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गोश्रुति
कर, महत्वप्राप्ति के हेतु से एक व्रत भी निवेदित किया (छां. उ. ५.२.३ ) ।
गोक्ति काण्वायन --सृक्तद्रष्टा (ऋ. ८.१४१५) । इसके नाम 'एक गोषूक्त -साम प्रसिद्ध है ( पं. ब्रा. १९.४.९)। प्रतिग्रह के कारण इसे लगा हुआ दोष, इस साम से नष्ट हुआ (गौपूक्ति देखिये) ।
गोष्ठायन - भृगुकुल का गोत्रकार । गौडिनि--वसिष्ठकुल का गोत्रकार (जौडिलि देखिये) । गौतम -- एक ऋषि । अरुण, आग्निवेश्य उद्दालक आरुणि, कुश्रि, मेधातिथि, साति तथा हारिद्रुमत, का यह पैतृक नाम है ।
प्राचीन चरित्रकोश
गौतम
पितरों का
आया । उस समय गौतम ने उससे पूछा, ऋण किस प्रकार चुकाया जावे' । यम ने कहा, 'सत्य, धर्म, तप तथा शुचिर्भूतता का अवलंब कर के मातापितरों का पूजन करना चाहिये । इससे स्वर्गादि की प्राप्ति होती है' ( म. शां. १२७ ) । बारह वर्षों तक अकाल पड़ा । इसने भोजन दे कर ऋषियों को बचाया ( नारद. २.७३ ) । यही वर्णन दे कर, शक्तिउपासना का महत्व बताया गया है ( दे. भा. १२.९; शिव कोटि २५-२७)।
गौतम तथा भगीरथ ने तप कर के शंकर को प्रसन्न किया तथा गंगा माँगी। शंकर ने गौतम को गंगा दी | वही गौतमी के नाम से प्रसिद्ध हुई ( पद्म उ. २६८. ५२-५४) । गौतमी - (गोदावरी) माहात्म्य विस्तृत रूप में उपलब्ध है (ब्रह्म. ७० - १७५ ) ।
प्राचीनयोग्य, शांडिल्य, आनभिम्लात, गार्ग्य, भारद्वाज, वात्स्य, मांटि, सैतव आदि गौतम के शिष्य थे ।
यह दीर्घतमस् का पुत्र था। इसकी माता का नाम प्रद्वेषी ( म. आ. ९८.१७; १०३७ स. ४.१५; ११.१५ ) इसके पिता आंगिरसकुल के थे ( म. अनु. १५४.९ ) । वह बृहस्पति के शाप के कारण जन्मांध हुआ था (ऋ. १.१४७; म. आ. ९८.१५ ) ।
कुछ स्थानों पर, दीर्घतमस् ने ही गौतम नाम धारण किया, ऐसा प्रतीत होता है ( बृहदे. ३.१२३; म. शां. ३४३; मत्स्य. ४८.५३-८४) । गौतम नाम से गौतम के पशुतुल्य वर्तन का बोध होता है ( वायु. ९९.४७ - ६१, ८८९२; ब्रह्मांड. ३.७४. ४७ - ६१ ९०-९४ मत्स्य. ४८. ४३–५६; ७९–८४ )। गौतम को औशीनरी नामक शुद्र स्त्री से कक्षीवत् आदि पुत्र हुए ( दीर्घतमस् देखिये) ।
गौतम वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियो में से एक था । ब्रह्मदेव की मानसकन्या अहल्या इसकी स्त्री थी ( अहल्या देखिये) । जनक का पुरोहित शतानंद इसका पुत्र था (म. व. १८५)। इसका अंगिरस से नदीमाहात्म्य के संबंध संभाषण हुआ था (म. अनु. २५ ) । इसके नाम गोदावरी का नाम गौतमी हुआ (दे. भा. ११.९)।
अन्न का अकाल पड़ने के कारण, वृषादर्भि राजा दान कर रहा था। जिन सप्तर्षियों ने उसे दान लेना अमान्य कर दिया, उनमें से एक गौतम था ( म. अनु. ९३ ) । गौतम को उत्तक नामक एक शिष्य था । उसे गौतम ने अपनी कन्या दी थी । उत्तंक ने सौदास राजा के पास से कुंडल ला कर, गुरुपत्नी को गुरुदक्षिणा में दी ( म. आश्व. ५५-५६) ।
• गौतम का आश्रम पारियात्र पर्वत के पास था । इसने वहाँ साठ हजार वर्षों तक तप किया। तब स्वयं यम वहाँ
न्यायशास्त्र लिखने वाले गौतम का निर्देश प्राप्त (शिव. उमा. २.४३-४७) । यह अंगिराकुल का एक ऋषि तथा प्रवर है | त्र्यंबकेश्वर का अवतार इसी के लिये हुआ था ( शिव. शत. ४३ ) । वही ज्योतिर्लिंग नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर नाम से प्रसिद्ध है ।
शाखाप्रवर्तक - - यह व्यास की सामशिष्य परंपरा का हिरण्यनाभ का शिष्य है ( व्यास देखिये) । वायु तथा ब्रह्मांड के मतानुसार यह सामवेद की राणायनि शाखा के नौ उपशाखाओं में से एक शाखा का आचार्य है (द्रा. श्रौ. १.४.१७ ) । गौतम का आचार्य रूप में उल्लेख है ( ला. श्रौ. १.३.३ ४.१७ ) । उसी प्रकार सामवेद के गोभिलगृह्यसूत्र में भी गौतम का उल्लेख अनेक बार आया है ।
धर्मशास्त्रकार - गौतमस्मृति यह ग्रंथ गद्यमय है । उसमें ग्रंथकर्ता द्वारा किया हुआ अथवा बाहर से लिया गया एक भी पद्य श्लोक नहीं है। इस ग्रंथ के कुल अठ्ठाईस विभाग किये गये हैं। कलकत्ता प्रत में, एक विभाग अधिक है । परंतु हरदत्तद्वारा रचित मिताक्षरा में इस विभाग का बिल्कुल उल्लेख नही है | इससे प्रतीत होता है कि, यह भाग प्रक्षिप्त होगा । वेंकटेश्वर आवृत्ति कलकत्ताआवृत्ति से गई है।
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धर्मसूत्रकार - गौतमधर्मसूत्र में चातुर्वर्णियों के व्यवहार नियम, उपनयनादि संस्कार, विवाह तथा उसके प्रकार, प्रायश्चित, राजधर्म, स्त्रियों के कर्तव्य, नियोग, महापातक तथा उपपातकों के लिये प्रायश्चित, कृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, आदि प्रकारों का विचार किया गया है । गौतमधर्मसूत्र में संहिता, ब्राह्मण, पुराण, वेदांग आदि के काफी उल्लेख आये है । गौतम ने तैत्तिरीय आरण्यक
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