________________
गृत्समद
प्राचीन चरित्रकोश
गोधा
माता के पास आ कर, इसने पूछताछ की। तब मुकुंदा ने | गोकर्ण-एक शिवावतार । सातवें वाराहकल्प के . इसका जन्मवृत्त का इसे कथन किया। इसने मुकुंदा को | वैवस्वत मन्वन्तर के सोलहवें चौखट में गोकर्ण नामक शिवाशाप दिया 'तुम कंटकवृक्ष बनोगी। उसने भी उलटा। वतार हुआ। जिस वन में यह निवास करता था, इसका शाप दिया 'तुम्हें दैत्य पुत्र होगा' बाद में 'गणानां | नाम भी गोकर्ण हो गया। इसके चार पुत्र थे:-कश्यप, त्वा' मंत्र का अनुष्ठान कर के, इसने गणपति को प्रसन्न | उशनस् , च्यवन एवं बृहस्पति (शिव. शत. ५)। कर ब्राह्मण्य भी प्राप्त किया (गणेश. १.३७)।
२. आत्मदेव देखिये। गृध्र-कृष्ण को मित्रविंदा से उत्पन्न पुत्र (भा. १०. गोखल-विष्णुमतानुसार व्यास की ऋक् शिष्य परंपरा
के वेदमित्र का, एवं भागवत, वायु तथा ब्रह्मांड मतानुसार गृधिका--कश्यप तथा ताम्रा की कन्या । देवमित्र का शिष्य । भागवत में गोखल्य पाठ है। २. अरुण की पत्नी । उसके पुत्र संपाति तथा जटायु |
गोखल्य-शाकल्य ऋषि का शिष्य । उसने इससे
ऋग्वेद की एक शाखा का अध्ययन करवाया (भा. १२. ब्रह्माण्ड. ३.७.४४६)।
६.५७; गोखल देखिये)। गृहपति--एक ऋषि । नर्मदा के किनारे नर्मपुर में |
गोणायनि-गोणीपति का पाठभेद । विश्वानर नामक एक मुनि ब्रह्मचर्य से वेदाध्ययन कर के रहता था । गोत्र शांडिल्य । पत्नी का नाम शुचिष्मती । यह
गोणीपति-अंगिराकुल का गोत्रकार । अत्यंत आचारशील था। इसे पुत्र न था। स्त्री की इच्छा
२. अत्रिकुल का गोत्रकार । नुसार इसने काशी जा कर वीरेश्वर के पास कड़ी तपश्चर्या
गोतम-कश्यपकुलोत्पन्न एक ऋषि (भवि. प्रति. की । एक दिन इसे ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ । अभि
४.२१)।
२. व्यास देखिये। . लाषाष्टक कहने पर, 'जल्द ही पुत्र होगा'; ऐसा वर इसे प्राप्त
या। बाद में विवाहानि से गोतम राहूगण-एक ऋषि । ऋग्वेद में इसके बहुत नवम वर्ष चालू था, नारद ने आ कर बताया कि इसे | सूक्त है (ऋ. १.७४-९३; ९.३१; ६७.७-९, १०. बारहवे मास में विद्युत् अथवा अग्नि से भय है। इसने
१३७.३)। इसका अनेक स्थानों पर उल्लेख है (ऋ. तप कर के शंकर को प्रसन्न किया। शंकर ने इसे अग्नि । १.६२.१३; ७८.२, २, ५)। अंगिरस् से इसका बार यह उपाधि दी। इसके द्वारा काशी में स्थापित लिंग को
बार संबंध आता है (ऋ. १.६२.१, ७१.२)। इसका अनीश्वर नाम है (शिव. शत. १५)।
राहूगण यह पैतृक नाम ऋग्वेद एवं अन्यत्र भी मिलता है . २. अग्नि गृहपति सहरपुत्र देखिये।
(ऋ. १.७८.५; श. ब्रा. १.४.१.१०; ११.४.३.२०)। ' - गृहेषु-धर्मसावर्णि मनु का पुत्र ।
यह माथव विदेह का पुरोहित था (श. ब्रा. १.४.१.१०)।
वैदेह जनक तथा याज्ञवल्क्य का यह समकालीन था । एक गैरिक्षित-त्रसदस्यु तथा यास्क का पैतृक नाम ।
स्तोम का यह कर्ता है (श. ब्रा. १३.५.१.१; आश्व. श्री. गो-मानस नामक पितरों की कन्या।
९.५.६)। अन्यत्र भी इसका उल्लेख है (अ. वे. ४. २. (सा. पूरु.) ब्रह्मदत्त राजा का भाया तथा दवल | २९.६; १८.३.१६; बृ. उ. २.२.६ )। इसे वामदेव तथा ऋषि की कन्या । इसे सरस्वती अथवा सन्नति भी कहते हैं। | नोधस नामक दो पुत्र थे (आश्व. श्री. १२.१०)।
३. शमीक ऋषि की भार्या । इसका पुत्र शूगिन् ऋषि ।। इसका भद्र नामक एक साम है । इस साम के ४. वरुण का सेनापति (वा. रा. उ. २३)। फलस्वरूप गौतम को श्रेष्ठपद प्राप्त हुआ। इसी कारण,
५. इसे गौ नामांतर प्राप्त है । विधिमानसपुत्र पुलस्त्य | इसके पहले के तथा बाद के लोग गोतम नाम से प्रसिद्ध ऋषि से इसे वैश्रवण नामक सामर्थ्यसंपन्न पुत्र हुआ | हएँ (पं. ब्रा. १३.१२.६-८)। इसका गौतम नामक भी (म. व. २५८.१२)।
एक साम है (पं. बा. १२.३.१४)। ६. शुक्र की पत्नी।
'गोतमीपुत्र-भारद्वाजीपुत्र का शिष्य (बृ. उ. ७. यति देखिये।
६.५.१)। गो आंगिरस--एक सानद्रष्टा (पं. ब्रा. १६.७.७; गोत्रवत्-कृष्ण एवं लक्ष्मणा का पुत्र । ला. श्री. ६.११.३)।
गोधा-मंत्रद्रष्टा (ऋ. १०.१३४.६-७)। प्रा. च. २५
१९३