SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गंगा प्राचीन चरित्रकोश गणपति गंगा ने एकबार प्राचीमाधव नामक विष्णु से पूछा कि, | कलियुग में अश्व पर आरूढ होनेवाला धूम्रकेतु:-- 'मुझमें पोपी स्नान करते हैं । इन पापों से मेरी मुक्ति कैसी यह म्लेच्छों का नाश करेगा (गणेश. २.१४९) अदिति होगी?' विष्णु ने इसे रोज पूर्ववाहिनी सरस्वती में के गर्भ से महोत्कट रूप में इसने अवतार लिया (गणेश स्नान करने के लिये कहा । परंतु गंगा को यह तापदायक | २.५-६)। प्रतीत हुआ। तब उसने इसे त्रिपृशा का व्रत करने के लिये पार्वती स्नान कर रही थी. तब द्वाररक्षक का कार्य कहा। उससे यह पापमुक्त हुई। एकादशी, द्वादशी तथा | करनेवाले गणपति ने शंकर को भी भीतर जाने से रोका। त्रयोदशी जिस एक तिथि को स्पर्श करते हैं, उस तिथि | तब इनका युद्ध हो कर शंकर ने इसका मस्तक तोड दिया। को त्रिस्पृशा कहते हैं। इस दिन सुवर्ण की विष्णुमूर्ति परंतु पार्वती के लिये, शंकर ने इन्द्र के हाथी का मस्तक की पूजा की जाती है (पद्म. उ. ३४)। ला कर, इसके धड़ पर जमा दिया ( शिव. कु. १६)। गज-यह राम सेना में वानरों का अधिपति था | शनि के दृष्टिपात से गणपति का मस्तक जल गया, परंतु (पन. सृ. ३८; म. व. २६७. ३)। देवों ने वहाँ हाथी का मस्तक लगा दिया (ब्रह्मवै. ३. २. दुर्योधन का मामा । शकुनि के कुल छः कनिष्ठ १८; भवि. प्रति. ४.१२)। परशराम ने शंकरद्वारा दिया भाई थे। यह सबसे बड़ा था । भारतीययुद्ध में अर्जुनपुत्र गया परशु इस पर फेंका। परंतु परशु शंकर का होने के इरावत् ने इसका वध किया (म. भी. ८६.२४; ४२)। कारण, प्रतिकार न करते हुए, इसने वह आक्रमण दाँतों गजकर्ण-एक यक्ष (म. स. १०. १५)। पर सह लिया। इसी से इसका एक दाँत टूट गया। उसे २. महिषासुर का पुत्र । तपश्चर्या कर के इसने शंकर इसने हथियार के समान हाथ में ले लिया (ब्रहावै. ३. को प्रसन्न किया तथा यह अमर हो गया। अंत में | ४१-४४)। शंकर के त्रिशूल से इसकी मृत्यु हुई। इसकी इच्छानुसार एकदंत नाम प्राप्त होने के अन्य कारण भी प्राप्त है शंकर ने इसकी कृत्ति (चर्म) धारण की, तथा कृत्तिवासस् (बाण २. देखिये) । गणपति मेरा वध करेगा, एसा ज्ञात नाम धारण किया। गजासुर का वध काशी में हुवा । होते ही सिंदूरासुर ने, इसको नर्मदा में फेंक दिया। इसलिये काशी के लिंग को कृत्तिवासेश्वर कहते हैं (शिव. वहाँ गणपति के रक्त से नर्मदा लाल हो गई। इसीलिये रुद्र. यु. ५७)। यह तारकासुर का सैनिक था। अभी भी नर्मदा में नर्मदागणपति प्राप्त होते हैं। इसने गजेन्द्र-इंद्रद्युम्न, जयविजय तथा हूहू देखिये। सिंदरासुर का वध कर के उसके सुवासिक रक्त से अपने गजेन्द्रमोक्ष का आख्यान महाभारत में नहीं है। शरीर का लेपन किया । पश्चात् घृष्णेश्वर के पास सिंदुरवाड़ गणपति-एक देवता । 'गणानां त्वा गणपति' (ऋ. को अवतार समाप्त किया (गणेश.२.१३७)। इसीलिये २.२३.१), यह गणपति का सूक्त माना जाता है। यह गणपति को सिंदूर प्रिय है। कृष्ण के बालचरित्र के ब्रह्मणस्पतिका सूक्त है। इसे ब्रह्मणस्पति भी कहते हैं। ऐसे | | अनुसार गणपति का भी बालचरित्र है। अपनी अन्य गमक इतरत्र भी हैं (मै. सं. २. ६.१)। शंकर- बाललीलाओं में इसने अनेक असुरों का वध भी किया पार्वती का पुत्र हो कर भी यह अयोनिज था (ब्रह्मवै. ३. है (गणेश. १.८१-१०६)। ८; लिंग. १०५)। पार्वती ने अपने शरीर के उबटन की मूर्ति बना कर वह सजीव की (पद्म. स. ४३; स्कन्द. ७. गृत्समद, राजा वरेण्य तथा मुद्गल आदि इसके बडे १. ३८; मत्स्य. १५३)। भक्त हैं। इसने शंकर को गणेशसहस्रनाम (गणेश १. इसके अवतार--कृतयुग में कश्यपपुत्र विनायकः-- ४४-४५) तथा वरेण्य को गणेशगीता बताई (गणेश. यह सिंह पर आरूढ होता था। इसने देवांतक नरांतक २. १३८-१४८) । शंकर ने एक फल इसे न दे कर का नाश किया। कुमार को दिया, तब चंद्र ने हँस दिया । इसलिये इसने चंद्र को अदर्शनीय होने का शाप दिया। परंतु बाद में त्रेतायुग में मयूरारुढ रहनेवाला शिवपुत्र मयूरेश्वरः-- उश्शाप दे कर, केवल गणेशचतुर्थी के दिन अदर्शनीय इसने सिंधू का वध किया। माना (गणेश. १.६१)। उसी प्रकार गणेशचतुर्थी छोड़ द्वापारयुग में शिवपुत्र गजाननः--इसने सिंदूर का कर अन्य दिनों में, गणेश को तुलसी भी वयं है (ब्राँवै. बध किया तथा वरेण्य राजा को गणेशगीता बताई। ३.४६ )। १८०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy