठ । चंपकमलिनी आदि नौ कन्यायें हुई। चयत्सेन - बृहत्कल्प का इंद्र । गौतमपत्नी अहल्या से इसने अनैतिक संबंध रखा था ( खन्द्र, ६.२.५ ) । चर - मणिवर तथा देवजनी का पुत्र । इसे चरक - आयुर्वेदीय 'चरकसंहिता' नामक महान् ग्रंथ का कर्ता । यह विशुद्ध नामक ऋषि का पुत्र तथा अनन्त संज्ञक नाग का अवतार था। संभवतः यह नागवंश का होगा भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश का वर्णन इसके ग्रंथ में अधिक आता है। इससे यह उसी प्रदेश का रहनेवाला होगा ( भावप्रकाश ) | शतपथब्राह्मण में चरक का निर्देश है। शतपादाण चरकसंहिता एवं याज्ञवल्क्यस्मृति में शारीरविषयक
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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