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कृष्ण
प्राचीन चरित्रकोश
महाभारत में प्राप्त नर-नारायण उपासना का संप्रदाय कृष्ण हारित-एक आचार्य ( ऐ. आ. ३.२. पाणिनि तथा पतंजलि काल में भी प्रचलित था। नर-६)। इसने अपने शिष्य को वाग्देवता संबंधी उपासना नारायण का स्थान कृष्णार्जुन को ही दिया जाता था। का एक प्रकार बताया। पाठभेद-कृत्स्न हारित (सां. आ.
ययाति की जरा का स्वीकार न करने के कारण, यदु- ८.१०) कृष्ण हारित नामक महर्षि ने कालात्मक प्रजा कुल आक्षिप्त माना जाता था । यह आक्षेप कृष्णावतार उत्पन्न की । इस कारण इसके अवयव विकल हुए, परंतु से दूर हुआ तथा यदुकुल उज्ज्वल हो गया।
इसने छंदों से अपना शरीरबल संपन्न किया। इस कारण खिस्त के पूर्व दो सदी के करीब लिखे गये 'घोसुंदी | छंदःसंहिता का अस्तित्व है, यह तात्त्विक अर्थ इसने शिलालेख' में वासुदेवपूजा का निर्देश है। | बताया (ऐ. आ. ३. २. १४)।
२. (स्वा. उत्तान.) हविर्धान राजा को हविर्धानी नामक कृष्णदत्त लौहित्य-श्यामसुजयंत लौहित्य का शिष्य भायां से उत्पन्न छः पुत्रों में चौथा ।
| (जै. उ. बा. ३. ४२. १; त्रिवेद देखिये)। ३. विश्वक का काणि तथा कृष्णीय पैतृक नाम । इस कृष्णधृति सात्यकि-सत्य श्रवस का शिष्य (जै. विश्वक का कृष्ण नाम का कोई पूर्वज होगा (विश्वक कार्णि उ. ब्रा. ३. ४२.१; त्रिवेद देखिये)। तथा कृष्णीय देखिये)।
कृष्णीय---विश्वक काणि देखिये। ४. कद्रूपुत्र नागों में से एक ।
केकय-एक राजा। इसे एक बार अरण्य में एक ५. शुक्राचार्य को पीवरी से उत्पन्न चार पुत्रों में से | राक्षस ने पकड़ लिया। इसने अपने राज्य में लोग कैसे एक।
धार्मिक हैं, यह बताया तथा कहा कि, इसी कारण मुझे ६. (आंध्र. भविष्य.) भागवत, विष्णु, मत्स्य तथा राक्षसों का भय नहीं लगता। इसे राक्षस ने छोड़ कर घर ब्रह्मांड के मतानुसार सिंधुक का भ्राता।
जाने को कहा (म. शां. ७.८; अश्वपति कैकय देखिये)। कृष्ण आंगिरस--मंत्रद्रष्टा (ऋ. ८.८५.३-४)।
२. (सो. अनु.) शिबिराजा के पाँच पुत्रों में चौथा।
३. भारतीययुद्ध में पांडव पक्ष का राजा (म. उ. कष्ण आत्रेय-यह आयुर्वेद पृथ्वी पर प्रथम लाया | १६८.१३ )। (म. शां. २०३.१९)। अग्निवेश, भेड, हारित आदि
४. एक सूताधिप । इसे मालवी नामक स्त्री से कीचकांदि इसके ही शिष्य थे (चरकसंहिता)।
पुत्र हुए। इसकी दूसरी पत्नी मालवी की बहन थी । उसकी कृष्ण देवकीपुत्र-घोर आंगिरस का शिष्य (छां. कन्या सुदेष्णा, जो विराट की भार्या थी (म. वि. परि. उ. ३.१७१.६)। वसुदेव-देवकीपुत्र कृष्ण, तथा यह | १. क्र. १९; पंक्ति. २५-३२)। एक होने का प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
५. इसकी कन्या सैरंध्री। वह मरुत्त की पत्नी थी नामसादृश्य तथा तप, दान, आर्जव, अहिंसा, सत्य | (मार्क. १०८)। आदि कथित गुण, गीताप्रतिपादित दैवी संपत्ति के साथ | ६. भारतीययुद्ध में दुर्योधन पक्ष का राजा (म. उ. मिलते हैं । तत्रापि मरणकाल में अक्षय ( अक्षित ), अव्यय १९६.५)। (अच्युत) तथा प्राणसंशित वृत्ति रखने का घोर आंगिरस | केतव-वायु मत में व्यास की ऋशिष्यपरंपरा के का उपदेश गीता में नहीं है । गीता में केवल ईश्वरध्यान | शाकपूर्ण रथीतर का शिष्य (व्यास देखिये)। तथा प्रणवोच्चार बताया है।
केतु-(स्वा.) ऋषभदेव तथा जयंती के सौ पुत्रों में __इसलिये घोर आंगिरस का शिष्य कृष्ण देवकीपुत्र | से एक। इसके पिता ने जंबुद्वीप के नौ वर्षों में से तथा गीताप्रतिपादक भगवान कृष्ण एक नहीं हैं। पुराणों | अजनाभवर्ष के नौ खंड किये । तथा उन में से एक इसे में घोर आंगिरस का कृष्णचरित्र में निर्देश भी नहीं है। दिया।
कृष्ण द्वैपायन-बादरायण तथा यह एक ही हैं। २. तामसमनु के पुत्रों में से एक (भा. ८.१)। (मत्स्य. १४. १४-१६)।
तपोधन इसका नामांतर रहा होगा। कृष्ण पराशर--पराशर कुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि । इसके । ३. दनु तथा कश्यप का पुत्र । यही केतु नामक ग्रह कुल में कार्णायन, कपिमुख, काकेयस्थ, अंजःपाति तथा | होगा। पुष्कर मुख्य ऋषि थे (पराशर देखिये)।
४. ऋषियों के एक संघ का नाम (म. शां. १९.१२) । १६४