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________________ प्राचीन चरित्रकोश गंधमोक्ष गंधमोक्ष - (सो. यदु.) श्वफल्क का पुत्र । गंधर्व—एक मानववंश | कश्यप तथा अरिष्टा की संतति को गंधर्व कहते हैं । हाहा, हूहू, तुंबुरु, किन्नर आदि इनके भेद हैं। गंधवों का देश हिमालय का मध्यभाग है | गंधर्व तथा किन्नर देश भी पुराणों में निर्दिष्ट हैं। गंधर्व की स्त्रियाँ अप्सराएँ हैं । कश्यप-खशा के संतान अप्सराएँ कही जाती हैं । चित्ररथ, विश्वावसु, चित्रसेन आदि गंधर्वनृपों का निर्देश सर्वत्र आता है । चित्ररथ गंधर्व तथा पांडवों का संघर्ष प्रसिद्ध है । गंधर्वसेना- कैलास पर स्वयंप्रभा नगरी में रहनेवाले धनवाहन नामक गंधर्व की कन्या । यह सोमवार का व्रत करने के कारण कुष्ठरहित हुई ( स्कंद. ७.१.२४ - २५ ) । गंधर्वाण बाय अग्निवेश्य - एक पांचाल (बौ. श्री. २०.२५ ) । । गंधवती -- सत्यवती का नामांतर (म. आ. ५७-६७) गभस्तिनी प्रातिथेयी -- लोपामुद्रा की बहन तथा दध्यच् ऋषि की स्त्री (ब्रह्म. ११०.७.६१ ) । गंभीर—(सो. आयु.) रभसपुत्र ( भा. ९.१७.१०) । २. भौत्य मनु का पुत्र । गंभीरबुद्धि-- इंद्रसावर्णि मनु पुत्र ( मनु देखिये ) | गय - एक दैत्य । विष्णु ने इसका कीकट देश में नाश किया । इसकी देह पांच कोस तथा सिर एक कोस लंबी थी ( स्कंद. ५.१.५९ ) । उसका शरीर अत्यंत विशाल था । यह विष्णुभक्त था, इसलिये ब्राह्मणों ने इसकी पवित्र देह, यज्ञ के लिये माँगा । इस ने लोकोपकारार्थ अपनी देह विष्णुजी को दे दी । तत्पश्चात् ब्रह्मा ने इसे कोलाहल पर्वत के पास उत्तर की ओर सिर कर के दक्षिणोत्तर सुलाया । यह न हिले, इसलिये इसपर आदिगदाधर की स्थापना की । इसे सबका उद्धार करने का वरदान दिया । यह स्थान कीटक देश में है । इसके पैर प्रभासक्षेत्र में हैं । गयाक्षेत्रमाहात्म्य उपलब्ध है (वायु. १०५ - ११२. ) । गरुड २. (स्वा. उत्तान.) भागवत मतानुसार उल्मुक तथा पुष्करिणी का पुत्र । ३. (स्वा. उत्तान. ) भागवत मतानुसार हविर्धान का ५. (सो. आयु. ) आयु का पुत्र (म. आ. ७०. २३)। उर्वशी, धृताची, मेनका, रंभा आदि अप्सराओं का निर्देश भी सर्वत्र आता है । ६. ( सो पुरूरवस्. ) अधूर्तरजस् का पुत्र ( म. स. ८.१७ श. ३७.१-९) । यह बड़ा धर्मात्मा एवं यज्ञ करनेऋषि, मुनि राजाओं के साथ पत्नी आदि रूप में भी वाला था । लगातार सौ वर्षों तक यह यज्ञ करता रहा । अप्सराएँ दिखती हैं। गयादेश में यज्ञयाग करते समय इसने सरस्वती नदी इस वंश के लोक सुरूप, शूर तथा विशेष शक्तिशाली को आमंत्रित किया । सरस्वती वहाँ प्रादुर्भूत हुई । इसी थे (यक्ष देखिये ) । नदी को विशाला कहने लगे (म. व. ९३.१२१) । पुत्र । ४. ( स्वा. प्रिय. विष्णु तथा भागवत मतानुसार नक्त तथा द्रुति का पुत्र । इसकी स्त्री गयंती । इसके चित्ररथ, सुगति तथा अवरोधन नामक तीन पुत्र थे ( भा. ५.१५. ६) । ७. (सु.) इला अथवा सुद्युम्न राजा का पुत्र । यह गयापुरी में राज्य करता था ( भा. ९.१.४१ ; पद्म. सृ. ८ ) । ८. दक्षसावर्णि मनु का पुत्र । ९. उरु तथा डायी का पुत्र । गय आत्रेय - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.९-१० ) । गय प्लात - सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.६३-६४) । यह प्रति का पुत्र था ( ऐ. ब्रा. ५.२ ) । इसने अपने सूक्त में एक स्थान पर उल्लेख किया है कि, नहुषपुत्र ययाति के यज्ञ में जानेवाले देव इसे धन दें (ऋ १०.६३.१७) । असित तथा कश्यप के साथ इसका उल्लेख आया (अ. वे. १.१४ ) । गयंती - नक्तपुत्र गथ की स्त्री । गर -- सुबाहु का पुत्र | यह विशेष धार्मिक न था । हैहय, तालजंघ, शक, यवन, पारद, कांबोज तथा पंलव राजाओं ने मिलकर इसका राज्य हरण किया । इसलिये यह अपने कुटुंबसहित भार्गव ऋषि के आश्रम में रहने गया । वहाँ जाकर यह अल्पकाल में ही मर गया । इसकी स्त्री कल्याणी तथा पुत्र सगर (पश्च. उ. २० ) । २. सामद्रष्टा एवं इंद्र का मित्र (पं. बा. ९.२.१६ ) । ३. वीरभद्र देखिये । गरिष्ठ - एक ऋषि । यह इंद्र की सभा में उपस्थित था ( म. स. ७.११) । गरुड -- विष्णु का वाहन, एक पक्षी । १८२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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