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गार्ग्य
प्राचीन चरित्रकोश
गार्दभ
एक ज्योतिषी के नाते हेमाद्रि ने इसका निर्देश किया | यह देखने का उसने प्रयत्न किया । परंतु बारह वर्ष की
है (C. C)। मेरु की कर्णिका ऊर्ध्ववेणीकृत आकार की है ( वायु. ३४.६३ ), यह ज्योतिषशास्त्रीय सिद्धान्त इसने प्रस्थापित किया ।
कड़ी तपश्चर्या के कारण, इसका वीर्य स्खलित नहीं हुआ। इससे सबकी कल्पना ऐसी हुई कि, यह नपुंसक है । बाद में दक्षिण में जा कर इसने शंकर की आराधना की तथा
यह अंगिराकुल का एक गोत्रकार तथा मंत्रकार है । यादवों का पराभव करनेवाला पुत्र माँग लिया । तब ग्वालपरंतु ऋग्वेद में गाय का मंत्र नही है । कन्या गोपाली से इसे कालयवन नामक महापराक्रमी पुत्र हुआ (विष्णु. ५.२३; ह. वं. १.३५.१२ ) । अन्य कई स्थानों में इस कथा का उल्लेख है ( कालयवन देखिये) । इसे क्वचित् गर्ग भी कहा गया है। इसे यादवों का उपाध्याय कहा है । यादवों के उपाध्याय को गर्ग तथा कुलनाम गार्ग्य दोनों लगाते थे ( वृद्धगर्ग तथा वृद्धकन्या देखिये) । इसने धर्म को धर्मरहस्य बताया ( म. अनु. १९०.९ कुं.)।
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श्राद्ध,
धर्मशास्त्रकार — वृद्धयाज्ञवल्क्य का एक श्लोक विश्व रूपरचित विवरण नामक ग्रंथ में है । उसमें उल्लेख है कि यह धर्मशास्त्रकार है (१. ४ - ५ ) । गाय के ग्रंथ का एक वचन लिया गया है, उससे पता चलता है कि, गार्ग्य का धर्मशास्त्र पर कोई ग्रंथ अवश्य उपलब्ध होगा अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका, मिताक्षरा आदि ग्रंथों में प्रायश्चित्त तथा आह्निक आदि विषयों पर इसके उद्धरण लिये गये हैं । पाराशरधर्मसूत्र में भी यह धर्मशास्त्रकार है, यों उल्लेख है । अपरार्क में इसके ग्रंथ से ज्योतिषविषयक श्लोक भी लिये गये हैं । गर्गसंहिता के ज्योतिषविषयक श्लोक भी प्राप्त हुए हैं। स्मृतिचन्द्रिका में ज्योतिर्गार्ग्य एवं बृहद्गार्ग्य इन दो ग्रंथों का उल्लेख हुआ है। नित्याचारप्रदीप में गर्ग तथा गार्ग्य नामक दो भिन्न स्मृतिकारों का उल्लेख हैं ।
४. (सो. काश्य.) । यह वायु के मतानुसार वेणुहोत्र - पुत्र । भर्ग तथा भार्ग इसके नामांतर है ।
शर्वदत्त गार्ग्य, शिशिरायण गार्ग्य, तथा सौर्याणि गार्ग्य देखिये ।
गार्ग्य बालाकि – गर्गगोत्रीय बलाक नामक ऋषि का पुत्र । अपने ब्रह्मज्ञान के प्रति अभिमानी बन कर, काफी स्थानो पर इसने अपने ज्ञान की प्रशंसा की। एकबार काशिराज अजातशत्रु के पास जा कर इसने उससे कहा, '# तुम्हें बताता हूँ कि ब्रह्म क्या है ' । अजातशत्रु ने उस ज्ञान के बदले इसे हजार गायें देने का निश्चय किया । तब बालाकि ने प्रतिपादन प्रारंभ किया, परंतु अजातशत्रु ने इसके सब तत्त्वों का खंडन किया। तब अपने गर्व के प्रति लज्जित हो कर इसने अजातशत्रु को ब्रह्मज्ञानकथन की प्रार्थना
* पूरुवंश के गर्ग तथा शिनि की संतति को गार्ग्य यह सामान्यनाम दिया जाता था । यह क्षत्रिय थे, परंतु तप से वे गार्ग्य तथा शैन्य नाम के ब्राह्मण हो गये थे ( भा. ९.२१.१९; विष्णु. ४. १९.९ ) । केकयदेशाधिपति युधाजित् राजा का गार्ग्य नामक पुरोहित था । यह युधाजित् राजा की ओर से गंधर्वदेश जीतने के लिये राम के पास आया था । उसने तक्ष तथा पुष्कलों की सहायता से यह कार्य पूर्ण किया ( वा. रा. यु. १०० ) ।
२. एक ऋषि । रुद्र ने ययाति को एक सोने का रथ दिया । वह रथ उसके कुल में प्रथम जनमेजय पारिक्षित तक था । परंतु गार्ग्य के एक अल्पवयीन पुत्र ने उसे कुछ कहा, तब जनमेजय ने उसका वध कर दिया। तब गार्ग्य ने उसे शाप दिया तथा वह रथ जनमेजय के पास से चेदिपति बसु के पास गया। उसके बाद, वह रथ जरासंध, भीम तथा अंत में कृष्ण पास गया (वायु. ९३.२१२७; ह. वं. १.३० ) ।
३. विश्वामित्र के पुत्रों में से एक का नाम (म. अनु. ७.५५. कुं.)।
४. एक ऋषि । वृकदेवी नामक त्रिगर्त राजा की कन्या शिशिरायण गार्ग्य को दी थी । गार्ग्य पुरुष है अथवा नहीं,
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। तत्र अजातशत्रु ने कहा, 'अध्यापन क्षात्रधर्म के विरुद्ध है । इसलिये मैं इस राजसिंहासन का त्याग करता हूँ। तुम इसका स्वीकार करो, तब मैं अध्यापन योग्य बनूंगा'। ऐसा करने के बाद, अजातशत्रु ने बालाकि को ब्रह्मविद्या प्रदान की ( कौ. उ. ४.१) । इसे दृप्तबला कि भी कहते थे ( श. बा. १४.५.१ ) ।
गार्ग्यहरि- - अंगिराकुल का गोत्रकार । गार्गिहर पाठभेद है ।
गाययण - उद्दालकायन का शिष्य । इसका शिष्य पाराशर्यायण (बृ. उ. ४.६.२)।
२. भृगुकुल का एक गोत्रकार गाग्ययणि-गांग्यायनि देखिये ।
गार्दभि -- विश्वामित्र के पुत्रों में से एक। पाठभेदगर्दभि ( म. अनु. ७.५९ कुं. ) ।