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________________ चक्रधर्मन प्राचीन चरित्रकोश चंडमुंड चक्रधर्मन--विद्याधर का नामांतर (म. स. परि. १. | चक्रिन्--अंगिरा कुल का गोत्रकार । क्र. ३. पंक्ति. ६)। चक्षु--(स्वा. उत्तान.) सर्वतेजस् एवं आकूति का • चक्रपाणि--सिंधु दैत्य के पिता का नाम (गणेश २. | पुत्र । इसकी स्त्री नड्वला। यह छठवाँ मनु माना जाता नों की उपालित वैशाल, गया ए देवों में से एक अनुपुत्र । इस चक्रमालिन्--रावण के सचिवों में से एक । २. (सो. नील.) विष्णु मत में पुरुजानुपुत्र । इसे ही चक्रवर्तिन्–सर्वश्रेष्ठ नृपों की उपाधि । कार्तवीर्यार्जुन भागवत में अर्क, मत्स्य में पृथु, एवं वायु में रिक्ष कहा हैहय, भरत दौष्यन्ति पौरव, मरुत्त आविक्षित वैशाल, I गया है। महामन महाशाल आनव, मांधातृ यौवनाश्व ऐक्ष्वाक, ३. तुषित देवों में से एक। शशबिंदु चैत्ररथि यादव, आदि राजाओ को चक्रवर्तिन ___४. (सो. अनु.) भागवत मत में अनुपुत्र । इसे ही कहा, गया है। विष्णु एवं मत्स्य में चाक्षुष, ब्रह्मांड में कालचक्षु, तथा वायु __अंतरिक्ष, पाताल, समुद्र तथा पर्वतों पर अप्रतिहत में पक्ष कहा गया है। गमन करनेवाले, सप्तद्वीपाधिपति तथा सर्वाधिक सामर्थ्ययुक्त चक्षुस् मानव-मंत्रद्रष्टा (ऋ. ९.१०६.४-६)। नृपों को चक्रवर्तिन् कहते है (वायु. ५७.६८-८०; ब्रह्माण्ड चक्षुस सौर्य-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१५८)। २.२९.७४-८८; मत्स्य. १४२.६३-७३)। चंचला--एक वेश्या । इसने विष्णु के मंदिर की __ हिमालय से महासागर तक, तथा पूर्वपश्चिम १००० दीवार को सहज भाव से एक उँगली चूना लगाया। इस योजन भूमि का अधिपति चक्रवर्तिन् है ( कौटिल्य. पृ. | पुण्य के प्रभाव से इसे वैकुंठ प्राप्त हुआ (पन. ब्र.६)। ५ ७२५)। चंचु-(सू. इ.) विष्णु, वायु एवं भविष्य मत में कुमारी से बिंदुसरोवर तक भूमि के अधिपति को | हरितपुत्र । भागवत में इसे चंप कहा गया है। चक्रवर्तिन् संज्ञा दी जाती थी (काव्यमीमांसा १७)।। चंचुलि-विश्वामित्र कुल का गोत्रकार। . समुद्रपर्यंत भूमि का अधिपति सर्वश्रेष्ठ नृप समजते थे चंड-एक व्याध । शिवरात्रि के दिन, सहज ही शिव ('ऐ. बा. ८. १५, र. वं. १)। वेदों में चक्रवर्तिन् शब्द नही है। सम्राज् आदि शब्द पर बिल्वपत्र डालने के कारण, यह जीवन्मुक्त हुआ (पद्म. . उपलब्ध है। उ. १५४; स्कन्द, १.१.३३)। अंबरीष नाभाग, गय आमूर्तरयस, दिलीप ऐलविल २. त्रिपुरासुर का अनुयायी। त्रिपुर तथा शंकर के 'खट्वांग, बृहद्रथ अंग, भगीरथ ऐक्ष्वाक, ययाति नाहुष, युद्ध के समय, इसका एवं नंदी का युद्ध हुआ था (गणेश. रंतिदेव सांकृति, राम दाशरथि, शिबि औशीनर, सगर १.४३; चंडमुंड देखिये)। •. ऐक्ष्वाक, सुहोत्र ये सर्वश्रेष्ठ नृप थे (म. द्रो. ५५-७०; ३. विष्णु के पार्षदों में से एक । शां. २८)। ४. अष्टभैरवों में से एक। २. अंगिरसकुल का गोत्रकार । ५. बाष्कल का पुत्र । चक्रवर्मन्--बल का पुत्र । कर्ण के पूर्वजन्म का नाम।। ६. काश्यप तथा सुरभि का पुत्र (शिव. शत. १८)। चक्रवात-तृणावर्त राक्षस का नामांतर । चंडकौशिक--कक्षीवत् ऋषि का पुत्र । इसके प्रसाद चक्रायण--उपस्त मुनि का पिता । से बृहद्रथ को जरासंध हुआ (म. स. १६.१७९%)। चक्रिक-एक व्याध । यह मातृपितृभक्त एवं विष्णु- चंडतुंडक--गरुडपुत्र । भक्त था । विष्णु को फलोपहार अर्पण करने के पहले, | चंडबल--राम की सेना का सुप्रसिद्ध वानर । कुंभकर्ण यह स्वयं एक एक फल चख रहा था। उससे से एक फल | ने इसका वध किया। इसके गले में अटक गया। वह फल विष्णु को अर्पण | चंडभार्गव च्यावन-च्यवनवंश का एक ऋषि । करने के लिये, इसने अपनी गर्दन स्वयं काट ली । विष्णु | जनमेजय के सर्पसत्र में यह होता का काम करता था (म. ने इसे जीवित कर, दर्शन दिया। बाद में, द्वारकाक्षेत्र में | आ. ४८.५)। मृत्यु होने के कारण, इसको मुक्ति मिल गयीं (पद्म. कि. चंडमंड---शुंभनिशुंभ के सेनापति । चंड तथा मुंड ये | दो असुर शुंभनिशुंभ के अनुयायी थे। प्रा. च. २६] २०१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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