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________________ चंडमुंड प्राचीन चरित्रकोश चन्द्र _शुभ की ओर से, यह दोनों देवताओं की सेना से लड १.१०६; स्कन्द. ४.१.१४)। यह अत्रि की आँखों से रहे थे (पद्म. उ. १७)। शुम एवं शंकर के युद्ध में भी, उत्पन्न हुवा (ह. वं. १.२५, ६-९; वायु. ९०.५)। शुभ ने इन्हे जालंधर के शोधार्थ भेजा था। | चन्द्र तथा आकाश में स्थित चन्द्रमा दोनों एक ही है। ___ एक बार इन्हे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी। उसे वश | दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्यायें इसे पत्नीरूप दी गयी करने के लिये, शंभनिशुभ ने इन्ही की योजना की । वह | थीं। चन्द्र की इन सत्ताईस पत्नियों के नाम बाद में सत्ताईस सुंदर स्त्री कालिका देवी का मायावी रूप था। पश्चात्, | नक्षत्रों को प्राप्त हुए (म. आ. ६०.१२, १५, ह. वं. कालिका देवी ने इन्हे मार डाला। १.२५.२२, स्कन्द. ७.१.२०)। कई ग्रंथों में, उस सुंदर स्त्री को देवी चंडी कहा है। पृथ्वी की औषधि वनस्पति, चन्द्र से प्रभावित होने के यही कथा, कुछ भिन्नता से अन्य ग्रंथों में भी आयी है | अनेक निर्देश प्राप्त है। इसने तपस्या करने पर, इसकी (वायु. ५५, मार्क. ८४)। आँखों से सोमरस टपकने लगा। इसीसे सब ओपधियाँ चंडश्री-(आंध्र. भविष्य.) मत्स्यमत में विजय उत्पन्न हुई (स्कन्द. ७.१.२०)। इसका अय होने पर पृथ्वी का पुत्र । इसके लिये चंद्रविज्ञ, चंद्रश्री एवं दंसश्री नाम | की ओषधि वनस्पतियाँ सूख गयी (म. श. ३४) । इसने प्रयुक्त हैं। अमृत दे कर अनाथ मारिषा की रक्षा की । इन सब चंडा-गंडा देखिये। कथाओं से चन्द्र-चन्द्रमा रूपक को पुष्टि मिलती है । चंडाश्च-(सू. इ.) कुवलाश्व का पुत्र। इसका | चन्द्र के सत्ताईस पत्नियों में, रोहिणी पर इसकी विशेष भद्राश्व नामांतर भी प्राप्त है। प्रीति थी । यह न सह कर, इसकी अन्य स्त्रियों ने अपने चंडिक-बर्बरिक का नामांतर । पिता दक्ष के पास शिकायत की । दक्ष ने चन्द्र को समचंडी--उद्दालक की पत्नी। इसकी कथा कलहा की झाया। परंतु कुछ लाभ नहीं हुआ। तरह ही है (जै. अ. १६)। | दक्ष ने चन्द्र को शाप दिया कि, तुम्हें क्षयरोग हो चंडीश-रुद्रगणों में से एक। इसके चंडी, चंड़, | जावेगा । क्षय से चद्ध क्षीण होने लगा। उसका दुष्परिणाम चंडेश्वर, चंडघंट आदि नाम प्राप्त हैं। दक्षयज्ञविध्वंस के पृथ्वी की ओषधिवनस्पतियों पर हुआ । देवों को समय, इसने पूषन् नामक ऋत्विज को बाँधा था (भा. | मजबूरी से दक्ष के पास प्रार्थना करनी पडी। दक्ष ने कहा, ४.५.१७; पद्म. उ. १३.५९)। 'चन्द्र का पंद्रह दिन क्षय तथा पंद्रह दिन वृद्धि होगी, चंडोदरी--अशोकवन की एक राक्षसी (वा. रा. सु. परंतु उसके लिये चन्द्र को सुत्र पत्नियों की ओर समान ४)। ध्यान देना पडेगा। पश्चिम सागर के पास सागरमुख में चतुरंग--(सो. अनु.) भागवत एवं विष्णु मत में स्नान करना होगा' । वहाँ स्नान करने के बाद चन्द्र को चित्ररथ अथवा रोमप का पुत्र। ऋश्यशृंग के पुत्रकामेष्टि पूर्ववत् कान्ति प्राप्त हुई। इसीलिये इस क्षेत्र को प्रभास यज्ञ के कारण, इसका जन्म हुआ। इसका पुत्र पृथुलाक्ष | नाम प्राप्त हुआ (म. श. ३४)। (भा. ९.२३.१०)। शशपानतीर्थ पर देव तथा दैत्यों ने अमृतमान चतर्मख--ब्रह्मदेव का नामांतर । कमल में से ब्रह्मदेव किया। वहाँ कुछ देरी से जाने के कारण, इसे अमृत का जन्म होते ही, उसने चारों दिशाओं की ओर देखा । प्राप्त नहीं हुआ। वहाँ का तीर्थ लेने के लिये देवों ने चारों ओर देखते ही उसे चार मुख प्राप्त हुए। इसी | इसे कहा । एक खरगोश उस तीर्थ का प्राशन कर रहा कारण उसे यह नाम पड़ा (भा. ३.८.१६, ब्रह्मन् | था। उसे भी इसने खा लिया। वह अभी भी इसके देखिये)। | उदर में है। (स्कन्द. ७. १. २५८)। .. चन्द्र-अत्रि तथा अनसूया का पुत्र । यह सोम नाम | अत्रिपुत्र सोम यह चन्द्र का ही नामांतर है। से मी प्रसिद्ध था (भा. ४.१३; म. शां. २००.२४)। एकबार सोम अत्यंत बलिष्ठ हुआ । राजसूययज्ञ इसे सूर्य तथा भद्रा का पुत्र भी कहा गया है। कर के इसने त्रैलोक्य को जीत लिया। बृहस्पति की ___ यह स्वायंभुव मन्वन्तर में पैदा हुवा था (म.आ.६०, पत्नी तारा का जबरदस्ती हरण कर लिया। उसके १४)। इसके जन्म की अनेक आख्यायिकाएं प्राप्त है। लिये तारकामय नामक बहुत बड़ा युद्ध हुआ। ब्रहादेव अत्रि ने दसों दिशाओं से इसे उत्पन्न किया ( विष्णुधर्म. ने मध्यस्थता की। इसने तारा को वापस किया। २०२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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