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प्राचीन चरित्रकोश
गिरिक्षित्
गिरिक्षित् औच्चामन्यव – एक ऋषि । इसका अभि. प्रतारिन् काक्षसेनि के साथ गायत्रसाम के बारे में संवाद हुआ था (पं. ब्रा. १०.५.७ ) ।
गिरिज बाभ्रव्य - एक ऋषि । सत्र के यज्ञीय पशु के अवयव सब ऋत्विजों में किस प्रकार बाँट दिये जावें, इसकी जानकारी इसे एक गंधर्व से मिली। वह इसने सब को बताई (ऐ. बा. ७.१ ) ।
इसके पहले यह जानकारी देवभाग को थी, परंतु मृत्यु तक वह उसने किसी को न बताई |
गिरिश - ऋषभ नामक शिवावतार का शिष्य ।
गिरिशर्मन् — शेषावतार देवदत्त का पुत्र । इसने बड़े बड़े विद्वानों को जीता था । अंत में यह शंकर का परमभक्त हुआ (भवि. प्रति. ४.११ ) । गिरिशर्मन् कांठेविद्धि--ब्रह्मवृद्धि का शिष्य ( वं. ब्रा. १) ।
को
गीतविद्याधर - - एक प्रसिद्ध गंधर्व । पुलस्त्य इसके गायन से तकलीफ होने लगी । सूअर का स्वाँग ले कर इसने उसे और भी तंग किया । इसलिये शाप से उसने इसे सूअर बना दिया । उःशाप माँगने पर, इक्ष्वाकु के द्वारा मारे जाने पर पूर्ववत बनोगे, ऐसा उःशाप दिया । अनंतर यह पूर्ववत् हुआ (पद्म. सृ. ४६ )
।
गुंग--एक देश और लोग । ऋग्वेद में ये अतिथिग्व के मित्र बन कर आये हैं (ऋ. १०.४८.८ ) । गुणकेशी -- इंद्रसारथि मातलि तथा उसकी पत्नी सुधर्मा की कन्या । ढूँढने पर भी इसके लिये योग्य वर नहीं मिला । अंत में नागलोक के चिकुरनाग के सुमुख नामक पुत्र को इसने पसंद किया । उसका गरुड से वैर था । मातलि सुमुख को इंद्र के पास ले गया। वहाँ उसे अमृत पिला कर अमरत्व प्रदान किया । विष्णु ने गरुड को समझा कर उनका वैरभाव नष्ट किया, तथा सुमुख से गुणकेशी का विवाह करवाया म. उ. ९५.१०३) ।
गुह
गुणनिधि - श्रोत्रिय यज्ञदत्त का पुत्र । यह अत्यंत दुर्गुणी तथा व्यसनी था । शिवपूजा देखने के कारण, तथा शिवदीप की बाती प्रज्वलित करने के कारण, यह मुक्त हुआ (शिव. रुद्र. स. १८ ) । तदनंतर कुबेर ने इसे उत्तर दिशा का अधिपति नियुक्त किया (स्कंद. ४. १. १३) ।
२. पुलह तथा श्वेता का पुत्र ।
गुप्त -- वैपश्चित दार्दजयंति गुप्त लौहित्य यह इसका पूरा नाम है (जै. उ. बा. ३.४२ ) । गुप्त इसका सही नाम है। बाकी तीनों पैतृक नाम हैं ।
गुप्तक-- पांडवों के समकालीन सिंधु देश का राजा । गुरु बृहस्पति का नामांतर । मरीचि प्रजापति की सुरूपा नामक पुत्री तथा अंगिरस की स्त्री । देवाचार्य बृहस्पति उसका पुत्र था । इसे ही गुरु कहते थे । यह महाबुद्धिमान् तथा वेदवेदाङ्गपारंगत था ( विष्णुधर्म. १. १०६; बृहस्पति देखिये ) |
२. (सो. पुरूरवस् . ) भागवत मतानुसार संकृतिपुत्र । मत्स्य में इसे गुरुधि, विष्णु में रुचिरधि तथा वायु में गुरुवीर्य कहा गया है। गुरुवीत तथा गौरवीति यही रहा होगा। अंगिराकुल का गोत्रकार भी यही होगा ( सांकृति देखिये) ।
३. भौत्य मनु का पुत्र ।
गुरुक्षेप--(सू. इ. भविष्य . ) विष्णुमत में बृहत्क्षण पुत्र । गुरुधि - (सो. पुरूरवस्.) मत्स्य मतानुसार संकृतिपौत्र तथा महायशस् का पुत्र ( गुरु २. देखिये) ।
गुरुभार -- गरुडपुत्र ।
गुरुवीत -- अंगिराकुल का मंत्रकार ( गुरु २. देखिये) । गुरुवीर्य - (सो. पुरूरवस्.) वायु के मत में सांकृतिपुत्र ( गुरु २. देखिये ) |
गुर्वक्ष - बलि दैत्यों के सौ पुत्रों में से एक । गुह — कार्तिकेय का नाम ( भा. ३.१.२२ ) ।
२. शंगवेर नामक नगरी का किराताधिपति । यह दशरथ का परममित्र था । राम अयोध्या से निकल कर दंडकारण्य जा रहा था, तब एक रात गुह के घर रहा था। उस समय गुह ने उसका अच्छा आदरातिथ्य किया । राम के वनवास के बारह वर्ष वहीं व्यतीत हो, ऐसी प्रार्थना गुह ने राम से की। गुह द्वारा लाये गये . फलादिकों को स्पर्श कर, राम ने दर्शाया कि, वह परान्नग्रहण नहीं करता । राम ने वहाँ रहना भी अमान्य कर दिया। उस दिन, राम तथा सीता दर्भ बिछा कर सोये, तथा गुह राम की रक्षा के लिये खड़ा रहा। उस समय राम के विचित्र प्रारब्ध के बारे में इसके मन में विचार आ रहे थे । इस विषय पर इसका लक्ष्मण से संभाषण भी हुआ ( वा. रा. अयो.
गुणवती -- सत्राजित् देखिये ।
गुणाकर- प्रक्षद्वीप का राजा । इसकी पत्नी सुशीला । ५०.५१ ) । दूसरे दिन गुह ने राम की आज्ञानुसार गंगा के इसकी कन्या सुलोचना (पद्म, क्रि. ५) ।
दक्षिण तीर पर उन्हें पहुँचा दिया ( वा. रा. अयो. ५२ ) ।
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