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गार्दभि
प्राचीन चरित्रकोश
गिरिक्षित्
२. भृगुकुल का गोत्रकार।
बेचने का विचार रहित कर के, वह स्वगृह लौट आई। गार्हायण-भृगकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषि । तबसे उसके इस पुत्र का नाम गालव प्रचलित हुआ (ह.
गाल-एक राजा। इसने नीलपर्वत पर एक मंदिर | व. १.१२, वायु. ८९.८३-९२; ब्रह्म. ७.१०२-१०९; बनवाया था। इन्द्रद्युम्न ने जगन्नाथक्षेत्र इसके काबू में | म. अनु. ७.५२ कु. ब्रह्मांड. ३.६३.८६-८९;६६.७२)। दिया (स्कन्द. २.२.२६)।
४. कुंतल राजा का पुरोहित । अरिष्टाध्याय सुना कर
इसने राजा को बताया, 'जल्द ही तुम्हारी मृत्यु का योग गालव--विदर्भीकौंडिन्य का शिष्य । इसका शिष्य
है। अतः राजकन्या चंपकमालिनी का चन्द्रहास से कुमारहारित (बृ. उ. २.६.३, ४.६.३)।
विवाह करने की संमति राजा ने दी (जै. अ. ५१)। २. विश्वामित्र का एक शिष्य (म. उ. १०४-११६)।
५. सावर्णि मन्वन्तर में होनेवाला सप्तर्षियों में से एक गुरु की अत्युत्कृष्ट सेवा कर के, इसने पूर्ण कृपा संपादन
| (भा. ८.१३.१५)। की। इसके द्वारा विशेष आग्रह किये जाने के कारण,
। ६. अंगिराकुल का एक गोत्रकार। विश्वामित्र ने किंचित् रोष से आठसौ श्यामकर्ण अश्व गुरु
७. एक व्याकरणकार (नि. ४.३; पा. सु. ६.३.६१; दक्षिणा के रूप में माँगे (म.उ. १०४.२६)। यह
७.१.७४; ३.९९; ८.४.६७)। यह, राजा ब्रह्मदत्त का सुन कर, यह अत्यंत भयभीत हुआ। इसने विष्णु की
मित्र था। यह बड़ा योगाचार्य था। इसने क्रमशिक्षा का आराधना की। इसकी निस्सीम भक्ति से तुष्ट हो कर, विष्णु ने गरुड़ को इसके पास भेजा, तथा इसको मदद करने
ग्रथन किया । लोगों में क्रमपाठ का प्रचार किया (ह..वं. के लिये कहा। गरुड़ गालव के पास गया । इसकी इच्छा
१.२०.१३, २४.३२) । बाभ्रव्य पांचाल (ल्य) ने जान कर, अश्व धूंढने के लिये ये दोनों बाहर निकले । जाते
क्रमपाठ निर्माण किया। नंतर गालव ने शिक्षाग्रंथ का जाते गरुड़ इसे ययाति के पास ले गया। उस समय
निर्माण किया, एवं क्रम का प्रचार किया (म. शां. ३३०. ययाति की सांपत्तिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वह स्वयं
३७-३८)। अरण्य में रहता था। गालव की इच्छापूर्ति के लिये
___ बाभ्रव्य पांचाल तथा गालव भिन्न व्यक्ति है । ऋक्प्रातिआवश्यक द्रव्य भी उसके पास नहीं था, फिर आठसौ
शाख्य तथा पाणिनि इन्हें अलंग व्यक्ति मानते हैं.। ब्रह्मअश्वप्राप्ति तो असंभव ही थी। फिर भी अपनी कन्या
यज्ञांगतर्पण में गालव का नाम नहीं हैं किंतु बाभ्रव्य का नाम माधवी, उसके होनेवाले पुत्रों पर अधिकार रख कर, ययाति
मिलता है (आश्वलायनगृह्यसूत्र)। मत्स्य में सुबालक ने इसे दी, तथा उसके सहाय्य से इसने गुरुदक्षिणा की पूर्ति
| पाठ है । यह मंत्रिपुत्र कहा गया है (मत्स्य. २०.२४;
बाभ्रव्य पांचाल देखिये)। की (म. उ. १०४-११७; माधवी देखिये)। इसका आश्रम जयपुर से तीन मील की दूरी पर था।
८. वायु के मतानुसार व्यास की यजुःशिष्यपरंपरा
का याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य (व्यास देखिये )। इसका दूसरा आश्रम चित्रकूट पर्वत पर था।
इसकी स्मृति का हेमाद्रि ने उल्लेख किया है। ३. विश्वामित्र का पुत्र । सत्यव्रत राजा के निंद्य आचरण से सर्वत्र अकाल पड गया। उस समय अपने तीन पुत्र
गालवि--अंगिराकुल का गोत्रकार । इसे गालविन् तथा पत्नी के उदरनिर्वाह का कुछ भी विचार न करते हुए,
नामांतर है। विश्वामित्र तपश्चर्या करने के लिये चला गया। काफी अर्से
गावल्याण-संजय का पैतृक नाम (संजय ८ देखिये)। तक इसकी पत्नी ने कुछ उपाययोजना कर के मुश्किल से गिरिका-एक पर्वतकन्या। कोलाहल पर्वत को बच्चो को जिलाया। एक बार उदरनिर्वाह के लिये कुछ भी शुक्तिमती नदी से जुडवाँ अपत्य हुए। उनमें से यह प्राप्त न हआ। बच्चे भूख से तिलमिला कर रोने लगे। गिरिका नामक कन्या शुक्तिमती नदी ने उपरिचर वस् मजबूर हो कर, इस पुत्र के गले को दर्भरज्जू से बाँध कर को दी। बाद में राजा ने इस के साथ विवाह किया। उससे वह इसे बेचने के लिये जाने लगी। इतने में राह में इसे बृहद्रथ आदि छः पुत्र, तथा काली अथवा मत्स्यगंधिनी सूर्यवंशीय इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न सत्यव्रत राजा उससे मिला । | नामक कन्या हुई (म. आ. ५७)। उसके द्वारा पूछे जाने पर उसने संपूर्ण हकीकत बताई । तब गिरिक्षत्र--(सो. वृष्णि.) विष्णुमत में श्वफकपुत्र । सत्यव्रत ने कहा, "विश्वामित्र के आने तक रोज थोड़ा माँस गिरिक्षित्-दुर्गहपुत्र । इसका पुत्र पुरुकुत्स (ऋ.४. मैं तुम्हें दूँगा । उस पर अपना निर्वाह करो"। तब पुत्र को | ४२.८)। इसी कुल में त्रसदस्यु हुआ (ऋ. ५.३३.८)
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