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घृतपृष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
चक्रधनु
का यह अधिपति था। इसने अपने द्वीप के वर्षसंज्ञक सात २. वैवस्वत मन्वंतर के अंगिरस् ऋषि के आठ पुत्रों में भाग किये थे। आम, मधुरुह, मेघपृष्ठ, सुधामन् , से एक (म. अनु. १३२.४३ कुं; अंगिरस देखिये)। भ्राजिष्ठ, लोहितार्ण तथा वनस्पति नामक सात पुत्रों को ३. लंकास्थित एक राक्षस । लंकादहन के अवसर पर उन्हीं के नाम दे कर, ये वर्ष विभाजित कर दिये थे हनूमत् ने इसका घर जलाया था (वा. रा. सु. ५४)। (भा. ५.१.२५, २०.२०)।
घोष-कक्षीवत् पुत्री घोषा का पुत्र। पज्रिय कक्षीवत् घताची-एक अप्सरा। कश्यप तथा प्राधा की के साथ इसका भी उल्लेख आता है (२.१.१२०.५% कन्या (म. आ. १५४.२)। इसी के कारण रेतस्खलन | घोषा देखिये)। हो कर, भरद्वाज से द्रोण, व्यास से शुक, प्रमति से रुरु । २. धर्म ऋषि तथा लंबा का पुत्र । तथा रौद्राश्व से तेयु आदि पुत्र हुये। प्रमति तथा ३. (शंग. भविष्य.) पुलिंद का पुत्र । इसका पुत्र रौद्राश्व के पास यह दीर्घकाल तक रहती थी।
वज्रमित्र । विष्णु मतानुसार इसका नाम घोषवसु है। २. माघ मास में आदित्य के साथ घुमनेवाली अप्सरा
। घोषा-कक्षीवत् की सूक्तद्रष्टी पुत्री (ऋ. १०.३९(भा. १२,११.३९)।
४०)। कुष्ठरोग होने के कारण, इसे पिता के घर अविघृताशिन--एक ऋषि । इसने गोपीमोहन कृष्ण का
वाहित रहना पड़ा। अश्वियों की कृपा से इसका कुष्ठ दूर ध्यान किया । इसलिये इसे गोपी का जन्म प्राप्त हुआ
हुआ (ऋ. १०.३९; ३-६), तथा इसे पति भी मिला (पन. पा. ७२)।
(ऋ. १.११७)। घृतेयु--(सो. पुरूरवस्.) विष्णु वायु तथा मत्स्य
रोगग्रस्त रहने के कारण, यह साठ वर्षों तक मतानुसार रौद्राश्वपुत्र । घृतोद-महावीर १ देखिये।
पिता के गृह में अविवाहित स्थिति में रही। पिता की घोर-हिरण्याक्ष की सेना का एक असुर । कार्तिकेय
| तरह अश्वियों को प्रसन्न कर, यह निरोगी हुई तथा इसे ने इसका वध किया (पद्म. स. ७५)। .
पति मिला (वृहदे. ७.४३; ४८)। इसके पति का नाम २. कण्वपुत्र।
नहीं मिलता। इसे घोष तथा सुहत्य नामक पुत्र थे (बृहद्दे. घोर आंगिरस-मंत्रद्रष्टा ( ऋ. ३.३६.१०)।
७.४८; सुहस्त्य देखिये)। माता पिता पुत्र को शिक्षा अन्य वैदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख है (सां. बा. ३०.६
देते है, उसी तरह शिक्षा देने के लिये इसने अश्वियों छां. उ. ३.१७.६; आश्व. श्री. १२.१०)। इसने
से प्रार्थना की थी (ऋ. १०.३९.६)। शत्रुओं से युद्ध देवकीपुत्र कृष्ण को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया, (छां. उ.
करने में समर्थ बनाने के संबंध से इसकी प्रार्थना का ३.१७.६) । कठ संहिता में अश्वमेधखंड में इसका उल्लेख
उल्लेख है (ऋ. १०.४०.५)। है (२६.७)। अथर्ववेद का भिषज सें, तथा आंगिरस वेद का
घोषय-घोष तथा सुहत्य देखिये। घोर से संबंध है (आश्व. श्री. १०-७; सां औ. १६.२) घ्राण--तुषित देवों में से एक ।
चकोर-(आंध्र. भविष्य.) सुनंदन का पुत्र । वायु चक्र--रावण की सेना का एक राक्षस (वा. रा. मुं. में इसे सातकर्णि, विष्णु में चकोरशातकर्णि, एवं ब्रह्मांड में ६.२४)। शातकर्णि कहा गया है।
चक्रक--विश्वामित्र का पुत्र । चक्क--एक ऋत्विज । जनमेजय के सर्पसत्र में, यह । उन्नेतृ नामक ऋत्विज का काम करता था। इसके साथ |
चक्रदेव--एक यादव (म. स. १४.५६)। पिशंग का उल्लेख प्राप्त है (पं. बा. २५.१५.३)। चक्रधनु--कपिल ऋषि का नामांतर। .
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