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गुह
प्राचीन चरित्रकोश
गृत्समद
राम चित्रकूटपर्वत पर था। भरत बड़ी सेना के | १२)। (३) गृत्समद के घर में अकेले आये इंद्र को साथ उसे वापस लाने के लिये गया। उस समय भरत | देख कर शत्रुओं ने घेरा । तब इंद्र गृत्समद का रूप ले कर रामनाशार्थ जा रहा है, इस संदेहवश इसने अपनी | भाग गया। घर के गृत्समद को उन्हों ने इंद्र समझ कर सेना सज की । भरत का सत्य हेतु ज्ञात होते ही, इसने | पकड़ लिया। तब इसने यह सूक्त कह कर इंद्र का वर्णन उसे ससैन्य गंगापार पहुँचाया। भरत के साथ यह स्वयं | किया (ऋ. २.१२)। चित्रकूट तक गया था (वा. रा. अयो. ८४-८७)। । ऋग्वेद के दूसरे मंडल में गृत्समद का बार बार उल्लेख
गुहवासिन्- वाराहकल्प के वैवस्वत् मन्वन्तर के | आता है (ऋ. २.४.९; १९.८ इ.)। इसे शुनहोत्र भी सत्रहवें चौकडी का यह शंकरावतार है। इसका स्थल कहा है (ऋ. २.१८.६, ४१.१४; १७)। ऋग्वेद के हिमालय का महोत्तंगक्षेत्र है। इसके निम्नलिखित चार दूसरे मंडल की ऋचाओं का उल्लेख गामिद ऋचा के पुत्र थे:-उतथ्य, वामदेव, महायोग तथा महाबल नाम से प्राप्य है (सां. आ. २२.४; २८.२)। (शिव. शत. ५)।
। यह भृगुकुल का गोत्रकार, प्रवर तथा मंत्रकार है। गृत्स--एक महासुर । इसने अपने मित्र भृगु के गृत्समद भार्गव शौनक ऋग्वेद का सूक्तद्रष्टा है (ऋ.२.१पत्नी का अपहरण किया। उसने इसे शाप दिया । शाप | ३८-४३; ९.८६, ४६-४८ )। एक बार चाक्षुष मनु के कारण यह अलर्क नाम का कृमि बन गया। यह का पुत्र वरिष्ठ इंद्र के सहस्त्रवार्षिक सत्र में आया। साम कृमि अष्टपद, तीक्ष्णदंष्ट्र तथा सूचिसमान तीक्ष्णकेशयुक्त अशुद्ध गाने के लिये इसे दोष दे कर, रुक्ष अरण्य में कर था । कर्ण के अंक पर परशुराम निद्रित था । उस समय, पशु बनने का शाप वरिष्ठ इसे दिया। परंतु शंकर की इस कृमि ने कर्ण की जाँच में छेद किया। जाँघ से निकले | कृपा से यह मुक्त हुआ (म. अनु. १८.२०-२८)। . रक्त के स्पर्श से, परशुराम की नींद खुल गयी। गृसमद का भृगुवंश में उल्लेख है (मत्स्य. १९५.४४परशुराम के दर्शन से अलर्क शापमुक्त हो गया। (म. | ४५)। गृत्समद का पैतृक नाम शौनक है। यह शुनहोत्र शां. ३.१२-२३)।
का औरस पुत्र तथा शुनक का दत्तक पुत्र था। अंतः प्रथम गृत्समद-यह एक व्यक्ति का तथा कुल का भी
यह आंगिरस कुल में था, एवं बाद में भृगुकुल में गया नाम है। यह अंगिरस् कुल के शुनहोत्र का पुत्र हैं | (
(ऋष्यनुक्रमणी २) (सर्वानुक्रमणी देखिये)। यह बाद में भार्गव हो गया। २. एक ऋाष । भृगु क कहन पर ब्राहाण बन वातहव्य गृत्समद शब्द की व्युत्पत्ति, ऐतरेय आरण्यक में आयी
| का पुत्र । इसका पुत्र सुचेतस् ।' है। गृत्स का अर्थ है प्राण, तथा मद का अर्थ है अपान ।
३. दंडकारण्य में रहनेवाला एक ऋषि । इसके सौ इसमें प्राणापानों का समुच्चय था, इसलिये इसे गृत्समद
पुत्र थे (अ. रा. ८)। कहते है (ऐ. आ. २.२.१)।
४. (सौ. क्षत्र.) वायु तथा विष्णु मतानुसार सुनयह तथा इसके कुल के व्यक्ति, ऋग्वेद के दूसरे मंडल | होत्रपुत्र । आयुकुल के सुहोत्र वा सुतहोत्र राजा के के द्रष्टाएँ हैं (ऐ. ब्रा. ५.२.४; ऐ. आ. २.२.१; सर्वानु- | तान पुत्रा मकानष्ठ । इस शुनक नामक पुत्र था । क्रमणी देखिये)।
११.३२.३४; ह. वं. १.२९.६७)। __ एक बार तपप्रभाव से इसे इंद्र का स्वरूप प्राप्त हुआ। ५. भीष्म शरपंजर में पडे थे, तब उनके पास आया इस बारे में तीन आख्यायिकाएँ प्रसिद्ध है। (१)| हुआ एक ऋषि (भा. १.९.७)। धुनि तथा चुमुरि ने इसे इंद्र समझ कर घेर लिया। 'मैं ६. इंद्र का मुकुंदा से उत्पन्न पुत्र । एक बार रुक्मांगद इंद्र नहीं हूँ,' यह बताने के लिये इसने इंद्र का उत्कृष्ट | बाहर गया था, तब उसकी पत्नी मुकंदा काममोहित हुई। वर्णन करनेवाला ‘स जनास इंद्रः' (ऋ. २.१२), यह | इंद्र ने रुक्मांगद का रूप ले उससे संभोग किया । उसे गर्भ टेकयुक्त सूक्त कहना प्रारंभ किया । (२) इंद्रादिक देवता रहा तथा पुत्र उत्पन्न हुआ। यही गृत्समद था। आगे चल वैन्य के यज्ञ में गये। वहाँ गृत्समद भी था । दैत्य इंद्र का | कर, यह बड़ा विद्वान हुआ। यह वादविवाद में किसी से वध करने के हेतु से वहाँ आये। इंद्र गृत्समद का रूप ले | पराजित नहीं होता था। एक बार मगध देश के राजा के कर भाग गया। असुरों ने गृत्समद को घेरा । उस समय एक | घर, वसिष्ठादि मुनि श्राद्ध के लिये एकत्रित हुए । तब अत्रि सूना से इसने इंद्र का उत्कृष्ट वर्णन किया (ऋ. २. ने तुम पंक्तिपावन नहीं हो, कह कर इसका उपहास किया।
। सखिय)।