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गौतम
प्राचीन चरित्रकोश
के पच्चीस उद्धरण तथा कई मत अपने ग्रंथ में लिये हैं ।। यह कालक्रमणा कर रहा था। इसका एक मित्र इसके
गौतमधर्मसूत्र का उल्लेख सर्वप्रथम बौधायनधर्मसूत्र में पास आया तथा उसने इसे दुराचरण से परावृत्त किया। प्राप्त है। उसी प्रकार वसिष्ठधर्मशास्त्र, अपरार्क, तंत्र- गौतम वहाँ से निकला । राह में यह नाडिजंघ नामक
क, वेदातों पर लिखा गया शाकरभाष्य आदि ग्रथा म कश्यपपुत्र के पास आया। वह राजधर्मन् के नाम से भी गौतमधर्मसूत्र के काफी उद्धरण लिये गये हैं। मनुस्मृति प्रसिद्ध था । गौतम का यथोचित सत्कार कर के, अपने में गौतम का उतथ्यपुत्र के नाम से उल्लेख है (मनु. ३. राजा विरूपाक्ष के पास, वह इसे ले गया। राजा के द्वारा १६)। भविष्यपुराण में भी, गौतम का सुरापाननिषेध के पूछे जाने पर इसने सब हकीकत बताई। राजा के घर बारे में उल्लेख है । गौतमधर्मसूत्र का उल्लेख बौधायन, वसिष्ठ | इसे ब्राह्मणोंसह उत्तम भोजन तथा अच्छी दक्षिणा आदि धर्मशास्त्रकारों ने किया है। इससे प्रतीत होता है कि,
मिली । संपत्ति का भार सिर पर ले कर यह एक वटवृक्ष के यह वसिष्ठ तथा बौधायन के पूर्व का होगा । यवनों का नीचे बैठा । वहाँ बैठे बैठे, राजधर्मन् का वध करने का उल्लेख भी आया है । यवन शब्द का अर्थ स्वयं गौतम ने
विचार इसके मन में आया । इस विचार के अनुसार, दिया है, 'ब्राह्मण को शूद्रा से उत्पन्न संतति' । इसी अर्थ
वध कर के, उसे जला कर उसकी संपत्ति ले कर यह रवाना से यह शब्द गौतमधर्मसूत्र में आया है (४.१७) । इससे | हआ। परंतु जल्द ही विरुपाक्ष ने इसे राक्षसोंद्वारा पकड़ प्रतीत होता है कि, ब्राह्मण तथा शूद्र के मिश्रण से बनी
लाया तथा इसके टुकड़े टुकड़े करके शबरों को खाने यवनजाति भारत में ग्रीकों के आने के पहले भी थी।
के लिये दिये। यह कृतघ्न होने के कारण, किसी शबर. उसपर से गौतम का काल निश्चित करना असंभव है। | ने इसे नहीं खाया। बाद में राजधर्मन् जीवित होने के गौतमधर्मसूत्र पर हरदत्त ने मिताक्षरा नामक टीका तथा |
बाद, उसने गौतम को जीवित किया, तथा द्रव्य दे कर घर मस्करी तथा असाहाय ने भाष्य भी लिखे है। मिताक्षरा,
पहुँचाया । गौतम ने शूद्र स्त्री के द्वारा, पापकर्म करनेवाले स्मृतिचन्द्रिका आदि ग्रंथों में, श्लोकगौतम, अपराके
अनेक पुत्र निर्माण किये। तब देवताओं ने इसे शाप एवं दत्तकमीमांसा में वृद्धगौतम तथा बृहद्गौतम इन
दिया, 'यह दुष्ट विधवा स्त्री के द्वारा प्रजोत्पादन कर के थों का उल्लेख है। उसी प्रकार जीवानंद ने १७०० नरक में जावेगा' (म. शां. १६२-१६७)। श्लोको की गौतमस्मृति छपवायीं है । यह स्मृति कृष्ण ने युधिष्ठिर को, चातुर्वण्य के धर्मकथन करने के लिये बताई,
६. अत्रिकुल का एक ब्रह्मर्षि । वैन्य ऋषि को विधाता
कहने पर इसने अत्रि से स्पष्टीकरण माँगा था (म. व. ऐसा उस स्मृति में उल्लेख है। परंतु वह स्मृति महाभारत के आश्वमेधिकपर्व से ली गई होगी। क्योंकि, पराशर
१८३)। सत्यवत् जीवित है, ऐसा चैता कर इसने द्युमत्सेन
को धीरज बँधाया था (म. व. २८२-१३)। माधवीय में तथा अन्य कई ग्रंथों में, इस स्मृति के श्लोक |
७. ब्रह्मदेव ने यज्ञ के लिये, इस नामका ऋत्विज आश्वमेधिकपर्व से लिये गये हैं। आह्निकसूत्र, पितृमेध
निर्माण कर के, गया में यज्ञ किया (वायु. १०६.३८)। सूत्र तथा दानचंद्रिका के अतिरिक्त न्यायसूत्र, गौतमी
८. दारुक नामक शिवावतार, का शिष्य (नोधस् शिक्षा आदि गौतम के ग्रंथ हैं।
वामदेव देखिये)। २. एकत, द्वित तथा त्रित का पिता (म. श. ३५.९; त्रित देखिये)।
गौतम आंध्र-(आंध्र. भविष्य.) वायुमतानुसार ३. इसे चिरकारिन् नामक पुत्र था। इसने उसे | शिवस्वामिन् का पुत्र । पापकर्मी माता का वध करने के लिये कहा। परंतु चिरकारिन् गौतम आरुणि-एक ऋषि । इससे चैकितानेय के दीर्घसूत्री आचरण के कारण, वह काम नहीं हो सका वसिष्ठ का ब्रह्मज्ञान के संबंध में संवाद हुआ था (जै. उ. (म. शां. २५८. ७-८)।
ब्रा. १.४२.१)। ४. पूषन् नामक सूर्य के साथ घूमनेवाला एक ऋषि | गौतम कूष्मांड-कक्षीवत् की संतान के लिये (भा. १२. ११.३९)।
सामान्य नाम (ब्रह्मांड. ३.७४.९९) । कूष्मांड के लिये ५. मध्यदेश में रहनेवाला एक ब्राह्मण । इसे बिल्कुल | वायु में कृष्णांग पाठभेद है (वायु. ९९.९७)। गृहस्थों वेदज्ञान नहीं था । एक गांव में, एक अमीर शूद्र के पास | के नित्यतर्पण में, देवता की तरह कूष्मांड का समावेश है यह गया। उसने इसे एक विधवा स्त्री दी। उसके साथ | (विष्णु. ३.११.३२, ५.३०.११)।
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