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________________ गोनर्द प्राचीन चरित्रकोश गोश्रुति गोनर्द-काश्मीर का नृप । यह जरासंध का सहायक माना है (द्राह्यायण देखिये)। गोभिलसूत्र तथा खादिरथा (ह. वं. २.३५.३९)। सूत्र में पर्याप्त साम्य है। गोपति--कश्यप एवं प्राधा का पुत्र। | २. कुबेर का दूत | विदर्भ देश के राजा सत्यकेतु की २. पांडवपक्षीय पांचाल राजा (म. द्रो. २२.४३)। | कन्या तथा उग्रसेन की स्त्री पद्मावती, एक दिन जलक्रीडा, ३. शिबिपुत्र । गायों ने इसकी रक्षा की थी। पृथ्वी | कर रही थी। कुबेर का गोभिल नामक दूत आकाशमार्ग ने कश्यप से याचना की, 'यह मेरे संरक्षकों में से एक | से जा रहा था। यह पद्मावती का सौंदर्य देख कर होवे'। तदनुसार कश्यप ने इसका अभिषेक किया (म. मोहित हुआ। उसे अंतर्ज्ञान से पहचान कर, उसकी प्राप्ति शां. ४९.७०)। के लिये इसने उग्रसेन का रूप धारण किया। पास ही एक ४. एक राक्षस । कृष्ण ने इरावती के तट पर इसका | वृक्ष के नीचे गाते हुए यह जा बैठा। इससे मोहित हो वध किया (म. व. १३.३०)। . कर वह फँस गयी ( पन. भू. ४९)। ५. विश्वभुज् नामक अग्नि का नामांतर। इसकी स्त्री गोम--शंभु का पुत्र । नदी (म. व. २०९.१९-२७)। गोमत्-कश्यप तथा मुनि का गंधर्वपुत्र । गोपद--तुषित देवों में से एक । गोमतीपुत्र-(आंध्र. भविष्य.) भागवत तथा विष्णु गोपन--अत्रिकुल का गोत्रकार । मतानुसार शिवस्वाति का पुत्र । गोपवन आत्रेय-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.७३-७४)।। गोमयान--कश्यप कुल का गोत्रकार । निधव वंशऋग्वेद में इसका उल्लेख है। अंगिरस् से इसका प्रत्यक्ष | मालिका में से यह एक था। संबंध दिखता है (ऋ८.७४.११)। पौतिमाष्य देखिये।। गोमुख--मातलि का पुत्र। इंद्रपुत्र जयंत का यह गोपायन--गौपायन का पाठभेद । सारथी था (म. उ. ९८.१८)। गोपालि--गौरपराशरकुल में से एक । गोमेदगांधक--अंगिराकुल का गोत्रकार.। गोपाली--एक ग्वालन । इसको गार्ग्य से हुआ पुत्र गोरथ--वसिष्ठकुल का गोत्रकार ऋषिगण । कालयवन नाम से प्रसिद्ध है (कालयवन देखिये)। गोलभ-एक गंधर्व । वालि से इसका लगातार पंद्रह गोबल वार्ण--एक आचार्य । (तै. सं. ३.११.९. वर्षों तक युद्ध चलता रहा । अन्त में, वालि ने इसका वध ३; जै. उ. ब्रा. १.६.१) । इसने नचिकेताग्नि के लिये किया (वा. रा. कि. २२.२७-३७)। पाँच दिशाओं में पाँच पाँच इंटें रखीं, जिनसे इसे पशु | गोवासन-एक क्षत्रिय । यह शैब्य नाम से प्रसिद्ध प्राप्त हुए (ते. ब्रा. ३.११.९३) । है। भारतीययुद्ध में यह कौरवों के पक्ष में था (म. द्रो. गोभानु-(सो. तुर्वसु.) विष्णु तथा वायु मतानुसार ७०.३८)। इसने एक हजार सैनिकों के समवेत, विजयी वह्निपुत्र । मत्स्य मतानुसार गर्भपुत्र । काशिराजपुत्रों का विरोध किया। गोभिल--वत्समित्र का शिष्य (वं. बा. ३)। यह गोवषध्वज--कृपाचार्य का नामान्तर (म. द्रो. ८०. कुलनाम अनेक लोगों के लिये प्रयुक्त होता है (पूषमित्र, | १४)। अश्वमित्र, वरुणमित्र, मूलमित्र, वत्समित्र, गौल्गुलवीपुत्र तथा । 14 गोशर्य--एक ऋषि । यह अश्वियों का कृपापात्र है बृहद्वसु देखिये)। यह कश्यप कुल का एक गोत्रकार था। (ऋ. ८.८.२०)। यहाँ इसे सायण ने गोशर्य शयु कहा गोभिलगृह्यसूत्र, गोभिलगृह्यकारिका, गोभिलपरिशिष्ट आदि है । पक्थ, कण्व तथा सदस्यु के साथ साथ इसका इसके द्वारा रचित ग्रंथ हैं (C.C.)। इनमें से गोभिल उल्लेख आया है (ऋ. ८.४९.१०, ५०.१०)। गृह्यसूत्र प्रकाशित हुआ है । यह सामवेद का है । गोभिलस्मृति आनंदाश्रम में छपवायी गई है। उसमें तीन प्रपाठक गोथु जाबाल--एक यशकर्ता । सुदक्षिण क्षेमि, प्राचीनहैं । इस ग्रंथ का आरंभ एवं अंत पढ़ने से लगता है कि, | शालि तथा शुक्र जाबाल, ये सब इसके समकालीन थे उसका नाम कर्मप्रदीप रहा होगा। उसमें श्राद्धकर्मादि (जै. उ. ब्रा. ३.७.७)। लक्षणों, नित्यकर्म, संस्कार आदि का निरूपण है। यह गोश्रुति वैयाघ्रपद्य-एक ऋपि । सत्यकाम जाबाल स्मृति गोभिलगृह्यसूत्र के स्पष्टीकरणार्थ रची गयी। हेमाद्रि | ने इसे वाणी, श्रोत्र, मन तथा प्राण का महत्व तरतमभाव ने गोभिल को राणायनीय तथा कौथुमशाखा का सूत्रकार से बताया। प्राणों का महत्व कथन किया। आगे चल १९४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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