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गणपति
प्राचीन चरित्रकोश
गंधमाद
इसके जन्मदिन वैशाख पौर्णिमा, ज्येष्ठ शुद्ध चतुर्थी, | पति मानते हैं । किसी भी देवता के उपासक सर्वभाद्रपद शुद्ध चतुर्थी तथा माघ शुद्ध चतुर्थी हैं । शुक्लपक्षीय | प्रथम गणपति की पूजा करते हैं (पद्म. स. ६३)। तथा कृष्णपक्षीय चतुर्थी तिथि इसे प्रिय है। सिद्धि तथा | प्रणव का अर्थ ॐकार है। अ, उ तथा मका ॐकार बुद्धि इसकी दो पत्नियाँ हैं (गणेश. १.१५)। इसकी बनता है। तुरीय नामक एक चतुर्थ भाग भी ॐकार में उपासना से कार्तवीय अव्यंग हुआ था (गणेश. २.७३- समाविष्ट हैं। जागृति, स्वप्न, सुषुप्ति तथा तुरीय इन चार ८३)। इसके चार हाथ हैं तथा इसका वाहन मूषक है। अवस्थाओं का ॐकार द्योतक है । ॐकार का जप तथा ___ इस पर लिखे गये प्रसिद्ध ग्रंथः-गणेशपुराण, मुद्गल- ध्यान का उपनिषदों में विशेष माहात्म्य है। साध्य तथा पुराण, ब्रह्मवैवर्त का गणेश खंड, भविष्यपुराण का ब्राह्मखंड, साधन दोनों रूपों में ॐकार वर्णित है । इसलिये वेदों का गणेश तापिनी, गणेशाथर्वशीर्ष, गणेश तथा हेरंब उप- प्रारंभ ॐकार से करने की प्रथा शुरू हो गई। आगे चल निषद् । याज्ञवल्क्य स्मृति में विनायक-शांति दी है कर, ॐकार से ही गजमुख गणेशजी का स्वरूप विकसित (याज्ञ. १.२७०)। .
हुआ। ॐकार का लेखन तथा गणेशजी की मूर्ति में साम्य __ अष्ट विनायक के स्थान-- १. मोरगांव (मोरेश्वर ), भी है । गजमुख गणेश सामान्यतः खिस्त के पंचम सदी के २. रांजनगांव (गणपति), ३. थेऊर (चिंतामणि), पूर्व उपलब्ध नहीं है । कालिदास ने निकुंभ का गौण रूप ४. जुन्नरलेण्याद्रि (गिरिजात्मज), ५. मुरुड़, पाली से निर्देश किया है। भवभूति ने स्पष्ट रूप से गजमुख का (बल्लालेश्वर ), ६. सिद्धटेक (गजमुख), ७. ओझर निर्देश किया है । ज्ञानेश्वरी में गजमुख तथा ॐकार की (विघ्नेश्वर ) ८. मढ (विनायक)। ये सब स्थान पूना के एकता स्पष्ट की है। इस एकता से ही, उपनिषदप्रतिपादित आसपास हैं। इनके अतिरिक्त अड़तालीस तथा एक- अकार, वेद में तथा सार्वत्रिक सर्वकायारंभ में आद्य सौवीस स्थान भी हैं। काशी में छप्पन विनायकों की सूचि | स्थान में आ गया है। प्राप्त है (गणेश. २.१५४)। ।
गंडकंडू-एक यक्ष। महाभारत जैसा विस्तृत ग्रंथ लिखने में व्यास ने | गंडष--(सो. यदु.) शूर का पुत्र । गणपति की सहायता प्राप्त की थी। मैं बीच में नहीं रुकूँगा, गंडा-पशुसख की स्त्री (म. अनु. १४१.५. कुं.)। 'ऐसी शर्त गणपति ने रखी थी। उसी प्रकार व्यास ने भी | इसे चंडा भी कहते थे। शर्त रखी थी कि, बिना अर्थ समझे आगे नहीं लिखोगे। गतायु--(सो. पुरूरवस् .) वायुमतानुसार पुरूरवीगणपति को लिखने के लिये अधिक समय लगे तथा स्वयं पुत्र। को समय मिले, इस हेतु से व्यास ने महाभारत में अनेक गति-(स्वा.) देवहूति तथा कर्दम की कन्या । पुलह • कूट सम्मिलित किये हैं (म. आ. १. परि. १ क्र. १; | की पत्नी । गांगेय और बाण देखिये)।
गतिन-विश्वामित्रगोत्र का प्रवर। गणपति का और एक रूप निकुंभ है । वाराणसीस्थित | गद-(सो. यदु. वसु.) कृष्ण का सौतेला भाई । यह निकुंभ की आराधना करने पर भी दिवोदास की पत्नी भारतीय युद्ध में पांडव पक्ष का था। यह यादवी में सुयशा को पुत्र न हुआ। इसलिये निकुंभमंदिर दिवोदास | मारा गया (म. मौ. ४. ४४.)। ने उध्वस्त किया। निकुंभ ने भी वाराणसी नष्ट होने का २. एक असुर । इसे मार कर इसकी अस्थियों से गदा शाप दिया। तालजंघादि हैहयों ने वाराणसी नगरी बनवायी । इसे हाथ में धारण करने के कारण विष्णु को उध्वस्त की, तथा दिवोदास को भगा दिया । अन्त में निकुंभ | गदाधर कहते है. (अग्नि. ११४; वायु. १०९.३-१२)। की फिर से स्थापना हुई । वाराणसी समृद्ध हो गई। इस | गदवमेन्-(सो. यदु.) शूर का पुत्र । कथा में वर्णित निकुंभ ही गणपति नाम से प्रसिद्ध हुआ। गद्गद-जांबवत् तथा केसरी इन वानरों का पिता गणेश, गणपति, गणेश्वर, बहुभोजन और कामपूरक नाम | (वा. रा. यु. ३०.)। से भी निकुंभ का वर्णन प्राप्त है (वायु. ९२.३६-५१)। गंधमाद-रामसेना का एक सेनापति, जो वानरों की
यह ओंकाररूप है । गणपति उपासना का मतलब पर- | सेना लेकर राम की सहायता करने आया था (भा. ९. ब्रह्म की उपासना है (गणेशाथर्वशीर्ष गणेश. १.१३- | १०. १९; म. व. २६७.५)। १५)। इसलिये इसे सर्व विद्या तथा कलाओं का अधि- २. (सो. यदु.) श्वफल्क के तेरह पुत्रों में से एक।
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