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________________ चरंग प्राचीन चरित्रकोश चाक्षुष पुत्र । चरंत (सो. छत्र) वायु के मत में आर्ष्टिषेण- आखिर केवल वायुभक्षण कर के इसने तप किया। इस प्रकार बारह वर्ष तक इसने वाग्भव मंत्र का विकाल जप चरिष्णु --होनेवाले सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक किया । इससे देवी प्रसन्न हो गई । उसने इसे मन्वन्तरा(मनु देखिये ) । विपत्व तथा दस उत्तम पुत्र दिये ( दे. भा. १०.९ ) । मार्कंडेय पुराण में इसकी जीवनकथा अलग ढंग से दी गयी है (मार्क. ७३ ) | पहले जन्म में यह ब्रह्मदेव चक्षुओं से उत्पन्न हुआ था । अतः इस जन्म में इसे चाक्षुष नाम प्राप्त हो गया। जन्मतः इसे पूर्वजन्म का ज्ञान था । अनमित्र राजा को यह भद्रा से उत्पन्न हुआ । जन्मते ही सात दिन के अंदर इसने हँस दिया । तच खा चर्मचत् शकुनि का कनिष्ठ भ्राता भारतीययुद्ध में इरावत् ने इसका वध किया ( म. भी. ८६.२४ ) । चर्मशिरस्-व्युत्पत्ति बतानेवाला एक आचार्य (नि. ३.१५) । के चर्षणी -- वरुण नामक नवम आदित्य की पत्नी । इसे भृगु नामक पुत्र था (भा. ६.१८.४ ) । " २. अर्थमा आदित्य के मातृका से उत्पन्न पुत्रों का नाम ने इसे पूछा, 'तुम्हें हँसी कैसे आई तब इसने कहा, (भा. ६.६.४२ ) । 'स्वार्थबुद्धि से एक मार्जारी तथा एक जातहारिणी मुझे खाने के लिये घात लगाये बैटी हैं। तुम भी उन्हीं के चलकुंडल - भृगुकुल का गोत्रकार । चलि -- भृगुकुल का गोत्रकार | चलिक - भृगुकुल का गोत्रकार | चलुभि - यजुर्वेदी ब्रह्मचारी । चाक - एक आचार्य । रेवोत्तरस् स्थपति पाटव चाक्र (श. बा. १२.८.१.१७ ), तथा रेवोत्तरस् पाटव चाक्र स्थपति (श. ब्रा. १२.९.३.१ ), इन भिन्नभिन्न नामों से इसका उल्लेख प्राप्त है । इसने कौरव्य राजा आहिक प्रातिपीय के विरोध की पर्वाह न करते हुए, दुष्टरीतु को, दस पीढियों के बाद, पुनः राजगद्दी पर स्थापित किया। चाक्रायण -- उषस्त का पैतृक नाम । चानुपप देखिये । अनुसार, 'बादमें यह मुझे सुख देगा,' इस स्वार्थबुद्धि से मेरा भरणपोषण कर रही 3 " हो तब 'मैं स्वार्थी नहीं भद्रा इसे वहीं छोड कर चली गई । उस समय जातहारिणी इसे उठा कर ले गई। यह दर्शाने के लिये, उसी समय विक्रान्त की पत्नी हैमिनी प्रसूत हुई थी । उसकी शय्या पर जातहारिणी ने इसे रखा । विक्रान्त का पुत्र 'बोध नामक ब्राह्मण के घर ले जा रखा । बोध ब्राह्मण का पुत्र उसने खा लिया। यह जातहारिणी रोज इसी प्रकार पुत्रों की दल-दल कर के क्रम से आनेवा तीसरा पुत्र खा लेती थी । 3 विक्रान्त ने इसका नाम आनंद रखा। रंध होने के बाद इसे गुरु को सौंपा। गुरु ने इसे माँ को नमस्कार कर २. ४. देखिये। २. विश्वकर्मा का पुत्र । इसे विश्वेदेव तथा साध्यगण के आने के लिये कहा। तच संपूर्ण हकीकत पता कर इसने पूछा, 'मैं किस माता को प्रणाम करूं ? " नामक दो पुत्र ध थे। ४. भौत्य मन्यन्तर का देवगण | ५. अनि देखिये। ६. चक्षु का पुत्र ( भा. ८. ५. ७) । यह पष्ठ मन्वंतर का अधिपति एवं मनु था । चक्षु सर्वतेजस् तथा आकृति का यह पुत्र था । इसे नड्वला नामक पत्नी थी ( भा. ४. १३. १५) । भागवत में अन्यत्र इसके पिता चक्षु को ही मनु माना है। बाद में स्वयं ही इसने विक्रांत को कहा, तुम्हारा पुत्र विशाल ग्राम में बोध नामक ब्राह्मण के घर में है। उसे ले आओ। मैं वन में तपश्चर्या करने जा रहा (विक्रान्तं देखिये) । बाद में यह वन्द में जा पर वय करने लगा । ब्रहादेव ने आ कर इसे तपश्चर्या से परावृत्त किया तथा कहा, 'तुम छठवें मनु बननेवाले हो, अतएब अपनी कर्तव्यपूर्ति के लिये सिद्ध रहो। ब्रस देव के कथना नुसार यह कार्यप्रवण हुआ। उम्र राजा की भी कन्या विदर्भा से इसने विवाह किया। उससे इसे दस पुत्र हुए (मनु देखिये) । । यह अंग राजा का पुत्र था यह पुलह ऋषि की शरण में गया । पुलह ने इसे उपदेश किया। इस उपदेश के अनुसार, इसने विरजा नदी के किनारे बारा साल तक घोर तपस्या की तपस्या का प्रथम वर्ष वृक्ष के पत्ते खा कर यह रहा । पश्चात् केवल पानी पी कर तथा | ( भा. ८.५.७ - १० ) । २०८ कर्मावतार तथा समुद्रमंथन इसीके मन्वार में हुए
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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