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________________ ख्याति २. (स्वा.) भृगुपत्नी । कर्दम तथा देवहूती की कन्या । प्राचीन चरित्रकोश ३. तामस मनु का पुत्र । ग । । । । गगनमूर्धन्— कश्यप तथा दनु का पुत्र गंगा -- एक स्वर्गीय देवी। एक समय सब देवियों - अह्मदेव के पास गयीं। उनके साथ गंगा तथा इक्ष्वाकुकुलो सन महाभिप भी गया। यकायक इनके वस्त्र या के वायु कारण उड गये। सब लोगों ने सिर नीचे कर लिया। परंतु महाभिषनिक इनकी ओर देखता रहा। यह देख कर ब्रह्माजी ने शाप दिया "तुम मृत्युलोक में जन्म लोगे एवं गंगा तुम्हारी स्त्री होगी वह तुम्हें अधिसे कृत्य करेगी। तुम्हें इसके कृत्यों के प्रति क्रोध उत्पन्न होगा। तब मुक्त हो कर तुम इस लोक में आओग" शाप सुन कर महाभिने प्रतीप के पेट में जन्म लेने का निश्चय किया। सि के शाप के कारण मृत्युत्येक में आने वाले अब इसे राह में मिले। उन्होंने इसके पेट में जन्म लेने अष्टवसु कां निश्चय किया । परंतु उन्होंने यह शर्त रखी कि जो भी पुत्र जन्म लेगा, इसे यह जल में छोड़ देगी। परंतु इसने भी यह शर्त रखी कि जिससे में विवाह करुँगी उसे पुत्रच्छा अवश्य रहेगी, इसलिये कम से कम एक जीवित रहना ही चाहिये । तत्र अष्टवसुओं ने मान्य किया कि, अपने वीर्य से एक पुत्र ये इसे देंगे। वह वीर्यवान् परंतु निपुत्रिक रहेगा । , पुत्र ४. उरू एवं षडायी का पुत्र । ख्यातेय - नीलपराशर कुछ का एक ऋषि 1 भगीरथ स्वर्ग से अपने पितरों के उद्धार के लिये गंगा नीचे लाया । जब यह समुद्र की ओर जा रही थी, तब राह में जल ने इसे प्राशन कर लिया, तथा पुनः छोड़ दिया ( भगीरथ एवं जह्रु देखिये) एकवार प्रतीप । प्यानस्थ बैठा था। तब गंगा पानी से बाहर आई तथा उसकी दाई गोद में आ कर बैठ गई। यह देख कर उसने इसकी इच्छा पूँछी । इसने अपना स्वीकार करने के लिये कहा। तब दौई गोद में बैठने के कारण, स्नुषारूप में इसका स्वीकार करना उसने कबूल किया। गंगा ने अपनी शर्त रखी कि, आपकी स्नुषा होने के बाद, मैं जो कुछ भी गंगा , करूँगी, उसके बारेमें अपका पुत्र कुछ भी हस्तक्षेप न करें जब तक यह शर्त मान्य की जायेगी, तब तक आपके पुत्र का सहवास में मान्य करूँगी तथा उसे सुख दूँगी। उसे पुण्यवान् पुत्र होंगे तथा उन्हीं के साथ । उसे स्वर्गप्राप्ति होगी। इस प्रकार तय कर के गंगा अन्तर्धान हो गई । कुछ दिनों के बाद महाभिष ने प्रतीप के घर शांतनु नाम से जन्म लिया बड़ा होने पर उसे अपने पिता से सारा समाचार माइम हुआ। बाद में गंगा शांतनु पास गई, तब उसने इससे विवाह किया। इसके कुल आठ पुत्र हुए। उनमें से सात को इसने पानी में डुबा दिया आठवें पुत्र को शंतनु ने हुशने नहीं | दिया। गंगा का आठवाँ पुत्र ही भीष्म है। बाद में उसे ले कर यह स्वर्लोक गई। वहाँ इसने सब प्रकार की शिक्षा उसे दी शांतनु जब मृगया के हेतु आया, तब इसने भीष्म को उसे सौंप दिया (म. आ. ९१-९३) । गंगा आन्हवी (म. उ. १७९.२३ भी. १९१५.५२ ) तथा भागीरथी (म. अनु. १३९.७; आश्व. २.७ ) नामों से दे रहा प्रसिद्ध है। भीष्म शांतनु को गंगाद्वार में पिंड़ था । गंगा ने उसकी सहायता की ( म. अनु. ८४ ) । परशुराम से युद्ध करते समय, भीष्म के सारथी की मृत्यु हो गई। तत्र स्वयं घोडों को सम्हाल कर इसने भीष्म की रक्षा की ( म. उ. १८३.१५ - १६ ) । भीष्म ने अंबा का स्वीकार न करने के कारण, उसने तप कर के भीष्मबघ के लिये पुरुषजन्म माँग लिया। एक बार नित्यक्रमानुसार, अंगा गंगास्नान करने गई थी, तब गंगा यहाँ आई । उसने इसे शाप दिया, 'तुम डेडी मेडी नदी बन कर केवल बरसात में ही महोगी। अन्य दिनों में सूख जाओगी। बरसात में तुम्हारे पात्र में उतार भी नहीं मिलेगा' (म. उ. १८७.२४-२५) । भीष्मवध के बाद इसके दुख का निरसन श्रीकृष्ण ने किया (म. अनु. २७४२७ कुं.) । १७९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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