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कृष्ण.
प्राचीन चरित्रकोश
कृष्ण
का मान दे कर सम्मानित किया । भारतीययुद्ध में अर्जुन ५. भारतीययुद्ध में कृष्ण की हाथ में शस्त्र धारण न का सारथ्य तथा कुशल संयोजक की इसकी भूमिका थी। | करने की प्रतिज्ञा थी। भीष्म की ठीक इसके विपरीत,
युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन युद्धपरावृत्त होने लगा। गीता कृष्ण को शस्त्र उठाने को विवश करने की प्रतिज्ञा थी। सुना कर उसे पुनः युद्धप्रवृत्त किया। अन्तसमय उद्धव | घमासान लड़ाई में अर्जुन को भीष्म के सामने हारते देख, को ज्ञान दिया । भगवद्गीता तथा उद्धव का उपदेश ये | कृष्ण ने चतुर्भुज रूप धारण कर भीष्म पर धावा बोल अध्यात्म्यशास्त्र के अपूर्व ग्रंथ हैं । कर्म कर के कर्मबंधन | दिया। प्रतिज्ञापूर्ति के आनंद में भीष्म ने हाथ जोड़ कर से मुक्ति पाने के लिये दोनों ग्रंथों में संकेत हैं । ज्ञान, | शस्त्र नीचे रखा। भक्ति तथा लोकाचार का अटूट संबंध प्रतिपादन करने से,
६. इन्द्रप्रस्थ में अर्जुन को अनुगीता सुना कर द्वारका कृष्ण का यह बोध अमर हुआ है । विशेषतः इन ग्रंथों ने
लौटते समय, मरुभूमि में कृष्ण की उत्तक ऋषि से भेंट हुई। कृष्ण को पूर्णावतार बना दिया है। .
उत्तंक ने कृष्ण के होते हुए, भारतीय युद्ध के भयानक द्वैत, विशिष्टाद्वैत, अद्वैत आदि मतप्रतिपादक प्राचीन | संहार का उत्तरदायित्व इसपर डाल कर, इसकी आचार्यो के भाष्यस्वरूप ग्रंथ भगवद्गीता पर उपलब्ध हैं। निर्भर्त्सना की । उत्तंक की सांत्वना के लिये कृष्ण ने वहाँ आधुनिक साहित्य में तिलकजी का 'गीतारहस्य' ज्ञान- भी उसे विश्वरूपदर्शन कराया तथा इच्छित वर दिये मूलक, भक्तिप्रधान, निष्काम कर्मयोंग का प्रतिपादक है। (म. आश्व, ५४. ४)। महात्मा गांधी का 'अनासक्तियोग' ग्रंथ गीताप्रतिपादन
__युद्ध में सब बांधवों का वध होने के कारण युधिष्ठिर के स्पष्टीकरणार्थ ही है।
अत्यंत अस्वस्थ हुआ । वक्तृत्वपूर्ण भाषण द्वारा युधिष्ठिर का युद्धारंभ में कृष्ण ने अर्जुन से गीता कह कर युद्धप्रवृत्त | मन कृष्ण ने शांत किया । भीष्म के द्वारा भी कृष्ण ने किया । पश्चात् अर्जुन गीतोपदेश भूल गया, तथा पुनः एक अनेक प्रकार का ज्ञान धर्म को दिलाया, जो महाभारत के बार उसे सुनने की उसने कृष्ण से प्रार्थना की। कृष्ण ने | शान्ति एवं अनुशासन पर्व में उपलब्ध है। कहा, "मैं भी उस समय विशेष योगावस्था में था । उस समय जो प्रतिपादन किया, वह मैं अब दुहरा नहीं सकता।
इस कारण से ही बालकृष्ण, मुरलीधर, गोपालकृष्ण, . तथापि उसका कुछ अंश मैं तुम्हें कथन करता हूँ।"
राधाकृष्ण, भगवान् कृष्ण आदि अनेक अवस्थाओं में उसी का नाम 'अनुगीता' है (म. आश्व. १६-५०)।
इसकी उपासना प्राचीन काल से आजतक प्रचलित है ।
प्रत्येक अवस्था पर कई रचित ग्रंथ हैं। अतः यह भगवद्गीता का महत्व अनुगीता को प्राप्त नहीं हुआ।
पूर्णावतार है। ... विश्वरूपदर्शन--कृष्णचरित्र में विश्वरूपदर्शन एक
ऐतिहासिक चर्चा--पाणिनि के समय, कृष्ण सन्मानमहत्वपूर्ण भाग है। १. बाललीला में कृष्ण ने, मृत्तिका
नीय माना जाता था । तथापि क्षत्रिय नहीं समझा जाता भक्षण की। कृष्ण ने यशोदाद्वारा किये गये मृत्तिका
था। सामान्य क्षत्रियवाचक शब्द से 'गोत्रक्षत्रियाख्येभ्यो भक्षण के आरोप को अस्वीकृत किया। मुँह खोलने को बताने पर, यशोदा को मुँह में विश्वरूपदर्शन हुआ।
बहुलं वुञ् (पा. सू. ४.३.९९) इस सूत्र से प्रत्यय बताया
है। वासुदेव क्षत्रिय न होने के कारण, 'वासुदेवार्जुनाभ्यां २. अक्रूर को विश्वरूपदर्शन दिया।
वुन्' (पा. सू. ४.३.९८) इसने पुनः वुन् बताया है। ३. हस्तिनापुर में कृष्ण दौत्यकर्म करने गया था।
यह स्पष्टीकरण पतंजलि ने किया है। इससे स्पष्ट है कि, दुर्योधन कृष्ण को बंदिस्त करने को उद्युक्त हुआ । इस
सोमवंश के क्षत्रिय यादवकुल से कृष्ण का संबंध बाद में समय कृष्ण ने अपना उग्र स्वरूप प्रकट किया, जिसका
जोड़ा गया। वर्णन विश्वरूप के समान ही है।
४. भारतीय युद्ध के प्रारंभ में, गीता के ग्यारहवें | वासुदेव तथा अर्जुन को नरनारायण अवतार मान कर, अध्याय में अर्जुन को अपना विश्वरूप बताया । वहाँ | उपास्य देवताओं में भी सम्मीलित कर लिया गया था । उसका विस्तृत वर्णन है। उसकी भयानकता से अर्जुन | इससे इनका क्षत्रियत्व लुप्त हो कर उससे भी श्रेष्ठ उपाधि भी घबराया। उसने सौम्यरूप धारण करने की कृष्ण से | इन्हें प्राप्त हो गयी थी। इसलिये पाणिनि को स्वतंत्र सूत्र प्रार्थना की।
| बनाना पड़ा। १६३